हिमाचल में क्यों नहीं गुजरात जैसा प्रदर्शन! भाजपा करे विचार, कांग्रेस के सामने है सक्षम सरकार देने की चुनौती
हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन के क्रम को बदलने के लिए खूब जोर लगाया लेकिन सत्ता बदलने का रिवाज कायम रहा। कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने के साथ भाजपा की कमजोरियों को अच्छे से भुनाया।
[संजय गुप्त]। गुजरात में भाजपा की लगातार सातवीं बार जीत उसके लिए एक ऐतिहासिक और उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह उपलब्धि भाजपा की नीतियों, उसकी सरकार के कार्यों और नेतृत्व के प्रति गुजरात की जनता के भरोसे को व्यक्त करती है। इसके पहले लगातार सात बार जीत का रिकार्ड पश्चिम बंगाल में वाम दलों ने बनाया था। आश्चर्य नहीं कि भाजपा वाम दलों के रिकार्ड को तोड़ दे। जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वाम दलों के सत्ता में रहते समय बंगाल में किस तरह चुनावी हिंसा होती थी। यह भी एक तथ्य है कि वाम दलों ने अपने लंबे शासनकाल में बंगाल को खस्ताहाल कर दिया, जबकि भाजपा के शासन में गुजरात तरक्की कर गया।
स्पष्ट है कि आज के सूचना प्रधान युग, चुनाव आयोग एवं मीडिया की सक्रियता और ईवीएम के दौर में लगातार सातवीं बार जीत हासिल करना कहीं अधिक मायने रखता है। शायद यही कारण है गुजरात के नतीजों की धमक पूरे देश में सुनाई दे रही है। गुजरात के परिणाम यह भी बता रहे हैं कि राज्य की जनता को नरेन्द्र मोदी पर वैसा ही विश्वास बना हुआ है, जैसे उनके मुख्यमंत्री रहते था। इसमें संदेह नहीं कि पहले मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का चौतरफा विकास करके दिखाया है। भाजपा को गुजरात में 156 सीटें मिलना इसलिए विशेष है, क्योंकि पिछली बार उसे 99 सीटें ही मिली थीं। तब कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी और 77 सीटें हासिल की थीं। इसका एक कारण पाटीदारों के आंदोलन के साथ नोटबंदी और जीएसटी का असर था।
यह समझना कठिन है कि इस बार कांग्रेस गुजरात में पूरी ताकत से चुनाव क्यों नहीं लड़ी? कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी केवल एक दिन के लिए गुजरात प्रचार करने गए। इस दौरान उन्होंने केवल दो ही सभाओं को संबोधित किया। क्या उन्हें इसका आभास था कि कांग्रेस को कुछ हासिल होने वाला नहीं है? सच जो भी हो, उनका इस तरह हथियार डालना समझ नहीं आया। गुजरात में भाजपा ने जीत हासिल करने के लिए पहले तो एंटी इनकंबेंसी को भांपते हुए दस माह पहले मुख्यमंत्री के साथ सभी मंत्रियों को बदला। इसके बाद असंतुष्टों को संतुष्ट करने का काम किया। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने गुजरात में जमकर प्रचार किया और लोगों को यह संदेश दिया कि राज्य की प्रगति में भाजपा का हाथ है। पीएम नरेन्द्र मोदी की कुशल प्रशासक की छवि के चलते जनता तक यह संदेश सही तरह पहुंचा।
प्रधानमंत्री के साथ गृहमंत्री अमित शाह की चुनावी रणनीति ने भी असर डाला। इस बार गुजरात में भाजपा के सामने कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी की भी चुनौती थी। उसने पंजाब की तरह कांग्रेस के वोट अपने पाले में करने की रणनीति बना रखी थी, लेकिन वह एक सीमा तक ही कारगर हुई। भाजपा की लहर के सामने वह कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उसने करीब 13 प्रतिशत वोट हासिल कर अपनी जगह बनाई। आम आदमी पार्टी यह जगह इसीलिए बना सकी, क्योंकि वह कांग्रेस के वोट में सेंध लगाने में सफल रही।
हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने बारी-बारी से सत्ता परिवर्तन के क्रम को बदलने के लिए खूब जोर लगाया, लेकिन सत्ता बदलने का रिवाज कायम रहा। कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने के साथ भाजपा की कमजोरियों को अच्छे से भुनाया। हिमाचल की जयराम ठाकुर सरकार एंटी इनकंबेंसी का सामना करने के साथ गुटबाजी से भी दो-चार थी। रही-सही कसर विद्रोही उम्मीदवारों ने पूरी कर दी। एक विद्रोही उम्मीदवार तो प्रधानमंत्री के मनाने से भी नहीं माना। यह आश्चर्यजनक है कि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के संसदीय क्षेत्रों में भी भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसे लेकर उनका आलोचकों के निशाने पर आना स्वाभाविक है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि टिकट वितरण का काम सही तरह नहीं किया जा सका।
हिमाचल में कांग्रेस की जीत ने पार्टी को एक बड़ी राहत अवश्य दी है, लेकिन उसने राज्य की जनता से जैसे लोक लुभावन वादे कर रखे हैं, उन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा। जहां कांग्रेस के सामने एक सक्षम सरकार देने की चुनौती है, वहीं भाजपा को इस पर विचार करने की जरूरत है कि वह गुजरात जैसा प्रदर्शन हिमाचल में क्यों नहीं कर सकी? इसी तरह जैसा अनुशासन गुजरात में दिखा, वैसा हिमाचल में क्यों नहीं नजर आया? कहीं ऐसा तो नहीं कि दिग्गजों के अहं के चलते पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा? हिमाचल में आम आदमी पार्टी का भी प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके बाद भी गुजरात और दिल्ली नगर निगम चुनावों के नतीजे उसका उत्साह बढ़ाने वाले हैं। दिल्ली में उसने 15 वर्षों से काबिज भाजपा को हराया। भाजपा को दिल्ली नगर निगम में इसीलिए हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि वह राजधानी में कोई मजूबत चेहरा सामने नहीं ला सकी।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के बाद अगले वर्ष कम से कम नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। उन्हें एक तरह से अगले आम चुनावों के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जाएगा। यदि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं करती, जहां उसका भाजपा से सीधा मुकाबला होगा तो उसके राष्ट्रीय स्तर पर उत्थान की संभावनाएं और कम होंगी। कांग्रेस की जैसी स्थिति है, उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि हिमाचल की जीत कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ाने का काम करेगी। राहुल गांधी भले ही भारत जोड़ो यात्रा के जरिये अपनी व्यक्तिगत छवि मजबूत करने में जुटे हों, लेकिन वह पार्टी को कोई सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं। यह काम बतौर अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी नहीं कर पा रहे हैं।
कांग्रेस किस तरह बदलने का नाम नहीं ले रही है, इसका पता इससे चलता है कि जहां गुजरात चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगामी चुनावों की तैयारियों का जायजा लिया, वहीं राहुल गांधी नतीजे आने के बाद भारत जोड़ो यात्रा को विराम देकर छुट्टी मनाने चले गए। इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकते कि जहां गुजरात की जीत ने मोदी की लोकप्रियता को नए सिर से साबित किया, वहीं हिमाचल की जीत का श्रेय राहुल गांधी के खाते में नहीं जा रहा है।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]