राजीव सचान: अमेरिका की यात्रा पर गए राहुल गांधी की मानें तो गांधी, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और आंबेडकर आदि सभी एनआरआइ यानी प्रवासी भारतीय थे और गुरुनानक देव जी थाइलैंड भी गए थे। ये ऐसी तथ्यहीन बातें हैं कि जब कोई इस तरह की बात करता है तो आजकल यही कहा जाता है कि लगता है कि वाट्सएप यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहा है। पता नहीं कांग्रेस के नेता एवं प्रवक्ता राहुल गांधी की इन बातों को कैसे सही ठहराएंगे, लेकिन वे उनके इस दावे को सही बताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में लगे हुए हैं कि केरल में राजनीतिक असर रखने वाली इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी आइयूएमएल सेक्युलर है। राहुल का दावा है कि इस दल में कुछ भी गैर-सेक्युलर नहीं है।

कांग्रेसी नेताओं के साथ कथित सेक्युलर तत्व भी यह समझाने में जुट गए हैं कि आइयूएमएल वास्तव में सेक्युलर है, लेकिन किसी के भी ऐसा कहने से सच्चाई छिपने वाली नहीं है। इसलिए और भी नहीं छिपने वाली, क्योंकि खुद जवाहरलाल नेहरू इसके विरुद्ध थे कि स्वतंत्र भारत में आइयूएमएल जैसी कोई पार्टी बने। उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के गठन की पहल का विरोध करने के साथ तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन से भी कहा था कि वह मुहम्मद इस्माइल, जो आइयूएमएल का गठन करने जा रहे थे, को इस विचार को छोड़ने की सलाह दें। नेहरू का मानना था कि भारतीय मुसलमानों को मुस्लिम लीग जैसे दल की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने उसकी राष्ट्र निष्ठा पर भी सवाल उठाए थे।

यह ठीक है कि बाद में राजनीतिक मजबूरियों के चलते केरल में कांग्रेस ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से हाथ मिला लिया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इस कारण वह सेक्युलर हो गई। वह ठीक उसी तरह सेक्युलर नहीं हो जाती, जैसे बंगाल का इंडियन सेक्युलर फ्रंट नहीं है। इंडियन सेक्युलर फ्रंट का गठन बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव के पहले फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने किया था। पहले उसे वाम दलों ने सेक्युलर होने का प्रमाण पत्र देकर हाथ मिलाया, फिर कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया।

मौलाना अब्बास हर लिहाज से एक कट्टरपंथी मुस्लिम नेता है। एक समय उसने टीएमसी की सांसद नुसरत जहां को बेहया करार दिया था, क्योंकि वह एक मंदिर चली गई थीं। इसी तरह उसने कोलकाता के मेयर फरहाद हाकिम को कौम का गद्दार बता दिया था, क्योंकि शिवरात्रि पर वह मंदिर चले गए थे। जब बांग्लादेश में एक दुर्गा पूजा पंडाल में कुरान रख दी गई थी तो अब्बास ने कहा था कि ऐसा करने वाले का गला काट देना चाहिए। बाद में पता चला कि कुरान रखने का काम एक जिहादी मुस्लिम ने ही किया था, ताकि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा भड़काई जा सके। जो कांग्रेस ऐसे चरमपंथी मौलाना को सेक्युलर होने का प्रमाण पत्र देकर उससे चुनावी गठजोड़ कर सकती है, उसकी ओर से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को सेक्युलर बताने पर हैरानी नहीं।

राहुल गांधी भले ही अब वायनाड से सांसद न रह गए हों, लेकिन वह यहां से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के भरोसे ही पिछला लोकसभा चुनाव जीते थे। उन्होंने उसे सेक्युलर बताकर उसका शुक्रिया ही अदा नहीं किया, बल्कि केरल में उसके साथ कांग्रेस के गठजोड़ को पक्का करने का भी काम किया। इसके अलावा मुस्लिम तुष्टीकरण की कांग्रेस की पुरानी नीति को नए सिरे से धार भी दी। जब राहुल गांधी की ओर से आइयूएमएल को सेक्युलर बताए जाने पर सवाल उठे तो कांग्रेसी नेताओं ने यह कहकर उनका बचाव किया कि सवाल उठाने वाले यह जानने की जहमत उठाएं कि जिन्ना की मुस्लिम लीग का इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से कोई लेना-देना नहीं। यह ठीक वैसा ही तर्क है, जैसे कोई यह कहे कि इंदिरा गांधी की ओर से बनाई गई कांग्रेस का गांधी और नेहरू की कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं।

यह सही है कि देश के बंटवारे के बाद जिन्ना की मुस्लिम लीग भंग कर दी गई थी, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का गठन जिन्ना के समर्थकों और भंग की गई मुस्लिम लीग के नेताओं ने ही किया था। इसके गठन के लिए 1948 में बुलाई गई बैठक में जिन्ना की मुस्लिम लीग के वे तमाम नेता शामिल हुए थे, जो पाकिस्तान जाने के बजाय भारत में ही रह गए थे। जो मुहम्मद इस्माइल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का पहला अध्यक्ष बना, उसने मुस्लिम लीग में रहते समय पाकिस्तान के निर्माण की हरसंभव तरीके से पैरवी की थी। बाद में यही इस्माइल संविधान सभा का सदस्य बना और वहां उसने मुसलमानों के लिए अलग कानून की मांग की। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं के ऐसे ही रवैये के कारण सरदार पटेल ने उन्हें चेताते हुए कहा था कि जो मुस्लिम नेता भारत में संतुष्ट नहीं, उनके लिए अलग पाकिस्तान बन गया है।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग कितनी सेक्युलर है, इसका पता इससे चलता है कि वह जिहादी जाकिर नाइक के बचाव में उतर चुकी है। उसकी मानें तो जाकिर नाइक शांति का प्रचारक है और उसे बेवजह परेशान किया जा रहा है। इस पार्टी के नेता वंदे मातरम का केवल विरोध ही नहीं करते रहे हैं, बल्कि यहां तक कह चुके हैं कि यह मुस्लिम विरोधी है। जब आतंकी संगठन पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर प्रतिबंध लगाने के बाद उसके सदस्यों की पकड़-धकड़ शुरू हुई तो इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं ने शिकायत की कि उसके बेकसूर कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है। साफ है कि राहुल गांधी जीती मक्खी निगल सकते हैं, लेकिन देश नहीं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)