सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कि सरकार हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती, केवल इसलिए ऐतिहासिक नहीं है कि यह नौ सदस्यीय संविधान पीठ की ओर से दिया गया, बल्कि इसलिए भी है, क्योंकि इसने उस समाजवादी विचार को आईना दिखाया, जिसे सरकारों की रीति-नीति का अनिवार्य अंग बनाने का दबाव रहता था। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन समाजवादी और वामपंथी सोच वालों के लिए भी झटका है, जो यह माहौल बनाने में लगे हुए थे कि देश में गरीबी और असमानता तभी दूर हो सकती है, जब सरकार संपत्ति का पुनर्वितरण करने में सक्षम हो और उसे यह अधिकार मिले कि वह किसी की भी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि सरकार एक हद तक ही ऐसा कर सकती है। अपने फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से यह भी रेखांकित कर दिया कि आपातकाल के समय संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलरिज्म के साथ समाजवाद शब्द जोड़कर भारतीय शासन व्यवस्था में समाजवादी तौर-तरीके अपनाने का जो काम किया गया था, वह निरर्थक था। अच्छा हो कि इस निरर्थकता को वे लोग भी समझें, जो संपत्ति के सृजन से अधिक अहमियत उसका पुनर्वितरण करने पर देते हैं। यह देश को समृद्धि की ओर ले जाने का रास्ता नहीं है। हो भी नहीं सकता, क्योंकि दुनिया भर का अनुभव यही बताता है कि जिन देशों ने अपने लोगों की भलाई के नाम पर अतिवादी समाजवादी तौर-तरीके अपनाए, वे आर्थिक रूप से कठिनाइयों से ही घिरे।

निजी संपत्ति संबंधी सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने करीब चार दशक पुराने उस फैसले को खारिज करने का काम किया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट करने की आवश्यकता भी समझी कि उक्त फैसला एक विशेष आर्थिक और समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था। उसने यह भी रेखांकित किया कि पिछले कुछ दशकों में गतिशील आर्थिक नीति अपनाने से ही भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह भी पता चल रहा है कि देश को किसी विशेष प्रकार के आर्थिक दर्शन के दायरे में रखना ठीक नहीं है और आर्थिक तौर-तरीके ऐसे होने चाहिए, जिनसे एक विकासशील देश के रूप में भारत उभरती चुनौतियों का सामना कर सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निजी संपत्ति के मामले में अब इसे लेकर कोई संशय नहीं रहेगा कि क्या समुदाय का संसाधन है और क्या नहीं? कोई भी देश हो, उसे अपना आर्थिक दर्शन देश, काल और परिस्थितियों के हिसाब से अपनाना चाहिए, न कि इस हिसाब से कि पुरानी परिपाटी क्या कहती है? समय के साथ बदलाव ही प्रगति का आधार है। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार को मजबूती प्रदान की।