डा. सुरजीत सिंह। पूरे देश का ध्यान दिल्ली-एनसीआर की प्रदूषित हवा पर तो है, परंतु कोई भी उन छोटे शहरों की बात नहीं कर रहा है, जिनका वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर की ओर बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में तीन-चौथाई से अधिक लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। वैश्विक रिपोर्ट के आधार पर विश्व के 50 प्रदूषित शहरों में 39 भारत से हैं। आरा, भागलपुर, किशनगंज, मुजफ्फरपुर, सहरसा, समस्तीपुर, चंडीगढ़, अहमदाबाद, करनाल, यमुनानगर, भोपाल, देवास, ग्वालियर, रतलाम, सतना, उज्जैन, जलगांव, मालेगांव, पुणे, थाणे, अमृतसर, जालंधर, पटियाला, अलवर, चुरू, दौसा, झुंझुनू, कोटा, सवाई माधोपुर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और हावड़ा आदि शहरों में हवा की गुणवत्ता की स्थिति खराब श्रेणी में है, जिनका वायु गुणवत्ता स्तर 200 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक से अधिक है।

छपरा, गया, मोतिहारी, पटना, पूर्णिया, राजगीर, भिवाड़ी, कैथल, मानेसर, रोहतक, सोनीपत, सिरसा, गोविंदनगर, धौलपुर, हनुमानगढ़, जयपुर, जैसलमेर और लखनऊ आदि शहरों में हवा की गुणवत्ता की स्थिति बहुत ही खराब श्रेणी में है, जिनका वायु गुणवत्ता स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक से अधिक है। साफ है कि सरकारों और लोगों की उदासीनता के कारण प्रदूषित होने वाले छोटे शहरों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है।

यदि हम समय रहते नहीं जागे तो विकास की दौड़ का तो पता नहीं, परंतु जिंदगी की दौड़ में अवश्य पिछड़ जाएंगे। विकास से संबंधित नीतियों पर पुनर्विचार नहीं किया गया तो आने वाला समय बहुत ही कठिन होने वाला है। ऐसे हालात में स्वास्थ्य और आर्थिक विकास को दांव पर लगा कर भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना किसी कठिन चुनौती से कम नहीं होगा। वायु प्रदूषण में ओजोन, सल्फर, कार्बन मोनोआक्साइड और नाइट्रोजन डाईआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड आदि के कण हवा को जहरीला बना देते हैं। वायु प्रदूषण का सबसे गंभीर प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। प्रदूषण और धूल के कण लोगों में गले, आंखों और फेफड़े की बीमारियों को बढ़ा रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से हर साल लगभग 70 लाख लोग स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और निमोनिया जैसी बीमारियों के कारण असमय ही काल के ग्रास बन जाते हैं। यह प्रदूषण महिलाओं, नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव डालता है। चिंताजनक दर से बढ़ रहा वायु प्रदूषण अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। शिकागो यूनिवर्सिटी के नवीनतम शोध के अनुसार वायु प्रदूषण वाले क्षेत्र में रहने वालों की औसत उम्र पांच साल कम हो रही है। जबकि दिल्ली-एनसीआर के लोगों की औसतन उम्र 10 साल तक घट जाती है।

भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण परिवहन क्षेत्र है, जो कुल वायु प्रदूषण में 25 से 30 प्रतिशत का योगदान करता है। जीवाश्म ईंधन से चलने वाले पावर प्लांट, जंगल की आग, उद्योग, निर्माण कार्य, उद्योगीकरण और शहरीकरण आदि भी जिम्मेदार कारक हैं। वायु प्रदूषण का सीधा प्रभाव पर्यटन पर पड़ता है, जो कि विदेशी मुद्रा का एक बड़ा स्रोत है। श्रमिकों के काम करने की क्षमता के कम होने से उत्पादन में गिरावट आती है। स्वास्थ्य व्यय बढ़ जाता है। खाद्य शृंखला प्रभावित होती है। यह समाज के लिए आवश्यक कार्य करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को कम कर देता है।

एक अनुमान के अनुसार केवल वायु प्रदूषण से देश को लगभग 150 अरब डालर का नुकसान होता है। हवा को शुद्ध करने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम जैसी अनेक नीतियां भी बनाई गईं, परंतु गंभीर प्रयासों के अभाव में यह प्रभावशाली साबित नहीं हो सकी हैं। सरकार का ध्यान केवल बड़े शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है। लगता है छोटे शहर और ग्रामीण क्षेत्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं हैं। सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार को छोटे शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या को हल करना होगा। इसके लिए क्रमवार तरीके से कार्य करना चाहिए। छोटे शहरों की हवा की गुणवत्ता में कम से कम 25 प्रतिशत सुधार का लक्ष्य निश्चित करना चाहिए। धीरे-धीरे और क्रमशः सुधार के साथ ही वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि का गहरा संबंध है। इन संयुक्त खतरों के सफल नियंत्रण के लिए एक नियोजित रणनीति एवं उससे जुड़े विकल्पों पर मिलकर कार्य करना होगा। इस दिशा में तेजी से कार्य करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मिलकर अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देना होगा। भारत के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण एवं अन्य प्रकार के प्रदूषण से होने वाले जोखिम के आंकड़ों के संकलन एवं विश्लेषण के साथ इस दिशा में समाधान के लिए एक्शन प्लान बनाना होगा। समय-समय पर इसकी समीक्षा के लिए एक निगरानी तंत्र भी विकसित करना होगा। छोटे शहरों के प्रदूषण को बड़े शहरों के प्रदूषण से अलग करके नहीं, बल्कि समग्रता के आधार पर किए जाने वाले प्रयासों से ही खतरनाक होती हवा से बचा जा सकता है।

रासायनिक प्रदूषण से निजात पाने के लिए स्वच्छ ईंधन के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेजी से प्रगति करनी होगी। स्वच्छ तकनीक उद्योग की संभावनाओं के विस्तार पर भी तेजी से कार्य करना होगा। कभी विश्व में वायु प्रदूषित शहरों में प्रथम आने वाला बीजिंग आज हवा गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतर रहा है। बीजिंग का उदाहरण यह उम्मीद जगाता है कि यदि इस दिशा में गंभीर प्रयास किए जाएं तो वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना मुश्किल नहीं है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)