आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता भारत, विश्व की दिग्गज कंपनियां देश में निवेश के लिए प्रतिबद्ध
मोदी सरकार ने वर्ष 2017 में मोबाइल हैंडसेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) की घोषणा की थी। इसने भारत में एक मजबूत स्वदेशी मोबाइल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता की और बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित किया। इसने कंपनियों को आयात से विनिर्माण की ओर बढ़ने में मदद की। आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है।
रमेश कुमार दुबे। मोदी सरकार की मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत मुहिम के नतीजे अब दिखने लगे हैं। इलेक्ट्रानिक एवं मोबाइल, दवा, रक्षा और खिलौना क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में 3.5 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल फोन का उत्पादन हुआ। इस समय सैमसंग और एपल सहित कई वैश्विक ब्रांड भारत में मोबाइल फोन का विनिर्माण कर रहे हैं। गूगल भी भारत में मोबाइल निर्माण की पहल कर चुका है। देश में बिकने वाले मोबाइल फोन में से 97 प्रतिशत स्मार्टफोन देश में ही निर्मित हो रहे हैं। यही कारण है कि वित्त वर्ष 2014-15 में जहां 78 प्रतिशत मोबाइल फोन आयात होते थे, वहीं अब यह अनुपात घटकर मात्र तीन प्रतिशत रह गया है।
मोबाइल फोन उत्पादन के लिए स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने से उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में बढ़ोतरी होने के साथ ही रोजगार में भी वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र ने 7.5 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर का सृजन किया है। यह उपलब्धि मोदी सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना के कारण हासिल हुई है। पीएलआइ योजना से पहले स्वदेशी फोन का केवल एक प्रतिशत निर्यात होता था, वहीं पीएलआइ योजना से अगले पांच वर्ष के दौरान लगभग चार लाख करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है। इससे देश में 60 लाख नौकरियां सृजित होंगी।
पीएलआइ योजना के तहत कंपनियां अगले पांच वर्षों में 10.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य के मोबाइल फोन बनाएंगी। इनमें आइफोन बनाने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी एपल की कांट्रैक्ट मैन्यूफैक्चरर फाक्सकान होन हाई, विस्ट्रान और पेगाट्रान के प्रस्ताव शामिल हैं। एपल की योजना भारत में अगले पांच साल में उत्पादन पांच गुना से अधिक बढ़ाकर 40 अरब डालर करने की है। एपल फिलहाल भारत में आइफोन बनाती है, लेकिन अगले साल से एयर पाड्स भी बनाएगी।
एपल के अलावा सैमसंग और राइजिंग स्टार के प्रस्तावों को भी सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। इसके साथ-साथ सरकार ने कई घरेलू कंपनियों के प्रस्तावों को भी मंजूरी दी है। स्पष्ट है कि पीएलआइ योजना से न सिर्फ लाखों नई नौकरियों का सृजन होगा, बल्कि कई लाख करोड़ रुपये का निवेश भी भारत में आएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत योजनाओं का उद्देश्य पूरा होगा। पीएलआइ से भारत के डिजाइन और पुर्जा निर्माण का विकास भी उत्साहजनक रहा है। इस क्षेत्र में घरेलू मूल्यवर्धन लगातार बढ़ रहा है और कुछ उत्पादों में तो यह 60 प्रतिशत तक है।
यही कारण है कि विदेशी कंपनियां भी अब भारतीय कंपनियों से स्मार्टफोन बनवाने लगी हैं। उदाहरण के रूप में देश की सबसे बड़ी इलेक्ट्रानिक निर्माता कंपनी डिक्सन चीनी मोबाइल फोन निर्माता शाओमी के लिए स्मार्टफोन बनाना शुरू कर दिया है। डिक्सन कंपनी हर साल 2.5 करोड़ स्मार्टफोन उत्पादन की क्षमता रखती है। वैश्विक स्तर पर भारत में निर्मित मोबाइल फोन की मांग बढ़ रही है। यही कारण है कि भारत से निर्यात होने वाले सभी इलेक्ट्रानिक सामानों के निर्यात में मोबाइल फोन की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत है। वहीं इलेक्ट्रानिक्स निर्यात में भी 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और निर्यात एक लाख 85 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया है।
इलेक्ट्रानिक्स सामानों के निर्माण में भारत की बढ़ती विश्वसनीयता का परिणाम है कि दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में अपने कारोबार बढ़ाने के साथ-साथ देशभर में निवेश के लिए प्रतिबद्ध हैं। जेपी मार्गन की रिपोर्ट के अनुसार साल 2025 तक एपल के उत्पादों का एक चौथाई उत्पादन चीन से बाहर होने लगेगा, जबकि अभी एपल के उत्पादों का सिर्फ पांच प्रतिशत उत्पादन चीन से बाहर होता है। रिपोर्ट के अनुसार एपल के इस फैसले का लाभ भारत और वियतनाम को मिलेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में फोन निर्माण में जुटी चीन की कंपनियों पर भी अब निर्यात शुरू करने का दबाव है। इसी को देखते हुए शाओमी से लेकर वीवो तक चालू वित्त वर्ष में बड़े पैमाने पर मोबाइल फोन निर्यात की तैयारी कर रही हैं।
पीएलआइ योजना के कारण अगले साल से भारत में ही लैपटाप एवं अन्य गैजेट्स का भी निर्माण शुरू हो जाएगा। तकनीक पर जोर होने के कारण भारत में एप भी बड़ी संख्या में विकसित किए जा रहे हैं और वित्तीय सेक्टर से लेकर शिक्षा तक की एप पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। इसी को लक्ष्य करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “नया भारत केवल प्रौद्योगिकी का उपभोक्ता नहीं रहेगा, बल्कि भारत उस प्रौद्योगिकी के विकास और कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाएगा। इसी का परिणाम है कि जो देश वर्ष 2014 में शून्य मोबाइल फोन निर्यात करता था, वह आज हजारों करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात करने वाला देश बन गया है।”
उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने वर्ष 2017 में मोबाइल हैंडसेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) की घोषणा की थी। इसने भारत में एक मजबूत स्वदेशी मोबाइल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता की और बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित किया। इसने कंपनियों को आयात से विनिर्माण की ओर बढ़ने में मदद की। इसी का परिणाम है कि वर्ष 2014 में जहां मात्र दो मोबाइल फोन कारखाने थे वहीं आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।
(लेखक एमएसएमई मंत्रालय के दिल्ली निर्यात संवर्द्धन और विश्व व्यापार संगठन प्रभाग में अधिकारी हैं)