जागरण संपादकीय: शहरों की सूरत, केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर बनानी होगी व्यवस्था
हमारे शहरों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ट्रैफिक सीवर पेयजल सड़क निर्माण यातायात आदि की जिम्मेदारी अलग-अलग विभाग संभालते हैं। इन विभागों में तालमेल मुश्किल से ही देखने को मिलता है। कई बार तो एक विभाग को दूसरे विभाग की योजनाओं की जानकारी ही नहीं होती है। यदि होती भी है तो उनमें सहयोग कायम नहीं हो पाता।
केंद्र सरकार ने शहरों की सूरत संवारने के लिए पांच कार्य समूहों का जो गठन किया है, उनकी सफलता को लेकर संदेह होना स्वाभाविक है। संदेह का बड़ा कारण यह है कि अभी तक शहरी ढांचे को सुधारने के लिए जो भी प्रयत्न किए गए, वे सफल नहीं हो सके हैं। यदि केंद्र सरकार यह चाह रही है कि शहरों की सूरत वास्तव में सुधरे तो उसे राज्यों के साथ मिलकर ऐसी कोई व्यवस्था बनानी होगी, जिससे शहरी ढांचे को सुधारने के लिए जिम्मेदार विभिन्न विभागों में समन्वय कायम हो सके और उन्हें जवाबदेह भी बनाया जा सके। फिलहाल ऐसा नहीं है और इसीलिए देश के छोटे-बड़े शहर अनियोजित विकास का पर्याय बने हुए हैं। यह एक तथ्य है कि जैसे-जैसे शहरों में आबादी बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वे समस्याओं से घिरते चले जा रहे हैं। देश के अधिकांश शहर गंदगी, प्रदूषण, अव्यवस्थित यातायात से घिरते जा रहे हैं। उनमें कई तरह के विकास कार्य होते तो रहते हैं, लेकिन बेतरतीब तरीके से। शायद ही किसी शहर में कोई विकास योजना यह ध्यान में रखकर क्रियान्वित की जाती हो कि वह दशकों बाद तक भी उपयोगी बनी रहे। अधिकांश योजनाएं समस्याओं के तात्कालिक समाधान के लिए होती हैं।
हमारे शहरों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ट्रैफिक, सीवर, पेयजल, सड़क निर्माण, यातायात आदि की जिम्मेदारी अलग-अलग विभाग संभालते हैं। इन विभागों में तालमेल मुश्किल से ही देखने को मिलता है। कई बार तो एक विभाग को दूसरे विभाग की योजनाओं की जानकारी ही नहीं होती है। यदि होती भी है तो उनमें सहयोग कायम नहीं हो पाता। ऐसे में पहली जरूरत इसकी है कि वे मिलकर कार्य करें। यह तब तक संभव नहीं, जब तक उनका कामकाज देखने वाला कोई एक विभाग जवाबदेह नहीं बनाया जाता। ऐसा कोई सक्षम अधिकारी होना ही चाहिए, जो विभिन्न विभागों का नेतृत्व कर सके और उनसे अपने मन मुताबिक काम करा सके। यह ठीक है कि केंद्र सरकार शहरी विकास को दिशा देने के लिए जिन पांच कार्य समूहों का गठन करने जा रही है, उन्हें आवश्यक राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधारों को रेखांकित करने की भी जिम्मेदारी दी गई है।
ये कार्य समूह सरकारी विभागों और सरकार नियंत्रित निगमों की भूमिका को परिभाषित करने के साथ ऐसे उपाय भी सुझाएंगे, जिनसे पार्षदों से लेकर मेयरों तक के कामकाज की समीक्षा की जा सके। यह किया जाना आवश्यक है, लेकिन क्या राज्य सरकारें नगर निगमों से लेकर शहरी विकास की जिम्मेदारी संभालने वाले अन्य विभागों को जवाबदेह और कार्यकुशल बनाने के लिए वास्तव में तत्पर हैं? यदि वे अपने शहरों और वहां रहने वाली आबादी का भला चाहती हैं तो उन्हें यह तत्परता दिखानी ही होगी। यह तत्परता इसलिए भी दिखाई जानी चाहिए, क्योंकि आज के युग में शहर विकास के इंजन हैं। देश के विकास के लिए यह आवश्यक है कि हमारे शहर संवरें और उनमें रहने वालों का जीवन सुगम हो।