[रमेश कुमार दुबे]। इस देश में हर स्तर पर ‘आपदा में अवसर’ तलाशने वालों का जमावड़ा हो, वहां केंद्र से भेजे गए एक रुपये में से पूरे सौ पैसे गरीबों तक पहुंच रहे हैं तो इसे एक बड़ी उपलब्धि ही माना जाएगा। उल्लेखनीय है कि 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सूखा प्रभावित कालाहांडी दौरे पर कहा था कि सरकार जब भी एक रुपया खर्च करती है तो लोगों तक 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। वह रिसाव से उपजे भ्रष्टाचार की बात कर रहे थे।

जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण योजना (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी) को बड़े पैमाने पर शुरू किया था तब विरोधियों ने कहा था कि भारत जैसे पिछड़े देश में यह योजना भ्रष्टाचार बढ़ाने का काम करेगी, लेकिन आज दुनिया इस योजना की प्रशंसा कर रही है। यह विडंबना है कि एक ओर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष डीबीटी एवं खाद्य सुरक्षा योजना की प्रशंसा कर रहे हैं तो दूसरी ओर वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को पिछले साल की तुलना में सात पायदान नीचे (107) दिखाया जा रहा है। इस विडंबना का कारण है कि भुखमरी सूचकांक जिन चार संकेतकों के आधार पर तैयार किया जाता है, उनमें तीन बच्चों से जुड़े हैं जो संपूर्ण आबादी की जानकारी नहीं देते।

चौथा और सबसे महत्वपूर्ण सूचकांक कुल जनसंख्या में कुपोषित आबादी का है। इस सूचकांक को भी 138 करोड़ वाले देश के मात्र 3,000 लोगों के आधार पर तय किया गया। इसी कारण भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया। रिपोर्ट में जिस श्रीलंका को 64वें पायदान पर रखा गया है, वहां आर्थिक उथल-पुथल के बीच भारत द्वारा भेजी गई खाद्य सामग्री से ही स्थिति नियंत्रण में आई। इससे रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर अपने आप सवाल उठने लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बड़े पैमाने पर सुधार किया है, जिससे राशन प्रणाली के अनाज की कालाबाजारी, तस्करी थम गई है। इसे विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास ने भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने गरीब और जरूरतमंद लोगों को जिस प्रकार समर्थन दिया, वह असाधारण है। गरीबी एवं पारस्परिक समृद्धि नामक रिपोर्ट जारी करते हुए डेविड मालपास ने कहा कि अन्य देशों को भी व्यापक सब्सिडी के बजाय भारत की तरह लक्षित नकद हस्तांतरण जैसा कदम उठाना चाहिए। डेविड मालपास ने कहा कि महामारी की सबसे बड़ी कीमत गरीब और कमजोर लोगों को चुकानी पड़ी है।

डीबीटी के जरिये भारत ग्रामीण क्षेत्र के 85 प्रतिशत परिवारों और शहरी क्षेत्र के 69 प्रतिशत परिवारों को खाद्य एवं नकदी समर्थन देने में सफल रहा। डीबीटी योजना में जैम त्रिकोण यानी जन-धन, आधार कार्ड और मोबाइल नंबर की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इससे बीच में पैसा हजम करने वाले बाहर हो गए। भारत सरकार ने 2020-21 के दौरान डीबीटी के माध्यम से 5.52 लाख करोड़ रुपये सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जो 2021-22 में बढ़कर 6.3 लाख करोड़ रुपये हो गए। 2015 से अब तक 25 लाख करोड़ रुपये डीबीटी के माध्यम से लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जा चुके हैं। इसमें से 56 प्रतिशत धनराशि पिछले ढाई साल में हस्तांतरित की गई।

स्पष्ट है कोरोना संकट के दौरान डीबीटी जीवन रक्षक साबित हुई। आज केंद्र सरकार के 53 मंत्रालयों की 319 योजनाएं डीबीटी से जुड़ी हैं। राज्य सरकारों की योजनाओं को जोड़ दिया जाए तो कुल 450 से अधिक योजनाओं में गरीबों को लाभ देने के लिए डीबीटी का उपयोग किया जा रहा है। इन योजनाओं से 105 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इनमें से कई लोगों को एक से अधिक योजनाओं का लाभ मिल रहा है। 2021-22 में डीबीटी के तहत 783 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए।

डिजिटल इंडिया के माध्यम ने उदाहरण प्रस्तुत किया है कि प्रौद्योगिकी का सही इस्तेमाल पूरी मानवता के लिए कितना क्रांतिकारी है। आठ-दस साल पहले जन्म प्रमाण पत्र, बिल जमा करने, राशन, प्रवेश, रिजल्ट और बैंकों के लिए भी लाइन लगती थी, लेकिन अब ये सेवाएं डिजिटल होने से सुलभ, तेज और सस्ती हो गई हैं। डिजिटल इंडिया ने सरकार को नागरिकों के द्वार और फोन तक पहुंचा दिया है। पांच लाख से अधिक कामन सर्विस सेंटर और ग्रामीण स्टोर अब ई कामर्स को ग्रामीण भारत में लेकर जा रहे हैं। अब सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते हैं।

मोदी सरकार के प्रयासों से देश में डाटा की कीमत बहुत कम है। इसी कारण छोटे व्यापारी, उद्यमी, कारीगर इन सभी को डिजिटल इंडिया ने मंच दिया। आज रेहड़ी-पटरी वाला भी कह रहा है कि कैश नहीं यूपीआइ कर दीजिए तो यह मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम का ही नतीजा है। हाल में 5जी सेवा लांच करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत सरकार का उद्देश्य सभी भारतीयों को इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराना है।

उन्होंने कहा कि इस तकनीक को सिर्फ वायस काल या वीडियो देखने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसमें नई क्रांति होनी चाहिए। डिजिटल इंडिया अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इससे योजनाओं के क्रियान्वयन की सटीक जानकारी हो जाती है, जिससे वे समय पर पूरी हो जाती हैं। घर-घर बिजली पहुंचाने की योजना हो या हर रसोईघर तक गैस सिलेंडर, आज योजनाएं समय से पहले लक्ष्य हासिल कर रही हैं तो उसका कारण मोदी सरकार की डिजिटल निगरानी प्रणाली ही है।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक एवं केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं)