राजीव सचान : कर्नाटक की कांग्रेस सरकार जितनी प्रतिबद्ध अपनी पांच गारंटियों को पूरा करने के लिए है, उतनी ही अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए। इसी सिलसिले में वह पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कई फैसलों को पलटने का काम जोर-शोर से कर रही है। उसने पहले की सरकार की ओर से बनाए गए मतांतरण रोधी कानून को रद करने का फैसला किया है। इस कानून के तहत छल-कपट या लोभ-लालच से मतांतरण कराने पर तीन से दस साल तक की सजा का प्रविधान था। कर्नाटक की नई सरकार को यह कानून रास नहीं आया।

यदि यह कानून रद होता है तो मतांतरण करने वालों को जिलाधिकारी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अतिरिक्त यदि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग अपना पंथ बदलते हैं तो वे इन वर्गों को मिलने वाले लाभों से वंचित नहीं होंगे। स्पष्ट है कि यह कानून रद होने से मतांतरण का सिलसिला कायम होगा और धोखे या लालच से मतांतरण कराने वालों का दुस्साहस भी बढ़ेगा।

कर्नाटक सरकार ने मतांतरण रोधी कानून को एक ऐसे समय रद करने का फैसला किया है, जब देश के विभिन्न हिस्सों में छल-बल से मतांतरण कराने के मामले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला भोपाल का है, जहां विजय रामचंदानी नाम के एक युवक को छह मुस्लिम लड़कों ने पकड़कर उसके गले में कुत्ते के पट्टे की तरह बेल्ट बांधी और उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया। इस घिनौनी घटना का वीडियो करीब एक माह बाद सामने आया तो हड़कंप मचा। इस वीडियो में विजय को प्रताड़ित करने वाले यह कहते सुने जा सकते हैं कि तू मियां बन जा और बड़े का मांस खाने लग। वे उसे कुत्ते की तरह भौंकने के लिए भी कहते हैं।

वीडियो में विजय को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि मैं मियां भाई बनने को तैयार हूं। विजय के भाई का आरोप है कि ये मुस्लिम लड़के एक अर्से से उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए धमका रहे थे। इसके पहले मध्य प्रदेश के ही दमोह जिले का वह मामला चर्चा में था, जिसमें गंगा-जमुना नामक स्कूल की हिंदू लड़कियों को हिजाब में दिखाया गया था। ये वे लड़कियां थीं, जिन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। यह मामला तब सामने आया, जब हाईस्कूल परीक्षा का परिणाम निकला और स्कूल ने एक पोस्टर के जरिये दावा किया कि उसके यहां पढ़ने वाले छात्रों ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस स्कूल की मान्यता रद कर इसकी जांच की जा रही है कि कहीं स्कूल प्रबंधन मतांतरण में तो लिप्त नहीं था?

धोखे और लालच से मतांतरण एक राष्ट्रव्यापी बीमारी है। हालांकि कुछ राज्यों ने छल-बल से मतांतरण रोकने के लिए कानून बना रखे हैं, लेकिन मतांतरण कराने की सनक से लैस लोगों पर उनका कोई असर नहीं। इसका प्रमाण गाजियाबाद का वह मामला है, जिसमें एक गेमिंग एप के जरिये किशोरों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता था। इस काम में लिप्त शाहनवाज उर्फ बद्दो को गिरफ्तार किया गया है। वह एक आनलाइन गेम में हारने वाले किशोरों को कुरान और नमाज पढ़ने के लिए कहता था। उसका दावा होता था कि इससे आनलाइन गेम जीतने में सफलता मिलेगी, क्योंकि अल्लाह ही सर्वशक्तिमान है।

वह अपने चंगुल में फंसे किशोरों को उनके घर के पास की मस्जिद का पता-ठिकाना भी देता था और फिर उनके पास जाकिर नाइक और ऐसे ही अन्य जिहादी मौलानाओं के वीडियो भेजता था। उसके जाल में कम से कम तीन किशोर फंस चुके थे। इनमें से एक तो यह कहकर दिन में कई बार नमाज पढ़ने पड़ोस की मस्जिद जाता था कि वह जिम जा रहा है। जब घर वालों ने पड़ताल की तो पता चला कि वह तो नमाज पढ़ने जाता है। दीन यानी इस्लाम की दावत देने के ऐसे तरीके नए नहीं हैं। इन तौर-तरीकों को अपनाकर किशोरों और गरीबों का खास तौर पर मतांतरण कराने के काम ने एक उद्योग का रूप ले रखा है। दो साल पहले यूपी पुलिस ने एक ऐसे इस्लामी दावा सेंटर का भंडाफोड़ किया था, जो मूक-बधिर छात्रों का छल-कपट से मतांतरण करा रहा था। इस दावा सेंटर के लोगों ने नोएडा के एक मूक-बधिर स्कूल के 18 छात्रों को इस्लाम स्वीकार कराया था। पुलिस का दावा है कि इस दावा सेंटर के लोगों ने कम से कम सौ लोगों को छल-कपट से मतांतरित किया। इनमें कई महिलाएं भी थीं।

सारी दुनिया को इस्लाम के झंडे तले लाने की जैसी सनक कट्टरपंथी मुसलमानों पर सवार है, वैसी ही ईसाई मिशनरियों पर भी, लेकिन कथित सेक्युलर दलों, बुद्धिजीवियों और अंग्रेजी मीडिया के एक बड़े हिस्से को धोखे और लालच से मतांतरण का सिलसिला एक मनगढ़ंत दावा लगता है। उन्हें छल-कपट से अन्य समुदाय की लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाकर इस्लाम में मतांतरित करने का सिलसिला भी वहम जान पड़ता है। हालांकि लव जिहाद के कई आरोपितों को सजा सुनाई जा चुकी है, लेकिन स्वयंभू सेक्युलर तत्वों और अंग्रेजी मीडिया के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं।

यह शुतुरमुर्गी रवैया तब है, जब लव जिहाद के नित-नए मामले सामने आ रहे हैं और वे बढ़ते ही जा रहे हैं। नाम बदलकर और पहचान छिपाकर दूसरे समुदाय की लड़कियों से प्रेम का दिखावा करने या फिर निकाह करने के न जाने कितने मामले सामने आ चुके हैं और इसे लेकर बरेली के एक उलमा फतवा भी जारी कर चुके हैं, लेकिन तथाकथित सेक्युलर तत्वों और दलों के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। वे यह समझने से इन्कार कर रहे हैं कि ऐसे मामले सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने के साथ सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम समाज का ही कर रहे हैं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)