श्रीराम चौलिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 21वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन और 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए लाओस जा रहे हैं। वैसे तो प्रति वर्ष इन दोनों सम्मेलनों में प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति आम है, लेकिन इस साल भारत की एक्ट ईस्ट नीति यानी कि पूर्वी छोर को साधने की पहल के दस वर्ष पूरे होने के चलते यह पड़ाव विशेष मायने रखता है।

वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने 1992 से लागू लुक ईस्ट नीति को गतिशील और व्यापक बनाने के उद्देश्य से उसका नामांतरण एक्ट ईस्ट के रूप में किया। पिछले एक दशक के घटनाक्रम के आधार पर कहा जा सकता है कि यह कोई सतही बदलाव नहीं था।

एक्ट ईस्ट के तहत भारत ने व्यापार, सैन्य और सांस्कृतिक कार्यक्षेत्रों में दक्षिण पूर्वी एशिया (आसियान के दस देशों), उत्तर पूर्वी एशिया (जापान, कोरिया और मंगोलिया) तथा ओशनिया (आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पैसिफिक द्वीपीय देश) के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाया है। इसी दौरान भारत ने अमेरिका के साथ अपनी सामरिक साझेदारी भी मजबूत की है, जिसका सीधा सरोकार पूर्वी एशिया के आर्थिक और भूराजनीतिक परिदृश्य से है।

एक्ट ईस्ट के युग में भारत पूर्वी एशिया में गहरी पैठ बना चुका है। भारत कभी केवल दक्षिण एशियाई देश कहलाता था, लेकिन अब पूर्वी एशिया की नियति तय करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। जिस इलाके में कभी केवल चीन और अमेरिका को ही प्रमुख और निर्णायक शक्ति माना जाता था, आज वहां भारत की साख बढ़ी है और वह आगे और भी ज्यादा प्रभावी होने वाली है।

ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट नामक शोध संस्थान ने 2024 के एशिया शक्ति सूचकांक में अमेरिका और चीन के बाद भारत को सबसे शक्तिशाली देश का दर्जा दिया है। यह बात पूर्वी एशिया के विभिन्न देशों से छिपी नहीं है कि उनके क्षेत्र में संतुलन कायम करने के लिए भारत अहम खिलाड़ी है। 2004 में सिंगापुर के तत्कालीन प्रधानमंत्री गोह चोक टोंग ने कहा था कि आसियान अगर हवाई जहाज का ढांचा है तो चीन उसका एक पंख है और भारत दूसरा पंख और इन दोनों पंखों के बगैर उड़ान नहीं भरी जा सकती।

आज एक्ट ईस्ट के अंतर्गत भारत-आसियान द्विपक्षीय कारोबार 2014 की तुलना में दोगुना होकर 131 अरब डालर के स्तर पर पहुंच गया है। आसियान ने भारत को सामरिक साझेदार से ऊपर व्यापक सामरिक साझेदार का भी दर्जा दिया है। हालांकि पूर्वी एशियाई देशों को उम्मीद थी कि 2022 में हुए क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी यानी आरसेप समझौते में भारत भी शामिल होगा और उससे उन्हें भारत के विशाल बाजार में अधिक अवसर मिलेंगे।

लेकिन, आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा और उनके यहां चीन के भारी निवेश के कारण भारत ने उस समझौते से परहेज किया। दूसरी तरफ अमेरिका ने चीन से प्रतिस्पर्धा तेज करने के मकसद से 2022 में ही इंडो पैसिफिक आर्थिक ढांचा (आईपीईएफ) बनाया था, जिसमें भारत संस्थापक सदस्य बना। आरसेप को ठुकराने की क्षतिपूर्ति आईपीईएफ द्वारा करना भारतीय विदेश नीति के लिए चुनौती है।

अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नजदीकी पूर्वी एशिया को परस्पर आर्थिक फायदे की स्थिति में लाने के साथ-साथ क्षेत्रीय सुरक्षा में भी इजाफा करेगी। इस क्षेत्र में अमेरिका को अव्वल रक्षा सहभागी और चीन को प्राथमिक आर्थिक सहभागी माना गया है, पर चीन ने बीते दशक में विस्तारवादी व्यवहार और धमक से अपने से छोटे देशों को दहशत में डाल रखा है।

आए दिन फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया, ताइवान और जापान पर चीन क्षेत्रीय दावा करता है और सैन्य बल से उन पर हावी होने की चेष्टा करता है। ऐसे में भारत अकेले पूर्वी एशिया जैसे दूरस्थ एवं विस्तारित क्षेत्र में चीन का प्रतिरोध नहीं कर सकता। भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया ने क्वाड समूह को 2017 से पुनः सक्रिय किया है।

क्वाड सैन्य गठबंधन नहीं है, लेकिन उसका लक्ष्य नियम और अंतरराष्ट्रीय विधि आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था बनाना है। साफ शब्दों में क्वाड पूर्वी एशिया के चीन-केंद्रित होने के विरुद्ध खड़ा है। अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के मध्य घोषित आकस गठबंधन और अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और फिलीपींस के मध्य स्क्वाड का भी भारत ने समर्थन किया है। इन नए समूहों के साथ मिल-जुलकर भूराजनीतिक संतुलन बनाने में भारत का ही हित है। हालांकि ऐसे गुटों के साथ सहयोग का यह मतलब नहीं है कि भारत केवल अमेरिका और उसके मित्रों पर ही पूरी तरह निर्भर रहेगा।

लुक ईस्ट की तुलना में एक्ट ईस्ट नीति में भारत ने रक्षा के मुद्दे को अधिक उभारा है और हिंद-प्रशांत में नए त्रिकोणीय समीकरणों का सृजन किया है। इसी के मद्देनजर भारत-इंडोनेशिया-आस्ट्रेलिया, भारत-फ्रांस-आस्ट्रेलिया और भारत-सिंगापुर-थाइलैंड जैसे उपयोगी संयोजन कुछ वर्षों से क्रियाशील हुए हैं। इसी कड़ी में अगर भारत-जापान-दक्षिण कोरिया और भारत-वियतनाम-इंडोनेशिया के भी त्रिकोणीय गुट बन जाएं तो भारत न सिर्फ हिंद महासागर में सुरक्षा प्रदाता के रूप में रहेगा, बल्कि समूचे हिंद-प्रशांत का नेतृत्व भी कर सकेगा।

(स्तंभकार अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ एवं ‘फ्रेंड्स: इंडिया’ज क्लोजेस्ट स्ट्रैटेजिक पार्टनर्स’ के लेखक हैं)