हास्य व्यंग्य: आपदा में राहत बांटने का अवसर, साहब के 'दुख-निवारण' की व्यवस्था
उसने साहब से पहला सवाल किया इस बार की बाढ़ कितनी गंभीर है? इससे निपटने के लिए आपके पास किस तरह की योजनाएं हैं? सवाल सुनते ही साहब खुद गंभीर हो गए। बोले-देखिए यह वाली बाढ़ पहले से ज्यादा तीव्र लग रही है। हमें और अधिक योजनाओं की जरूरत होगी।
[संतोष त्रिवेदी]। देश के अधिकतर हिस्से गर्मी से तप रहे थे, पर बड़े साहब का तप इससे भी तेज निकला। उनके हिस्से में बाढ़ आई हुई थी। बाढ़ इतनी थी कि साहब के मुंह में पानी आ गया। सूखा भी तो बहुत दिनों से था। वे बेचैन हो उठे। उन्होंने अपने क्षेत्र का दौरा फाइनल कर दिया। साहब की तरह उनका व्यक्तिगत सचिव भी संवेदनशील था। सो, सचिव जी तुरंत सक्रिय हो उठे। एक विशेष विमान से अपने और साहब के 'दुख-निवारण' की व्यवस्था की। विमान अत्याधुनिक किस्म का था। उसकी खिड़कियां 'दृश्य-फ्रेंडली' थीं। देखने वाले को वही दिखता था, जो वह देखना चाहे। जैसे बाढ़ का पानी तो साफ दिखेगा, पर पानी में क्या-क्या समा गया है, यह नहीं। इसके लिए बाढ़-कमेटी है ना! वही देख लेगी। उसे भी तो रोजगार मुहैया कराना है। यह उनकी दूसरी बड़ी चिंता थी।
देखते ही देखते विमान हाजिर हो गया। साहब अपने सचिव सहित विमान में समा गए। तीन पत्रकार वहां पहले से जमे हुए थे। पहले भी वे सूखे और सरकार को बखूबी 'कवर' कर चुके थे। अब बाढ़ 'कवर' करने की जिम्मेदारी भी उनकी थी। साहब अपने सचिव की इसी तरह की दूरंदेशी के कायल थे। आज फिर हुए।
विमान उडऩे लगा। वे दोनों भी भरे मन से उड़े। साहब को रह-रहकर घर की याद आ रही थी, पर जनसेवा के आगे बेबस थे। मन ही मन सोचने लगे कि जब तक वह बाढ़ से हुए नुकसान का जायजा नहीं ले लेते, राहत-परियोजना पर काम नहीं शुरू हो पाएगा। एक पत्रकार ज्यादा उत्साहित लग रहा था। उसे न्यूज 'ब्रेक' करने की जल्दी थी। विमान अभी बाढ़-क्षेत्र में आया भी नहीं था, पर उसका सवाल आ गया।
मुस्कुराते हुए उसने साहब से पहला सवाल किया, 'इस बार की बाढ़ कितनी गंभीर है? इससे निपटने के लिए आपके पास किस तरह की योजनाएं हैं?' सवाल सुनते ही साहब खुद गंभीर हो गए। बोले-'देखिए, यह वाली बाढ़ पहले से ज्यादा तीव्र लग रही है। हमें और अधिक योजनाओं की जरूरत होगी। एक बात साफ है। सरकार इस काम में कोई कोताही नहीं बरतेगी। दौरा शुरू करने से पहले ही हमने 20 सदस्यीय 'बाढ़-राहत कमेटी' गठित कर दी है। इस बार उसका बजट भी बढ़ा दिया है। कमेटी पूरी तरह संतुष्ट है। बाकी देखते हैं कि जान-माल का कितना नुकसान हुआ है?'
इस बीच सचिव जी ने एलान किया कि हम बाढ़-ग्रस्त क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहे हैं। बाकी सवाल इलाके के अवलोकन के बाद लिए जाएंगे। सबने आसमान से नीचे की ओर झांका। हर तरफ जल ही जल दिख रहा था। खेत और ऊसर में कोई फर्क नहीं था। फसलें रोजगार की तरह गायब थीं और पानी महंगाई की तरह उफान पर था। बीच में कहीं-कहीं लंबे पेड़ विपक्षी दलों की तरह अपनी सत्ता बचाए दिख रहे थे। जन और जानवर का कोई भी निशान नहीं दिखा।
सचिव जी ने निष्कर्ष निकालते हुए घोषणा की, 'लोगों में सहन-शक्ति की अत्यंत कमी है। हो न हो, जन और जानवर आपदा के समय मैदान छोड़कर भाग गए हों! इससे हमें नुकसान का हिसाब लगाने में और समय लग सकता है।' साहब ने सहमति में सिर हिलाते हुए आश्वस्त किया कि जनकार्यों के निष्पादन के लिए समय की कोई कमी नहीं है। कमेटी को इसका भी अधिकार दे दिया गया है कि वह अगली बाढ़ से पहले इसका सही-सही आकलन कर ले।
लगभग आधे घंटे के सघन दौरे के बाद विमान विशेष हवाई पट्टी पर उतर गया। इसके बाद गेस्ट-हाउस में भोजन और विश्राम का कार्यक्रम था। दूसरा पत्रकार बड़ी देर से कसमसा रहा था। भोजन के बीच में एक महत्वपूर्ण सवाल पूछ बैठा, 'इतने व्यस्त कार्यक्रम के बीच आप कभी थकते नहीं? हमारे श्रोता जानना चाहेंगे कि आपकी इस सक्रियता का राज क्या है?'
साहब ने डकार लेते हुए उत्तर दिया, 'सच बताऊं, हमें राहत बांटने से ही राहत मिलती है। यदि आपदाएं आनी बंद हो जाएं तो लोगों का भला करने को हम तरस जाएं। इसलिए हर आपदा हमें अवसर देती है। आप स्वयं इसके गवाह हैं। तीसरा पत्रकार जो अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, उसने यह सुनकर पानी का गिलास उठा लिया। अचानक मौसम की बातें होने लगीं। सबने राहत की सांस ली।