राजीव सचान। पता नहीं ट्रेन और बस की सीट पर रुमाल, बैग आदि रखकर उस पर अपना दावा करने का चलन आज भी है या नहीं, लेकिन यह पता चल गया कि वक्फ बोर्ड आज भी ऐसा कर रहे हैं। वे जिस जमीन-संपत्ति को चाहते हैं, उस पर नोटिस भेजकर अपना दावा जता देते हैं। इसका ताजा प्रमाण तब फिर मिला, जब कर्नाटक के विजयपुरा, कलबुर्गी, बीदर आदि जिलों के किसानों को नोटिस भेजकर कहा गया कि उनकी जमीन अब वक्फ की संपत्ति है। नोटिस भेजे जाने के साथ ही जब किसानों की जमीन का मालिकाना हक बदलने का काम शुरू होने की खबर आई तो उनमें हड़कंप मचा। उन्होंने पक्ष-विपक्ष के नेताओं से गुहार लगानी शुरू की और इस तरह वक्फ बोर्ड की मनमानी का मामला सामने आया। यह मनमानी किस हद तक थी, इसका पता इससे चलता है कि अकेले विजयपुरा जिले के होनावदा गांव के किसानों को नोटिस भेजकर उनकी 1,500 एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति बता दिया गया। जब भाजपा ने इस मामले को तूल दिया तो सरकार हरकत में आई और खुद मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने कहा कि किसानों को भेजे गए नोटिस वापस लिए जाएंगे।

कर्नाटक सरकार की ओर से यह तो कहा गया कि अधिकारियों की गलती से किसानों को नोटिस चले गए, लेकिन इसके बारे में कोई खबर नहीं कि जिनकी गलती से हजारों किसानों की जमीन को वक्फ की जमीन करार देने के नोटिस जारी किए गए, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। सरकार की ओर से यह भी सफाई दी गई कि होनावदा गांव में केवल 11 एकड़ जमीन वक्फ की है, शेष किसानों की है, लेकिन किसानों का कहना है कि इस 11 एकड़ में से भी 10 एकड़ जमीन तो वह है, जहां वह अपने लोगों का अंतिम संस्कार करते हैं। उनका कहना है कि क्या हम अपने खेतों से हाथ धोने के बाद चैन से मर भी नहीं सकते। आरोप है कि वक्फ और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमीर अहमद खान ने वक्फ अधिनियम में बदलाव की पहल को देखते हुए हजारों किसानों को आनन-फानन नोटिस भेजकर उनकी जमीन को वक्फ की जमीन करार देने का काम कराया। उनके अधीन काम करने वालों को इतनी जल्दी थी कि उन्होंने मुस्लिम किसानों को भी नोटिस भेज दिए। इतना ही नहीं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण वाली कई ऐतिहासिक इमारतों को भी वक्फ संपत्ति घोषित करने के नोटिस जारी किए गए।

यह पहली बार नहीं है, जब किसी राज्य के वक्फ बोर्ड ने मनमाने तरीके से किसी अन्य की जमीन, भवन आदि को वक्फ की संपत्ति करार दिया हो। तमिलनाडु के उस मामले से हर कोई परिचित होगा, जिसमें एक गांव की लगभग पूरी जमीन पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोक दिया था। तिरुचिरापल्ली जिले के तिरुचेंथुरई गांव में एक 1,500 साल पुराना मंदिर है। कुछ समय पहले वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि मंदिर और उसके आसपास की सारी जमीन वक्फ की है। वक्फ बोर्ड के पास अपने इस दावे के पक्ष में कोई प्रमाण नहीं था, लेकिन उसने नोटिस जारी कर करीब-करीब पूरे गांव पर अपना दावा कर दिया। गांव के लोगों को वक्फ बोर्ड की मनमानी का पता तब चला, जब एक किसान ने अपनी जमीन बेचने की पहल की। जब इस मामले की जांच हुई तो वक्फ बोर्ड का दावा फर्जी पाया गया। जांच में यह भी पता चला कि वक्फ बोर्ड ने फर्जी दस्तावेज बना रखे थे। वक्फ बोर्ड की कलई खोलने का काम 1,500 साल पुराने मंदिर के शिलालेख ने भी किया। यह सनद रहे कि 1,500 साल पहले इस्लाम का उदय भी नहीं हुआ था और वह भारत तो बहुत बाद में आया।

हाल के समय में वक्फ बोर्डों की मनमानी के कई उदाहरण आ चुके हैं। ये दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत में देखने को मिले हैं। इसके बाद भी वक्फ अधिनियम में संशोधन की पहल का विरोध हो रहा है। यह विरोध मुस्लिम समुदाय के मजहबी नेता तो कर ही रहे हैं, अधिसंख्य विपक्षी दलों के नेता भी कर रहे हैं। विपक्षी नेताओं की मानें तो मौजूदा वक्फ अधिनियम में कहीं कोई खामी नहीं और इसलिए उसमें किसी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं। यदि वास्तव में ऐसा ही है तो क्या वे वक्फ अधिनियम की तर्ज पर किसी सनातन भू अधिनियम की पैरवी करेंगे, ताकि हिंदू समुदाय भी अपने मठ, मंदिरों और उनकी जमीनों की रक्षा कर सके और उनका नियमन कर सके? न्याय का तकाजा तो यह कहता है कि सभी समुदायों के लिए वैसा ही अधिनियम होना चाहिए, जैसा मुस्लिम समाज के लिए वक्फ अधिनियम है। केंद्र सरकार की ओर से मौजूदा वक्फ कानून में संशोधन की जो पहल की जा रही है और जिस पर संसद की संयुक्त समिति यानी जेपीसी विचार कर रही है, उसके कामकाज से विपक्षी सांसद बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं। इसी कारण जेपीसी की बैठकों में हंगामा हो रहा है।

जेपीसी अध्यक्ष के रवैये से विपक्षी सदस्य इतने खफा हैं कि वे उसका बहिष्कार करने की धमकी दे रहे हैं। पता नहीं उनकी आपत्ति क्या है, लेकिन यदि वे कर्नाटक के विजयपुरा जिले का मामला सामने आने के बाद भी यह चाहते हैं कि वक्फ कानून में किसी तरह का संशोधन-परिवर्तन न हो तो यह स्वीकार नहीं हो सकता। देश जानबूझकर जीती मक्खी नहीं निगल सकता। इससे इन्कार करना खुद को और साथ ही देश को जानबूझकर धोखा देना है कि मौजूदा वक्फ कानून में किसी बदलाव की जरूरत नहीं। इस कानून में ऐसे बदलाव किए ही जाने चाहिए, जिससे एक ओर जहां वक्फ बोर्ड मनमानी न कर सकें, वहीं दूसरी ओर वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग थमे।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)