डा. सुरजीत सिंह। पिछले दिनों उत्तराखंड में वैश्विक निवेशक सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य राज्य की आर्थिक क्षमता को बढ़ाने के लिए निवेशकों को आकर्षित करना था। उसमें विभिन्न योजनाओं से संबंधित 44 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किए गए। उसके बाद बिहार में भी दो दिवसीय निवेशक सम्मेलन हुआ। उसमें तीन सौ से अधिक उद्यमियों ने राज्य में 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की इच्छा प्रकट की। यदि इन प्रस्तावों को वास्तविक रूप से धरातल पर उतारा जाए तो दोनों राज्य आर्थिक प्रगति और विकास के नए आयाम स्थापित कर सकते हैं।

निवेश किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए वृद्धि और विकास के प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है। निवेशक सम्मेलन राज्य के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने के साथ विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने में भी मदद करते हैं। इससे न केवल कर राजस्व बढ़ता है, बल्कि राज्य के लोगों को भी व्यवसाय के लिए बेहतर माहौल मिलता है।

राज्य की संस्कृति, खानपान और विविधीकरण को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलती है। निवेश के गुणक प्रभाव से उस राज्य की स्वास्थ्य सुविधाएं, नगरीकरण, आधारिक संरचना भी अधिक मजबूत होती है। आय के स्रोतों के बढ़ने से राज्यों को ऋण जाल से बाहर निकलने का ही अवसर नहीं मिलता है, बल्कि इनकी केंद्र सरकार के अनुदान पर निर्भरता भी कम हो जाती है। निवेशक शिखर सम्मेलन राज्यों को अपनी आर्थिकी को समझने का नया दृष्टिकोण देते हैं।

नीति आयोग द्वारा सहकारी संघवाद को बढ़ावा दिए जाने के बाद से राज्य अपने संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग के लिए योजनाएं खुद बना रहे हैं। राज्य अपनी अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए निजी निवेश के महत्व को समझने लगे हैं। बदलते आर्थिक माहौल में राज्य निवेश के लिए निवेशकों को आमंत्रित कर रहे हैं। इसके लिए वे आवश्यकतानुसार श्रम सुधार कर रहे हैं। नियम-कानून को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उद्योगीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। तकनीक को बढ़ावा देने के साथ ही अपने अधिनियमों में परिवर्तन कर रहे हैं। इसके कारण विभिन्न राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा का एक नया दौर शुरू हो गया है।

भारत का हर वह राज्य जिसके पास व्यवसाय के अवसर हैं, निवेशक सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। जो निवेश पहले केवल बंदरगाह वाले क्षेत्रों में होते थे, आज उसमें बदलाव आया है। निवेशक अब उन राज्यों में भी निवेश कर रहे हैं जहां व्यवसाय को बढ़ाने के अवसर हैं। ऐसे सम्मेलन महाराष्ट्र, यूपी, बंगाल, असम, आंध्र प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि राज्यों में भी आयोजित किए जा चुके हैं।

इन निवेश सम्मेलनों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि किए गए समझौतों में से कितनों को वास्तविक स्वरूप में धरातल पर उतारा जाता है। व्यावहारिकता में ये सम्मेलन राजनीतिक दृष्टिकोण को अधिक पुष्ट करते हैं जबकि इन सम्मेलनों का उद्देश्य राज्य के आर्थिक दृष्टिकोण को मजबूत करना होना चाहिए।

निवेशक किसी भी राज्य में तब तक निवेश करने के लिए तैयार नहीं होते हैं जब तक कि उस राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक स्थितियां उनके अनुकूल नहीं होती हैं। इसके लिए राज्यों को गंभीरता के साथ नीतिगत पहल करनी होगी। लालफीताशाही को घटाने के लिए नियामक प्रणाली को आसान बनाना होगा। अग्रिम पंक्ति के पदाधिकारियों को वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां सौंपने के साथ जिम्मेदारी भी निश्चित की जानी चाहिए। नीति निर्माण और कार्यान्वयन की जिम्मेदारियों को अलग करने से निष्पादन में तेजी आती है। डिजिटल डिवाइड को कम करने के साथ निगरानी एजेंसियों को संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। समयबद्धता पर विशेष ध्यान देने से पूंजी की लागत को स्थिर रखा जा सकता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए उत्पादन के कारकों में आवश्यकतानुसार सुधार किए जाने चाहिए।

शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में बढ़ रहे भारत में पर्यावरण चुनौतियों को भी ध्यान में रखना होगा। निवेशकों की कसौटी पर खरा उतरने के लिए प्रत्येक राज्य की उसके संसाधनों के अनुसार जिम्मेदारी निर्धारित की जानी चाहिए। सेवा, कृषि, विनिर्माण, नवीनीकरण ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, हाइड्रोजन फ्यूल, इन्फ्रास्ट्रक्चर, खनन, प्रसंस्करण, रियल एस्टेट, स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, पर्यटन, फिल्म और आयुष आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जो राज्यों के विकास की असीम संभावनाओं के द्वार खोलते हैं। सभी राज्य श्रम-संपन्न हैं। ऐसे में यदि प्रत्येक राज्य अपने संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करे तो आठ प्रतिशत की विकास दर को आसानी से हासिल किया जा सकता है।

भारत तेजी से सतत विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में प्रत्येक राज्य को अपनी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। हर राज्य को अपने नागरिकों के हितों की सुरक्षा के साथ विकास की राह पर आगे बढ़ने के लिए स्वयं को तैयार करना होगा। यदि सभी राज्य इस दिशा में गंभीर प्रयासों के साथ आगे बढ़ते हैं तो पांच ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकता है। इसके लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक माहौल के साथ केंद्र एवं विभिन्न राज्यों में आपसी सहयोग और समन्वय का संबंध भी बना रहे।

आज जब एक राष्ट्र की अवधारणा पर नीतियां बनाई जा रही हैं तो ऐसे में उत्तर बनाम दक्षिण की बात बेमानी हो जाती है। वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए राज्य सरकारों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि निवेशक सम्मेलन में होने वाले समझौतों को पूर्ण रूप से सार्थक बनाया जाए।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)