डा. सुरजीत सिंह : पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 को मंजूरी प्रदान की। इसके अनुसार अंतरिक्ष अनुसंधान एवं निर्माण संबंधी कार्य भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा संचालित किए जाएंगे। साथ ही अंतरिक्ष उत्पाद एवं सेवा संबंधी गतिविधियां जैसे उपग्रह निर्माण तथा उपग्रह प्रक्षेपण आदि कार्यों के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा। यानी विकसित देशों की तरह अब भारत का निजी क्षेत्र भी न सिर्फ उपग्रह निर्माण में सहयोग करेगा, बल्कि अपने निजी प्रक्षेपण स्टेशन भी विकसित कर सकेगा।

वर्ष 2020 में ही सरकार ने उपग्रहों की स्थापना और संचालन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआइ की अनुमति निजी क्षेत्र को दी थी, जिसके परिणामस्वरूप विगत तीन वर्षों में देश में लगभग 150 स्टार्टअप्स की वृद्वि हुई है। अब इस क्षेत्र को निजी निवेशकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाने की पहल नई अंतरिक्ष नीति में की गई है। इसके लिए विभागवार बिजनेस माडल विकसित किए गए हैं, जो उपग्रह निर्माण, राकेट एवं प्रक्षेपण स्टेशन बनाना, डाटा संग्रह और प्रसार आदि कार्यों को संचालित करेंगे। इससे न सिर्फ इस क्षेत्र में नए बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्टअप और उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा। जाहिर है तेजी से चमक बिखेरता अंतरिक्ष विज्ञान भारतीय अर्थव्यवस्था में नया अध्याय लिखने के लिए तैयार है, जो अंतरिक्ष अर्थशास्त्र के विकास को एक नई उड़ान प्रदान करेगा।

वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में अभी भारत का योगदान चार प्रतिशत से भी कम है, जिसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने में यह नीति एक मील का पत्थर साबित होगी। स्वदेशी उपग्रह के निर्माण और उपग्रह प्रक्षेपण की कम तुलनात्मक लागत के कारण वैश्विक स्तर पर भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। 2017 में इसरो ने कीर्तिमान स्थापित करते हुए 104 उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया था, जिसमें 101 स्वदेशी उपग्रह थे। इस उपलब्धि के कारण भारत उपग्रहों के प्रक्षेपण करने वाले पसंदीदा देश के रूप में उभरा है।

संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार 2010 तक हर साल करीब 60 से 100 सेटेलाइट लांच किए जाते थे। हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई है। वर्ष 2020 में 1,283 उपग्रह लांच किए गए। कुछ दशक पहले वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में कुछ ही देशों का वर्चस्व था। भारतीय विज्ञानियों की मेहनत एवं दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि इस मोर्चे पर भारत अब विकसित देशों के साथ खड़ा है। इंडियन स्पेस एसोसिएशन के अनुसार वर्ष 2020 में भारत का अंतरिक्ष बाजार 9.6 अरब डालर था, जो सरकार एवं निजी सहभागिता से 2025 तक बढ़कर 13 अरब डालर हो जाएगा। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2020 में 450 अरब डालर की थी, जो 2025 तक बढ़कर 600 अरब डालर होने की संभावना है।

अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ने का प्रमुख कारण यह है कि पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में विकास के अनेक नए आयाम स्थापित किए गए हैं। आज वैश्विक स्तर पर इसरो छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी के रूप में स्थापित हो चुका है। 2014 में भारत विश्व में पहली बार में ही सफलतापूर्वक मंगल पर पहुंचने वाला देश बन चुका है। 2017 में 100 से अधिक उपग्रह भेजने वाला विश्व का पहला देश बन चुका है। हाल में इसरो ने रियूजेबल लांच व्हीकल (आरएलवी) के प्रक्षेपण में बड़ी सफलता हासिल की है। यह उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित कर वापस लौट आएगा, जिससे न सिर्फ इसकी लागत में कमी आएगी, बल्कि मानव को अंतरिक्ष में घुमाने में भी इसका प्रयोग किया जा सकेगा। 2024 तक अंतरिक्ष में मानव एवं रोबोट को भेजने की योजना है। देश की खगोलीय क्षमता को बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के हिंगोली में लीगो (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव आब्जर्वेटरी) की स्थापना की मंजूरी दी गई है। यह वेधशाला 2030 तक तैयार हो जाएगी।

अंतरिक्ष क्षेत्र के विस्तार ने भारत के आर्थिक जीवन की दशा एवं दिशा, दोनों में बदलाव ला दिया है। बदलते समय के साथ अंतरिक्ष क्षमताएं आधुनिक समाज की जरूरत बनती जा रही हैं। विभिन्न उद्देश्यों वाले उपग्रहों के प्रक्षेपण से मीडिया, इंटरनेट एवं 5जी, विमानन, रक्षा, रिटेल, एयरोस्पेस आदि क्षेत्रों में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। मौसम की भविष्यवाणी, मत्स्य पालन, शहरी प्रबंधन, जंगलों के संसाधनों का मानचित्रण, कृषि उपज, भूजल और जल संग्रहण क्षेत्र के विश्लेषण में अंतरिक्ष विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) कवरेज के बढ़ने से सामाजिक समस्याओं का प्रबंधन आसान हुआ है। भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम द्वारा अब भारत अपने पड़ोसी क्षेत्रों में सटीक सेवाएं प्रदान कर रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान की मदद से सामाजिक एवं आर्थिक लाभ के साथ-साथ पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करने में भी मदद मिलती है। साथ ही राष्ट्र के व्यापार संतुलन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कुल मिलाकर वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों और पड़ोसी देशों चीन एवं पाकिस्तान के साथ घटते विश्वास में भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 एक मील का पत्थर साबित होगी। इस क्षेत्र में व्यावसायीकरण के नियमों पर बल देते हुए देशहित को ही सर्वोपरि महत्व देना होगा। नए युग में प्रवेश कर रहे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के वाणिज्यिक उपयोग से अंतरिक्ष अर्थशास्त्र को बढ़ावा मिलेगा, जिससे न सिर्फ भारत की वैश्विक आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ेगी, बल्कि यह देश के आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण प्रवर्तक के रूप में भी उभरेगी।

(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं)