स्वामी अवधेशानंद गिरि। मैं अभिभूत हूं, आह्लादित हूं, भाव-विभोर हूं। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि अपने इस जीवन काल में परमपिता की मुझ पर इतनी कृपा होगी कि पुण्य नगरी अयोध्या में मैं अपने नयनों से वह नयनाभिराम दृश्य देख पाऊंगा, जब मेरे आराध्य रामलला अपने मंदिर में अपूर्व ऐश्वर्य और अलौकिक दिव्यता के साथ विराजमान होंगे। 500 वर्षों के कठिन संघर्ष, करोड़ों लोगों के समर्पण और अनगिनत लोगों के बलिदान के पश्चात 22 जनवरी 2024 को वह शुभ घड़ी आ ही गई, जब रामलला अपने घर में पधारे।

यह रामलला के विग्रह रूप की मात्र प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम नहीं था, अपितु भारत और महान भारतीय संस्कृति की अस्मिता, उसके स्वाभिमान और गौरव की पुनर्स्थापना का अतुलनीय दिवस था। यह ईश्वरीय विधान ही है कि उन्होंने इसके लिए अपने एक ऐसे तपस्वी भक्त का चयन किया, जो आधुनिक भारत की सांस्कृतिक पुनर्चेतना का निर्विवाद अग्रदूत है। उनके व्यक्तित्व में समर्थ शासक, विलक्षण प्रशासक और निरभिमानी उपासक निरंतर दृष्टिगोचर रहता है।

दिन-रात देश के जन-जन के कल्याण के बारे में चिंतन करना, निरंतर देश के लिए अनन्य समर्पण भाव से काम करना और अनथक अविश्राम अद्भुत जीवन। यह प्रभु श्रीराम जी की ही शक्ति और सामर्थ्य है, जिसने एक ऐसे राजर्षि का चुनाव किया जो बिना थके, बिना रुके न केवल जनता-जनार्दन के लिए जीता है, बल्कि इस देश की महान दिव्य परंपराओं और सांस्कृतिक चेतना को भी जाज्वल्यमान बनाए रखने लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देता है।

जब प्राण-प्रतिष्ठा के दिन गोविंद गिरि जी महाराज ने पंचामृत से प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी का 11 दिनों के महा-अनुष्ठान का व्रत संपन्न कराया तो ऐसा प्रतीत हुआ मानों वह भारतवर्ष की इस पावन धरा के इस पुण्यात्मा पुत्र के उपवास की पूर्णाहुति में संपूर्ण सत्पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जब मैं रामलला के मंदिर के सिंहद्वार से मोदी जी के 11 दिवसीय महा-अनुष्ठान एवं उनकी कठिन तपश्चर्या के बारे में गोविंद गिरि जी महाराज को सुन रहा था तो मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए मोदी ने जी ने स्वयं ही आचार्यों से विधि विधान के लिए पूछा था। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में यजमान बनने के लिए उन्हें तीन दिन का अनुष्ठान करने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने 11 दिनों का महा-अनुष्ठान किया। वह अन्न का त्याग कर नारियल पानी के सहारे 11 दिनों तक रहे, भूमि पर सोये और राम में लीन रहे। उन्हें जितना कठोर व्रत करने को कहा गया था, उन्होंने उससे ज्यादा कठोर व्रत किया, पर उन्होंने अपने शासकीय कर्तव्यों को भी उसी निष्ठा से निभाया। यही तो राजर्षि का सही अर्थ जो उनमें सदैव जाग्रत और जीवंत है।

भारत के संविधान की मूल प्रति में भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। यह कैसी विडंबना थी कि अपने ही देश में रामलला को अपने ही घर से बेदखल होकर 500 सालों तक टेंट में बारिश, धूप और शीत के साए में कष्ट भोगना पड़ा। उनके लिए एक वर्ष में केवल 7 कपड़े और 20,000 रुपये तय थे। इससे हर भारतवासी का मन क्षुब्ध और व्यथित था, लेकिन हम कर भी क्या सकते थे। इस देश के स्वाभिमान को निचले स्तर की राजनीति ने जो जकड़ रखा था !

देश को आवश्यकता थी एक ऐसे सपूत की, जो इस देश के खोये हुए स्वाभिमान को जगा सके, सुसुप्तावस्था में जा चुके सनातन मानस को चैतन्य कर सके। वर्षों बाद भारत ने नरेन्द्र मोदी में अपने खोये हुए गौरव का प्रकाश देखा। दशकों की दासता की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हुआ भारतवर्ष अतीत के हर दंश से मुक्ति पाता हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नए इतिहास का सृजन कर रहा है। आज से हजार साल बाद भी लोग 22 जनवरी 2024 की तारीख को याद करेंगे और इस पल की चर्चा करते नहीं थकेंगे। जिन-जिन के प्रयासों के बल पर रामलला अपने मंदिर में विराजमान हो पाए और हमें इस स्वर्णिम, अद्भुत एवं अविस्मरणीय क्षण को जीने का अवसर मिला, उन्हें हम कोटि-कोटि आत्मीय अभिनंदन करते हैं।

आज पूरा देश राममय है, रामभक्ति में सराबोर है। राम सामाजिक एकता की चेतना हैं, जीवन की अवधारणा हैं और आदर्श की पराकाष्ठा हैं। राम राज्य सुशासन के चार स्तंभों पर खड़ा था जहां सम्मान से, बिना भय के हर कोई सिर ऊंचा कर चल सके, जहां हर नागरिक के साथ समान व्यवहार हो, जहां हर कमजोर की सुरक्षा हो और जहां धर्म यानी कर्तव्य सर्वोपरि हो।

वर्तमान में हम इन्हीं चारों स्तंभों को चरितार्थ होता हुआ देख रहे हैं। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के विराजमान होने से संपूर्ण विश्व में भारत की प्राचीन गौरवशाली धरोहर के प्रति सम्मान का नया भाव उभरा है। विश्व इस नए भारत की ओर आशा एवं सम्मान के भाव से देख रहा है। यह अचानक जादू से नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे कठोर परिश्रम है। पिछले 10 वर्षों में हमने इस परिवर्तन को बहुत ही निकट से अनुभव किया है।

राम राष्ट्र की संस्कृति हैं, राम राष्ट्र के प्राण हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। रामलला के मंदिर का निर्माण का अर्थ भारत का नवनिर्माण है। अयोध्या धाम में श्री राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा का अलौकिक क्षण हर किसी को भाव-विभोर करने वाला है। इस दिव्य कार्यक्रम का साक्षी बनना मेरा परम सौभाग्य है। जय सियाराम ! वंदे मातरम् !!

(लेखक जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं)