कांग्रेस के न्याय पत्र पर वामपंथ की छाप, पांच न्याय और 25 गारंटियों पर भी उठ रहे सवाल
यह वामपंथी सोच ही है कि कांग्रेस जातिगत जनगणना करने और आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से ज्यादा करने का वादा कर रही है। 1951 की जनगणना के दौरान भी जातिगत गणना कराने की मांग रखी गई थी लेकिन तब पं. नेहरू और सरदार पटेल ने इसे खारिज कर दिया था। सरदार पटेल का मानना था कि इससे जातीय तनाव बढ़ेगा।
उमेश चतुर्वेदी। पिछले दिनों कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपना घोषणा पत्र जारी किया। पार्टी ने इसे न्याय पत्र-2024 नाम दिया है। 48 पृष्ठों के इस दस्तावेज को पढ़कर ऐसा लगता है कि कांग्रेस दुविधा में है। इसमें पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी सरकार की नीतियों का मौन समर्थन करती नजर आ रही है। आर्थिक मोर्चे पर अपनी गलतियों को सुधारती दिख रही है। साथ ही सामाजिक मुद्दों पर वामपंथी वैचारिकी से पूरी तरह ओतप्रोत नजर भी आ रही है।
उसके द्वारा मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन भी इसी का विस्तार लगता है। शायद इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कांग्रेस के न्याय पत्र पर मुस्लिम लीग और वामपंथ की छाप दिखती है। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में पांच न्याय और 25 गारंटियों के जरिये न्याय देने-दिलाने का वादा किया है। आजाद भारत के 77 में से करीब 55 साल तक कांग्रेस का ही शासन रहा है, तो क्या यह मान लिया जाए कि उसके शासन काल में न्याय की गारंटी कभी नहीं रही?
वास्तव में कांग्रेस नेतृत्व के सलाहकारों में वामपंथी सोच से ग्रस्त लोगों का दबदबा बढ़ा है, जिसका असर न्याय पत्र में भी दिखता है। पुरानी पेंशन योजना की मांग इसी का नतीजा थी। पिछले कुछ विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी ने इसे लागू करने का जोर-शोर से वादा किया था। माना गया कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस को इसी मुद्दे पर जीत मिली, लेकिन न्याय पत्र में पार्टी ने इस पर चुप्पी साध ली।
शायद उसे लगने लगा है कि आर्थिक रूप से यह उचित नहीं। उधर कर्नाटक में पांच गारंटियों को ही लागू करने के चलते बीस हजार करोड़ रुपये की योजनाएं ठप करनी पड़ी हैं। हिमाचल की कांग्रेस सरकार भी इस मोर्चे पर कठिनाई महसूस कर रही है। राजस्थान में सत्तारूढ़ रही गहलोत सरकार ने इसे लागू करने का एलान किया था, लेकिन वह भी धन के अभाव के कारण परेशान रही। शायद इसी कारण से कांग्रेस ने अब इस मुद्दे को टाल दिया है।
पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न्यूनतम न्याय योजना का वादा किया था, लेकिन इस बार पार्टी ने इससे किनारा कर लिया है। लगता है कांग्रेस समझने लगी है कि न्यूनतम न्याय या पुरानी पेंशन योजना को लागू कर पाना आसान नहीं है। न्याय पत्र में पार्टी ने बेरोजगारी को मुद्दा तो जरूर बनाया है, लेकिन इसे दूर करने की दिशा में उसने सिर्फ सरकारी क्षेत्र में तीस लाख नौकरी देने का ही वादा किया है।
सरकारी नौकरी के सोच के मूल में वामपंथी सोच है, जिसे नेहरूवादी समाजवादी व्यवस्था ने भी स्वीकार किया था। कांग्रेस इस मोर्चे पर वामपंथी सोच के साथ नेहरूवादी समाजवाद से ग्रस्त है, लेकिन सवाल है कि क्या सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों से इतने विशाल देश को रोजगार के मोर्चे पर सफलता मिल सकती है?
यह वामपंथी सोच ही है कि कांग्रेस जातिगत जनगणना करने और आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से ज्यादा करने का वादा कर रही है। 1951 की जनगणना के दौरान भी जातिगत गणना कराने की मांग रखी गई थी, लेकिन तब पं. नेहरू और सरदार पटेल ने इसे खारिज कर दिया था। सरदार पटेल का मानना था कि इससे जातीय तनाव बढ़ेगा। मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया है। कांग्रेस ने इस आरक्षण के दायरे में भी हर वर्ग को शामिल करने का वादा किया है। बीते कुछ वर्षों से आंदोलित कुछ किसान संगठन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुकूल एमएसपी की गारंटी मांग रहे हैं।
आर्थिक दबाव में इसे पूरी तरह स्वीकार करने से सरकारें बचती रही है। चूंकि कांग्रेस उनके आंदोलन को समर्थन देती रही है, ऐसे में इसका असर न्याय पत्र पर भी दिख रहा है। वामपंथी सोच के चलते कांग्रेस भूल गई है कि मनमोहन सिंह की अगुआई वाली सरकार इस मांग से मुकर गई थी। कांग्रेस ने जीएसटी को भी खत्म करने का वादा किया है। वैसे जीएसटी का विचार मनमोहन सिंह सरकार के दौरान ही आया था, लेकिन वामपंथ के प्रभाव में आकर कांग्रेस अब इसे नकार रही है। अपने पिछले घोषणा पत्र में पार्टी ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अफस्पा जैसे कानून तक का विरोध किया था, लेकिन इस बार इसके साथ-साथ अनुच्छेद-370 और नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए पर भी पार्टी ने चुप्पी साध ली है। लगता है वह इन मसलों पर केंद्र सरकार के फैसले का विरोध करने की स्थिति में नहीं है।
इन दिनों चुनाव आयोग पर भी कांग्रेस की नजरें टेढ़ी हैं। वामपंथी अक्सर न्यायपालिका पर भी सवाल उठाते रहे हैं। परिणामस्वरूप न्याय पत्र में कांग्रेस ने चुनाव आयोग को स्वायत्त बनाने के साथ न्यायपालिका में भी जाति और महिला हिस्सेदारी बढ़ाने की बात कही है। पार्टी ने निजी स्वतंत्रता का हनन करने वाले कानूनों को भी खत्म करने का वादा किया है। निजी कानून ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिमों से जुड़े हैं। साफ है पार्टी एक तरह से पर्सनल ला का समर्थन और तीन तलाक जैसे कानूनों का विरोध करती दिख रही है।
हाल के वर्षों में ईवीएम पर सवाल उठाने में वामदल और कांग्रेसी आगे रहे हैं, लेकिन न्याय पत्र में पार्टी ने ईवीएम का समर्थन किया है। हालांकि वीवीपैट की गिनती पर जोर दिया है। इसके अलावा कांग्रेस एक ऐसे दलबदल विरोधी कानून के समर्थन में है, जिसमें दल बदलते ही सांसद या विधायक की सदस्यता अपने आप खत्म हो जाएगी। अब लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि मतदाताओं ने कांग्रेस के न्याय पत्र पर कितना भरोसा किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)