जी. किशन रेड्डी। किसी भी सच्चे नागरिक के लिए उसके देश की मिट्टी से बढ़कर कुछ नहीं होता है। इतिहास गवाह है हमारे वीर जवानों ने ‘खून भी देंगे जान भी देंगे-देश की माटी कभी नहीं देंगे’ के भाव को आत्मसात करते हुए वतन की मिट्टी की खातिर लाखों बलिदान दिए और दुश्मनों को मौत के घाट भी उतारा। मिट्टी से ही जीवन है और मिट्टी में ही जीवन का अंत, मिट्टी पवित्रता की पराकाष्ठा भी है और संकल्पों की शक्ति भी है।

अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं। स्वामी विवेकानंद 15 जनवरी, 1897 को अपनी चार वर्ष की विदेश यात्रा के उपरांत जब भारत लौटे और देश की जमीन पर अपना पहला कदम रखा तो अपने मन के आवेग को रोक नहीं पाए। स्वदेश की मिट्टी में लोट-पोट होने लगे। भाव-विभोर होकर रोते हुए कहने लगे कि ‘विदेश में प्रवास के कारण मुझमें यदि कोई दोष आ गए हों तो हे धरती माता, मुझे क्षमा कर देना।’ यह घटना भारत की मिट्टी की पवित्रता को दर्शाती है।

भारत की मिट्टी की संकल्प शक्ति का साक्षी जलियांवाला बाग भी है। 13 अप्रैल, 1919 को वहां जनरल डायर ने हजारों भारतीयों की निर्मम हत्या करा दी। तब वहां की उसी मिट्टी को हाथ में लेकर उधम सिंह ने जनरल डायर को सबक सिखाने का संकल्प लिया। उधम सिंह ने उस मिट्टी की लगभग 21 वर्षों तक प्रतिदिन पूजा की। अंततः 13 मार्च, 1940 को जनरल डायर को मार कर हजारों निर्दोष भारतीयों की हत्या का बदला लिया।

इसी प्रकार हल्दी घाटी में हल्दिया रंग की मिट्टी शौर्य, साहस, संघर्ष, प्रेरणा और विजय की प्रतीक है। लोग आज भी इस मिट्टी को अपने माथे पर लगा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। खमनोर की रक्त तलाई में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना में निर्णायक युद्ध हुआ था। तब हजारों सैनिकों का खून बहने से यहां की मिट्टी का रंग लाल हो गया था। रक्त तलाई की मिट्टी को देखकर आज भी देशवासियों के मन में इसके प्रति श्रद्धा, विश्वास और राष्ट्रभक्ति के भाव जीवंत हो जाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि भारत के ऐसे सभी ऐतिहासिक स्थलों सहित हर घर की पवित्र मिट्टी का पूजन कर ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ का समापन कार्यक्रम ‘मेरी माटी-मेरा देश’ के रूप में मनाया जाए। बीते माह एक सितंबर से इस अभियान की शुरुआत हुई है। भारत के प्रत्येक गांव के लगभग 30 करोड़ परिवारों से अमृत कलश में मिट्टी या चावल का संग्रह किया गया है। अमृत कलश में मिट्टी या चावल एकत्र करने के दौरान समूह के साथ ढोलक, नगाड़ा और अन्य वाद्य यंत्र बजाते हुए लोग शामिल हुए। मिट्टी और चावल संग्रह के समय अमृतकाल के पंच प्रण की प्रतिज्ञा भी ली गई।

इन अमृत कलशों को दिल्ली भेजने से पहले हर राज्य की राजधानी में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, सांसदों की उपस्थिति में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। तत्पश्चात नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के आयोजन के लिए देश भर से इन अमृत कलशों को लाने वाले स्वयंसेवकों के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था हुई। साथ ही जनभागीदारी को बढ़ावा देने के लिए इन ट्रेनों का देश के मुख्य रेलवे स्टेशनों पर स्थानीय रीति-रिवाज से स्वागत हुआ।

इन अमृत कलशों की ऐतिहासिक मिट्टी का उपयोग हमारे महान बलिदानियों के सम्मान में नेशनल वार मेमोरियल के पास अमृत वाटिका बनाने में किया जाएगा। ‘मेरी माटी-मेरा देश’ अभियान का समापन 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में 7,297 ब्लाकों और 500 से अधिक नगर पालिकाओं और नगर निगमों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 75 हजार लोगों के साथ संपन्न होगा।

‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के दौरान विगत वर्ष देश ने जिस प्रकार से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की सफलता को देखा, वह निश्चित ही अभूतपूर्व था। इतना ही नहीं, दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले भारतीयों ने अपने परिवार के साथ विदेशी धरती पर भी तिरंगा झंडा फहराया था। वह दृश्य मन को खुशी, उल्लास और गर्व से भर देने वाला था। कह सकते हैं कि आजादी के बाद यह पहला ऐसा ऐतिहासिक ‘स्वतंत्रता दिवस’ था, जिसमें सारा देश शामिल हुआ था।

देश के असंख्य शिक्षण संस्थानों, ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं, नगर निगमों, विभिन्न विभागों, कंपनियों, सामाजिक संगठनों, राजनीतिक पार्टियों और केंद्र एवं राज्य सरकारों ने जिस प्रकार से ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ को अभियान के रूप में लेकर सफल बनाया है, उससे विश्व ने भारत की सामर्थ्य शक्ति, एकता और एकजुटता को देखा है। इसलिए यह समय 142 करोड़ भारतीयों का अभिनंदन करने का भी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में एक संकल्प अक्सर सुना है-‘सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा, मेरा वचन है भारत मां को, मैं शीश नहीं झुकने दूंगा।’ उसी संकल्प की शक्ति है कि आज दुनिया में भारत की जय-जयकार हो रही है। अब विकसित भारत के लिए करोड़ों भारतीयों को मिलकर प्रधानमंत्री मोदी के उस मंत्र को चरितार्थ करने का समय है, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘यही समय है-सही समय है।’

हाल में जी-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया ने भारत की उभरती शक्ति को देखा है जिससे हर भारतवासी का आत्मविश्वास बढ़ा है। विकसित भारत के सपने को साकार करने में ‘मेरी माटी-मेरा देश’ अभियान से निर्मित होने वाली अमृत वाटिका आने वाले 25 वर्षों में यानी अमृतकाल के पंच प्रणों की पूर्ति तो करेगी ही, साथ में हमारे बलिदानियों के सपनों को साकार करने के लिए देश की युवा पीढ़ी को प्रेरित भी करेगी।

(लेखक केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री हैं)