हृदयनारायण दीक्षित। मंदिर भारतीय ज्ञान, उपासना और शिक्षा के प्रमुख केंद्र रहे हैं। हिंदू परंपरा में मंदिर प्रेय हैं और श्रेय भी, लेकिन पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले गुलाम कश्मीर में शारदा पीठ की दीवार तोड़ी गई है। हिंदू आहत हैं। शारदा पीठ उपास्य एवं इतिहास सिद्ध है। पाकिस्तान ने इसी पर सेना के लिए काफी हाउस बनाया है। भारत के दारा शिकोह फाउंडेशन ने यूनेस्को को शिकायती पत्र लिखा है। मंदिर यूनेस्को की संरक्षण सूची में है।

पाकिस्तान ने इस हिंदू सांस्कृतिक विरासत को जानबूझकर निशाना बनाया है। शंकराचार्य ने भी यहां उपासना की थी। स्थानीय विद्वानों ने शंकराचार्य से न्यायदर्शन, सांख्य, बौद्ध एवं जैन दर्शन पर चर्चा की थी। दार्शनिक रामानुजाचार्य भी शारदा पीठ गए थे।

पाकिस्तान में मंदिर ढहाने की यह पहली घटना नहीं। विभाजन के बाद हिंदू संस्कृति और दर्शन के अनेक केंद्र पाकिस्तानी हो गए। ऋग्वेद की प्रसिद्ध नदी सिंधु भी पाकिस्तानी हो गई। पाकिस्तानी हिस्से में सैकड़ों हिंदू मंदिर भी चले गए। हिंदू अल्पसंख्यक हो गए। लरकाना मंदिर पर 2014 में हमला हुआ। फिर 2019 में अनेक मंदिरों पर हमले हुए। मूर्तियां गायब हो गईं। तब पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की थी। 2021 में खैबर पख्तूनख्वा के मंदिरों में तोड़फोड़ हुई। एक मौलाना मो. शरीफ ने उपासना स्थलों के गिराए जाने को पवित्र फर्ज बताया था। हिंदू आस्था केंद्रों-मंदिरों के ध्वस्तीकरण को फर्ज बताना अपमानजनक है।

संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय चार्टर में अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति के पालन का अधिकार है, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू उत्पीड़न के शिकार हैं। जोर-जबरदस्ती का मतांतरण है। हिंदू लड़कियां और महिलाओं को पकड़ कर जबरदस्ती बयान दिलाए जाते हैं कि वे अपनी रजामंदी से हिंदू धर्म छोड़ रही हैं। ईशनिंदा कानून भी अल्पसंख्यक उत्पीड़क है। फर्जी मुकदमे दर्ज होते हैं। विभाजन के समय पाकिस्तान में 428 मंदिर थे। अब 22 बचे हैं। इसी प्रकार हिंदू आबादी भी घट रही है। आखिर हिंदू परिवार कहां चले गए? क्या वे किसी दूसरे देश में पलायन कर गए? क्या उन्हें जबरन मतांतरित कराया गया? मंदिरों को किसने ध्वस्त किया और क्यों? हिंदू उत्पीड़न के प्रश्न पर दुनिया के किसी भी देश ने सहानुभूतिपूर्वक प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी?

शारदा को कश्मीर की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। शारदा पीठ की अपनी लिपि थी, जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में होता था। कहा जाता है कि यह पश्चिमी ब्राह्मी लिपि से नौवीं शताब्दी में विकसित हुई। हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में तेरहवीं सदी तक इसका प्रयोग बताया जाता है।

इतिहासकार अल बरूनी ने भारत यात्रा के वर्णन में ‘सिद्धमात्रिक’ नाम से इसका उल्लेख किया है। शारदा वर्णमाला ‘ओम स्वस्ति सिद्धम्’ से आरंभ होती थी। हिंदू ज्ञान परंपरा और अनुसंधान में तक्षशिला, विक्रमशिला और शारदा विश्वविद्यालय प्रतिष्ठित रहे हैं। नालंदा विश्व प्रसिद्ध था। विश्वविद्यालय में वेद, तर्कशास्त्र और चिकित्सा आदि विषय पढ़ाए जाते थे। विदेशी आक्रमणकारियों ने इन विश्वविद्यालयों को नष्ट किया। नालंदा में तुर्क शासक बख्तियार खिलजी ने आग लगवाई थी। विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला भारतीय स्वाभिमान का प्रतीक था। इसे भी हमलावरों ने नष्ट कर दिया। अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य तक्षशिला के आचार्य थे। विश्व के पहले व्याकरणकर्ता अष्टाध्यायी के लेखक पाणिनि का क्षेत्र भी यही है। कात्यायन ने इसी क्षेत्र में वार्तिक की रचना की। आयुर्वेद का महान ग्रंथ चरक संहिता भी इसी भूभाग में लिखा गया था। यह क्षेत्र भी अब पाकिस्तानी है।

संस्कृति, दर्शन एवं ज्ञान भौगोलिक सीमा में नहीं बांटे जा सकते। दुर्भाग्य से भारतीय दर्शन, संस्कृति और वैज्ञानिक शोध के लिए चर्चित क्षेत्र अब पाकिस्तानी है। वैदिक हिंदू संस्कृति और दर्शन के विकास का भूक्षेत्र ध्यान देने योग्य है। ऋग्वेद में प्रवाहमान सिंधु नदी भारत के मन को सहलाती-नहलाती थी। वैदिक पूर्वजों का सप्तसिंधु प्रेम चर्चित है। ऋग्वेद में उल्लेख है, ‘इंद्र देव ने सप्तसिंधु में जल प्रवाहित किया। सूर्य ने सप्तसिंधु को प्रकाश से भर दिया।’

मैकडनल और कीथ ने लिखा है कि, ‘यह एक सुनिश्चित देश का नाम है।’ पुसालकर ने नदियों के नामों के आधार पर वैदिक राष्ट्र की रूपरेखा कल्पित की है। इसमें अफगानिस्तान, पंजाब, सिंध, राजस्थान, पश्चिमोत्तर सीमांत कश्मीर तथा सरयू तक का पूर्वी भारत है। इस भूक्षेत्र की नदियां अब पाकिस्तानी हैं। पश्चिम से पूरब की ओर चलें तो झेलम, व्यास, रावी, चिनाब, सतलुज, सिंधु और सरस्वती के अधिकांश क्षेत्र पाकिस्तान में हैं। सिंधु क्षेत्र का यह भूभाग वैदिक ज्ञान-विज्ञान और काव्य सृजन की भूमि रहा है। सिंधु सभ्यता प्राचीन वैदिक सभ्यता का विकास है।

जम्मू-कश्मीर के इसी क्षेत्र में प्रत्यभिज्ञा दर्शन का जन्म और विकास हुआ। यहां पिप्लाद ऋषि का आश्रम था। भारत के कोने-कोने से आए छह जिज्ञासुओं ने पिप्लाद से प्रश्न पूछे थे। इन्हीं प्रश्नोत्तरों का संकलन प्रश्नोपनिषद है। पाकिस्तान ऐसे सांस्कृतिक केंद्रों पर गर्व नहीं करता। जबकि कायदे से उसे गर्व करना चाहिए। उसकी नीति ही हिंदुओं और हिंदू प्रतीकों को नष्ट करने की है। यह घोषित इस्लामी राष्ट्र है। कहने को यहां सभी नागरिकों को कानून एवं सरकारी नियमों के अधीन धर्म पालन और प्रचार का अधिकार है, लेकिन पाकिस्तानी संविधान के अनुसार सभी कानून सुन्नत पर आधारित इस्लाम के आदेशों के अनुरूप हैं। संविधान गैर-मुस्लिमों के राजनीतिक अधिकार सीमित करता है। खेदजनक है कि मंदिर ध्वंस और हिंदू उत्पीड़न अंतरराष्ट्रीय चिंता नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र को अल्पसंख्यक उत्पीड़न और मंदिर ध्वंस की कार्रवाई का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। शारदा पीठ का मसला यूनेस्को द्वारा घोषित संरक्षित विरासत को नष्ट करने का भी है। यूनेस्को को कार्रवाई करनी चाहिए। यह स्थिति दुनिया के सभी हिंदुओं के लिए चिंता का विषय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने उचित ही कहा है कि समाज के समक्ष विद्यमान चुनौतियों से निपटने के लिए विश्व स्तर पर हिंदू संगठनों की मजबूती अपरिहार्य है। सभी हिंदू संगठनों के मध्य सतत संवाद और समन्वय की आवश्यकता है।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)