हर्ष वी. पंत। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रशासन को आकार देना भी शुरू कर दिया है। इससे उनके व्यापक दृष्टिकोण एवं भावी नीतियों की भी कुछ झलक दिखाई पड़ती है। चूंकि अमेरिका एक बहुत ही तल्ख एवं तनाव भरे चुनावी दौर से गुजरा है तो नए प्रशासन पर भी उसकी तात्कालिक छाप दिखाई दे रही है। अपने नए प्रशासन के चयन में स्पष्ट है कि ट्रंप ने उन मुद्दों पर मुखर लोगों को चुना है, जिन्हें उन्होंने अपने चुनाव अभियान के केंद्र में रखा। साथ ही अपने वफादारों पर भी उन्होंने भरपूर मेहरबानी दिखाई है।

अगले साल की शुरुआत में जब बतौर राष्ट्रपति वह दूसरा कार्यकाल शुरू करेंगे तो सूजी वाइल्स उनकी चीफ आफ स्टाफ की भूमिका में रहेंगी। यह पद संभालने वाली वाइल्स पहली महिला होंगी। वह ट्रंप के चुनाव अभियान संचालन के शीर्ष से जुड़ी रहीं और उनकी सफलता और सुगठित चुनाव अभियान का श्रेय एक बड़ी हद तक वाइल्स को दिया जा रहा है। जहां तक ट्रंप के मूल मुद्दों की बात है तो पूरे चुनाव अभियान में ही उन्होंने अवैध अप्रवासियों का मुद्दा केंद्र में रखा। अवैध अप्रवासियों को ट्रंप अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर अमेरिकी नागरिकों के लिए खतरा मानते हैं। चुनाव जीतने के बाद भी उन्होंने कई बार दोहराया है कि उनका प्रशासन करीब एक करोड़ अवैध अप्रवासियों को खदेड़ कर ही दम लेगा। इतने बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की राह में आने वाली संभावित बाधाओं को दरकिनार करते हुए ट्रंप ने कहा कि इस अभियान की जटिलताओं और लागत की उन्हें परवाह नहीं और इसे किसी भी तरह अंजाम दिया जाएगा। इस अभियान की कमान संभालने का जिम्मा उन्होंने टाम होमन को सौंपा है।

होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के मुखिया बने टाम होमन का इस मुद्दे पर आक्रामक रुख किसी से छिपा नहीं है। वहीं, उप नीति प्रमुख के रूप में स्टीवन मिलर के पास भी इसका एक बड़ा दारोमदार होगा।

अमेरिकी राजनीति में विदेश नीति की अपनी महत्ता है और राष्ट्रपति के बाद प्रशासन में अगर सबसे अधिक नजरें किसी नियुक्ति पर लगी होती हैं तो संभवत: वह विदेश मंत्री का पद होता है। इसका एक बड़ा कारण शेष विश्व के साथ अमेरिका की सक्रियता और उसका वैश्विक प्रभाव है। इस पद के लिए ट्रंप ने सीनेटर मार्को रुबियो को चुना है और उनके चयन की वजह भी एकदम स्पष्ट है कि वह चीन से लेकर ईरान तक सख्त विदेश नीति बनाने की वकालत करते आए हैं।

ट्रंप चीन को अमेरिकी प्रभुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं और उसकी काट तलाशने का जिम्मा रुबियो पर होगा। इसी तरह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए पद पर भी लोगों की नजरें टिकी होती हैं। उसके लिए ट्रंप ने तमाम चर्चित नामों के बीच माइक वाल्ट्ज को चुना है, जो चीन से लेकर पाकिस्तान के प्रति सख्य रवैये के लिए जाने जाते हैं। वाल्ट्ज इंडिया काकस यानी भारत के

पक्ष में आवाज बुलंद करने वाले मंच के बेहद सक्रिय सदस्य रहे हैं। खुफिया विभाग की निदेशक के रूप में हिंदू अमेरिकी तुलसी गबार्ड का चयन भी बहुत कुछ संदेश देता है। गबार्ड यही मानती आई हैं कि अमेरिका को विश्व में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। उनका यह दृष्टिकोण ट्रंप की व्यापक नीतियों से काफी मेल खाता है और वह इस महत्वपूर्ण पद के लिए पहली पसंद बनने में

सफल रहीं। स्वास्थ्य मंत्री के लिए राबर्ट कैनेडी जूनियर का चयन भी काफी चर्चा में है। स्वास्थ्य को लेकर पारंपरिक दृष्टिकोण रखने वाले कैनेडी जूनियर वैक्सीन से जुड़ी मुहिम को लेकर भी चर्चा में रह चुके हैं। इन तमाम नियुक्तियों के बीच रक्षा मंत्री के रूप में पीट हेगसेथ का चयन जरूर कुछ चौंकाने वाला रहा। इस अहम जिम्मेदारी के लिए हेगसेथ के पास बहुत ज्यादा प्रशासनिक अनुभव नहीं है और हाल तक वह एक टिप्पणीकार के रूप में ही सक्रिय रहे। उनकी नियुक्ति पर रिपब्लिकन खेमे के बीच से कुछ सवाल भी उठे, लेकिन ट्रंप के व्यक्तित्व को देखते हुए ऐसे प्रश्न सतह पर ही तैरते रहे।

ट्रंप के प्रशासन के इस स्वरूप को देखते हुए कुछ जानकार यह कह रहे हैं कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने विशेषज्ञता या काबिलियत पर वफादारी को वरीयता दी है। उनकी टीम में चीफ आफ स्टाफ से लेकर एनएसए तक सभी नाम ऐसे हैं, जो लंबे समय से उनके वफादार रहे। यहां तक कि मुखर होकर उनके चुनाव अभियान का समर्थन कर रहे दिग्गज उद्योगपति एलन मस्क के लिए तो ट्रंप ने डिपार्टमेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी जैसे नए विभाग का गठन कर दिया है, जिसमें भारतीय मूल के अमेरिकी विवेक रामास्वामी उनके जोड़ीदार होंगे। चुनाव के दौरान इंटरनेट मीडिया पर ‘डीओजीई’ के रूप में सामने आया यह शिगूफा अब साकार रूप ले चुका है। ट्रंप प्रशासन में अगर किसी एक पहल पर सबसे अधिक निगाहें टिकी हुई हैं तो वह यही विभाग है। इस विभाग को जिम्मा दिया गया है कि वह सरकारी फिजूलखर्ची को चिह्नित कर उसे घटाने के उपाय तलाशे। इसके लिए राष्ट्रपति ट्रंप ने एलन मस्क और विवेक रामास्वामी को जुलाई 2026 तक का समय दिया है। इसी वर्ष अमेरिका अपनी स्वतंत्रता की 250वीं वर्षगांठ मनाएगा। सरकारी खर्च को घटाना भी ट्रंप के प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक रहा है।

भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ट्रंप प्रशासन की नई तस्वीर उसके लिए उम्मीदें जगाने वाली है। ट्रंप प्रशासन की नीतियों से न केवल भारत के एक बड़े लाभार्थी बनने के आसार हैं, बल्कि भूराजनीतिक मोर्चे पर भी उसका वजन बढ़ेगा।

ट्रंप प्रशासन में अधिकांश चेहरे भारत समर्थक हैं। इससे भी बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच आत्मीय रिश्तों के चलते यह द्विपक्षीय साझेदारी आने वाले दिनों में नई ऊंचाई पर पहुंच सकती है। चीनी आक्रामकता और विस्तारवाद सहित कई मुद्दों पर दोनों सरकारों का सोच भी एकसमान है। चूंकि ट्रंप प्रशासन चीन के विरुद्ध और आक्रामक रवैया अपनाएगा तो इसे उपजने वाली स्थिति में उसे भारत की कहीं अधिक आवश्यकता होगी। हिंद-प्रशांत की सुरक्षा से लेकर आर्थिक हितों को लेकर भी सहमति बढ़ने के आसार हैं।

(लेखक नई दिल्ली स्थित आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)