जागरण संपादकीय: जहरीली शराब का कहर, बिक्री पर रोक लगाने में विफल बिहार सरकार
सरकार को कम से कम अब तो इस नतीजे पर पहुंच जाना चाहिए कि दुनिया में कहीं पर भी शराबबंदी सफल नहीं हुई है। बिहार में भी यह नाकाम है। कहने को राज्य में शराबबंदी है लेकिन वह हर जगह उपलब्ध है और यहां तक कि उसकी होम डिलीवरी भी होती है। स्पष्ट है कि अवैध तरीके से शराब बेचने वालों ने अपना एक सुगठित तंत्र विकसित कर लिया है।
बिहार के सिवान, छपरा और गोपालगंज जिलों में जहरीली शराब से अब तक लगभग 50 लोगों की मौत शराबबंदी की पोल खोलने के साथ यह भी बयान कर रही है कि राज्य सरकार और उसका तंत्र अवैध तरीके से शराब के निर्माण और उसकी बिक्री को रोक पाने में विफल है। जहरीली शराब के चलते इतने अधिक लोगों की मौत इसलिए गंभीर चिंता की बात है कि बिहार में इसके पहले भी जहरीली शराब कई लोगों की जान ले चुकी है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि जहरीली शराब से मौतों के बाद शराब माफिया के खिलाफ अभियान छेड़ दिया गया है और उनकी धरपकड़ की जा रही है। यदि ड्रोन कैमरों की मदद से शराब की भट्ठियों का पता लगाकर उन्हें नष्ट करने का अभियान पहले से चल रहा होता तो शायद इतने अधिक लोग जहरीली शराब के कारण काल के गाल में नहीं समाते। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि जहरीली शराब के सेवन के बाद जिनकी जान बच गई है उनमें से कुछ अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं।
बिहार सरकार को कम से कम अब तो इस नतीजे पर पहुंच जाना चाहिए कि दुनिया में कहीं पर भी शराबबंदी सफल नहीं हुई है। बिहार में भी यह नाकाम है। कहने को राज्य में शराबबंदी है, लेकिन वह हर जगह उपलब्ध है और यहां तक कि उसकी होम डिलीवरी भी होती है। स्पष्ट है कि अवैध तरीके से शराब बेचने वालों ने अपना एक सुगठित तंत्र विकसित कर लिया है। समस्या केवल यह नहीं है कि दूसरे राज्यों से चोरी-छिपे शराब लाकर बेचने वाले मालामाल हो रहे हैं। समस्या यह भी है कि शराब की वैध बिक्री से राज्य सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का जो राजस्व मिलता, वह अवैध कमाई के रूप में शराब माफिया और उन्हें संरक्षण देने वालों की जेबों में जा रहा है।
निःसंदेह शराबबंदी न होने के बाद भी गुपचुप रूप से शराब बनाने-बेचने का काम हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस तथ्य की अनदेखी कर दी जाए कि शराबबंदी अवैध तरीके से शराब बनाने वालों को फलने-फूलने का मौका देती है। वे ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने के फेर में घटिया या फिर नकली शराब बनाते हैं, जो कई बार जहरीली हो जाती है। ऐसे तत्व तभी सक्रिय हो पाते हैं, जब उनकी अनदेखी की जाती है। जहरीली शराब कांड के बाद शराब की कई अवैध भट्ठियां और बनी-अधबनी शराब मिलने से इसकी पुष्टि ही होती है कि इसकी निगरानी सही तरह नहीं हो पा रही थी कि कहीं गुपचुप रूप से घटिया और अंततः जानलेवा साबित होने वाली शराब का निर्माण तो नहीं किया जा रहा है? इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि बिहार में बाहर से लाकर शराब बेचने वाले भी सक्रिय हैं और उसे अवैध तरीके से बनाने वाले भी।