डा. ब्रजेश कुमार तिवारी : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार विश्वविद्यालय परिसर में जाति का जहर घोलने का काम किया गया। इसमें दोराय नहीं कि ऐसे कृत्य जेएनयू के दीर्घकालिक महत्व को कमजोर करते हैं, क्योंकि शिक्षक और विद्यार्थी की कोई जाति नहीं होती। कहा भी गया है कि ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।’ 1969 में अपनी स्थापना के समय से ही जेएनयू हमेशा ही उत्कृष्टता, रचनात्मकता और बौद्धिकता की अनवरत खोज में रहा है। हालांकि वहां कई बार विचारधाराओं का टकराव होता रहा है, पर कभी लोगों ने शालीनता नहीं छोड़ी, लेकिन अब ये विरोध विद्रूप होते जा रहे हैं। जेएनयू की एक खास छवि रही है। विचारों की दुनिया में तो इसका विशेष स्थान है। दुख की बात यह है कि कुछ लोग इसकी इसी लोकप्रियता का दुरुपयोग अपने एजेंडे एवं नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए करते रहे हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर को खेमों में बांटकर इसकी वर्षों की कमाई गई प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम किया है।

अमेरिका की हार्वर्ड यूर्निवर्सिटी की तर्ज पर बनाए गए इस विश्वविद्यालय में प्राचीन नालंदा से लेकर मास्को एवं पेरिस विश्वविद्यालय सहित लंदन स्कूल आफ इकोनमिक्स तक के विचार समाए हैं। जेएनयू ने गरीब परिवारों से आने वाले छात्रों के लिए भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करना संभव बनाया है। सामान्य आरक्षण के अलावा जेएनयू एकमात्र ऐसा शिक्षा संस्थान है, जहां महिलाओं, गरीबों एवं पिछड़े क्षेत्र से आने वाले छात्रों को अतिरिक्त वरीयता दी जाती है। उच्च शिक्षा की आकांक्षा रखने वाले देश के तमाम युवाओं का यहां पढ़ने का सपना होता है। इसी कारण इस विश्वविद्यालय की महत्ता बनी हुई है। विश्व की लगभग सभी भाषाएं यहां पढ़ाई जाती हैं।

जेएनयू में सामाजिक विज्ञान, आधुनिक विज्ञान के साथ ही बदलते समय में स्कूल आफ मैनेजमेंट और स्कूल आफ इंजीनियरिंग भी आरंभ हुआ है। यहां यूपीएससी के आकांक्षी हैं तो दूसरी तरफ शोध उन्मुख विद्वान भी। मंत्री, अकदामिक विद्वान, चर्चित नौकरशाह देने का श्रेय भी जेएनयू को है। लगभग आठ हजार से ज्यादा छात्रों और करीब 450 शिक्षकों वाला यह संस्थान भारत की सभी रैंकिंग में शीर्ष पर रहता है। इसका नाम दुनिया भर के अच्छे विश्वविद्यालयों में भी शामिल है।

यहां की समालोचनात्मक मानसिकता उच्च बुद्धि की सूचक है। जेएनयू शिक्षा जगत और बाहरी दुनिया के बीच संबंधों पर खुलकर संवाद करता है। वास्तव में जेएनयू सवाल करना, बहस करना एवं असहमति को स्वीकार करने की क्षमता विकसित करता है। इसीलिए विश्वविद्यालय जीवंत चर्चाओं के लिए जाना जाता है। देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय पुस्तकालयों में से एक जेएनयू लाइब्रेरी सहित पार्थसारथी राक्स (कैंपस के जंगल में छोटा-सा टीला) और गंगा ढाबा आज भी बौद्धिक चर्चाओं के केंद्र हैं। यह भी माना जाता है कि विभिन्न विषयों की तह तक जाने की जैसी चाह जेएनयू में है, वैसी अन्यत्र कहीं नहीं।

कुछ ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के चलते कोई भी इस विराट विश्वविद्यालय को गलत रूप में चित्रित नहीं कर सकता, क्योंकि इन चंद लोगों के अलावा जेएनयू के ज्यादातर विद्यार्थी अपने काम से देश को गौरवान्वित करते रहे हैं। राष्ट्र निर्माण में इस विश्वविद्यालय और इसके छात्रों की अहम भूमिका है। प्रत्येक वर्ष जेएनयू के कई छात्र-छात्राएं प्रशासनिक, पुलिस और विदेश सेवाओं में जाते हैं। अभी हाल के वर्षों में भारतीय आर्थिक सेवा में शीर्ष रैंकिंग के साथ ही लगभग 70 प्रतिशत चयनित उम्मीदवार जेएनयू के ही थे। आज इसके पूर्व छात्र-छात्राएं नीति संस्थानों और मीडिया के उच्च पदों पर आसीन हैं। साथ ही कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों के अध्यक्ष एवं अनुसंधान संस्थानों के निदेशक जेएनयू से जुड़े हैं। कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी जेएनयू से ही पढ़े हैं। फिल्मी दुनिया तक के कई चर्चित नाम जेएनयू के पूर्व छात्र-छात्राएं रहे हैं। स्थापना के पांच दशकों के बाद आज भी जेएनयू दुनिया के तमाम विकसित देशों की सूची में इतनी काबिलियत तो रखता ही है कि उसे कोई नजरअंदाज न कर पाए।

पिछले दिनों जेएनयू की चर्चा उसकी दीवारों पर लिखे गए कुछ अपशब्दों के चलते हो रही थी, पर शायद ही कभी यह बताया गया हो कि इसी विश्वविद्यालय में सेना को समर्पित एक ‘वाल आफ हीरोज’ भी स्थापित है, जहां 21 परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं। विरोध-प्रदर्शनों के अलावा भी इस विश्वविद्यालय की एक बड़ी तस्वीर है, जिसमें देशभक्ति है और कुछ कर गुजरने का जज्बा और नेतृत्व करने का साहस है। जेएनयू में भारतीय संस्कृति के सभी रंग झलकते हैं। वहां छोटे-बड़े सभी राज्यों के छात्र-छात्राएं अध्ययन करते हैं। परिसर में इमारतों, छात्रावासों, सड़कों और सुविधाओं के नाम भारतीय विरासत और संस्कृति से लिए गए हैं। यह भारत की सबसे अच्छी सांस्कृतिक और भौगोलिक तस्वीर का प्रतिनिधित्व करता है।

यह लगभग तय है कि राजनीतिक और वैचारिक आधार पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता ही रहेगा, लेकिन इसके साथ ही हमें ऐसी गतिविधियों को भी रोकना होगा, जो राष्ट्र-विरोधी हैं या राष्ट्र की संप्रभुता के खिलाफ हैं। आज यह आवश्यक है कि किसी भी वैचारिक सोच से ज्यादा हम सभी राष्ट्रीय हित में बात करें। भारतीयता जेएनयू की विरासत है और इसे मजबूत करना हमारा कर्तव्य है।

(लेखक जेएनयू के अटल स्कूल आफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं)