संजय गुप्त। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने औद्योगिक कारिडोर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत 10 राज्यों में 12 औद्योगिक स्मार्ट सिटी विकसित करने की जिस योजना को हाल में मंजूरी दी, वह समय की मांग थी। इस फैसले के अनुसार उत्तराखंड में खुरपिया, पंजाब में राजपुरा, उत्तर प्रदेश में आगरा एवं प्रयागराज, बिहार में गया, महाराष्ट्र में दिघी, राजस्थान में जोधपुर-पाली, आंध्र प्रदेश में कोपर्थी एवं ओर्वाकल, तेलंगाना में जहीराबाद और केरल में पलक्कड़ में नए औद्योगिक शहर स्थापित किए जाएंगे।

इसी तरह का एक शहर हरियाणा में स्थापित होगा। ये शहर बड़े औद्योगिक गलियारों के आसपास विकसित होंगे। ज्ञात हो कि आम बजट में इन औद्योगिक शहरों की स्थापना की घोषणा की गई थी। सरकार का मानना है कि इन औद्योगिक शहरों के विकास में 28,602 करोड़ रुपये का निवेश होगा और इन शहरों में 1.50 लाख करोड़ का औद्योगिक निवेश आएगा, जिससे 10 लाख प्रत्यक्ष जबकि 30 लाख अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी।

फिलहाल कहना कठिन है कि ये शहर कब तक स्थापित हो सकेंगे और देश को उनसे कब तक लाभ मिलने लगेगा, क्योंकि सरकार की बड़ी योजनाएं तय समय में कठिनाई से ही पूरी होती हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अतीत में इस तरह की कुछ महत्वाकांक्षी घोषणाएं सही तरह आगे नहीं बढ़ सकीं और कुछ तो अपनी अहमियत खो बैठीं।

उदाहरणस्वरूप विशेष आर्थिक जोन यानी एसईजेड उस तरह स्थापित नहीं हो सके, जैसी उम्मीद की जा रही थी। स्पष्ट है कि सरकार को इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे कि 12 नए औद्योगिक शहरों की स्थापना का लक्ष्य तय समय में सही तरह पूरा हो।

नए औद्योगिक शहरों को बसाने में तब कामयाबी मिलेगी, जब सरकार को निजी क्षेत्र का हरसंभव सहयोग मिलेगा। यह सहयोग तभी संभव है, जब निजी क्षेत्र को इनमें आकर्षण दिखेगा। ध्यान रहे कि कुछ प्रस्तावित औद्योगिक शहर बड़े शहरों से दूर हैं। इसके चलते कुशल कारीगर और प्रबंधन के दक्ष लोग वहां रहना चाहेंगे या नहीं, यह भविष्य ही बताएगा।

निःसंदेह देश को ऐसे शहरों की आवश्यकता तो है, लेकिन जब तक उनमें अच्छी-खासी संख्या में उद्योग स्थापित नहीं हो जाते और नागरिक आबादी की बसाहट के लिए उपयुक्त आधारभूत ढांचे का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक वे लोगों के आकर्षण का केंद्र नहीं बनेंगे। यदि ये नए शहर अच्छी तरह बसाए जा सके तो उनके पास के बड़े शहरों में आबादी का बोझ कम किया जा सकता है।

इन बड़े शहरों का आधारभूत ढांचा चरमरा रहा है। यह किस तरह चरमरा रहा है, इसका प्रमाण मानसून के इन दिनों में अच्छी तरह देखा जा सकता है। इन दिनों देश के कई बड़े शहर जलभराव से त्रस्त हैं। कुछ शहर तो बाढ़ के प्रकोप का सामना कर रहे हैं और इसके चलते उनका आधारभूत ढांचा और भी तेजी से खराब हो रहा है।

कहने को तो देश के हर शहर के नगर निकायों ने मानसून से पहले जल निकासी का प्रबंध करने के दावे किए थे, लेकिन वे दो-चार बार की बारिश के बाद ही दम तोड़ गए। इस मामले में राजधानी दिल्ली की स्थिति भी दयनीय है। शहरों में जल निकासी और खासकर वर्षा जल निकासी की जो व्यवस्था है, वह गई-बीती ही अधिक है। यह व्यवस्था अपर्याप्त तो है ही, खराब इंजीनियरिंग एवं अतिक्रमण के कारण और भी दुर्दशाग्रस्त हो गई है। हमारे कई शहर ऐसे हैं, जहां सीवरेज की व्यवस्था आधी-अधूरी है।

अब जब केंद्र सरकार 12 नए औद्योगिक शहर विकसित करने जा रही है, तब उसे बड़े शहरों के आधारभूत ढांचे की भी सुध लेनी चाहिए। कायदे से छोटे शहरों के आधारभूत ढांचे को भी संवारा जाना चाहिए, लेकिन यह तो वह काम है, जिसे राज्य सरकारों को करना है। समस्या यह है कि राज्य सरकारें इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही हैं। इसके चलते नगर निगम जैसी संस्थाओं की कार्यप्रणाली सुधरने का नाम नहीं ले रही है।

यह सही समय है कि नगर निगमों, नगर पालिकाओं के कामकाज को ठीक करने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाए। यह राज्य सरकारों की प्राथमिकता के अभाव का ही परिणाम रहा कि स्मार्ट सिटी योजना अपेक्षित नतीजे नहीं दे सकी। औद्योगिक शहरों की स्थापना करते समय उन कारणों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, जिनके चलते स्मार्ट सिटी योजना उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकी।

स्मार्ट सिटी योजना के संचालन के बाद भी नगर निकायों और शहरी ढांचे संबंधी अन्य सरकारी एजेंसियों की कार्यप्रणाली में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आ सका है। यह इसीलिए नहीं आ सका, क्योंकि इन संस्थाओं का कामकाज बेहतर करने की जिम्मेदारी जिन जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों की थी, उन्हें जवाबदेह नहीं बनाया जा सका। इन्हें जिम्मेदार और जवाबदेह बनाए बिना शहरों के आधारभूत ढांचे को सुधारा नहीं जा सकता।

निःसंदेह नगर निकायों के साथ आम जनता को भी जिम्मेदार बनना होगा। उन्हें आधारभूत ढांचे संबंधी नियम-कानूनों के पालन के प्रति सजग रहना होगा। बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण इसीलिए होते हैं, क्योंकि आम लोग संबंधित नियम-कानूनों का पालन नहीं करते। जब कहीं एक-दो जगह अवैध निर्माण हो जाता है, तो बाकी के लिए वह नजीर बन जाता है।

जब अवैध निर्माण या अतिक्रमण हो रहा होता है, तब उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं होता। इसी के चलते झुग्गी बस्तियां स्थापित हो जाती हैं। जब उनमें आबादी बढ़ जाती है तो उन्हें वैध करार देने की पहल होने लगती है। वोट बैंक के लालच में सरकारें भी अवैध तरीके से बनाई गई बस्तियों और कालोनियों को नियमित कर देती है।

जब ऐसा होता है तो अनियोजित विकास को बढ़ावा मिलता है और वह शहरों की सूरत बिगाड़ता है। यदि जनता आधारभूत ढांचे के सुनियोजित विकास को लेकर जागरूक नहीं होती तो शहरों की जो समस्याएं हर वर्ष बढ़ती जा रही हैं, वे विकराल होती जाएंगी और उनका समाधान अत्यंत कठिन हो जाएगा।

शहरों का बिगड़ता आधारभूत ढांचा उनमें रहने वाले लोगों के समक्ष त्राहिमाम की स्थिति ही पैदा करेगा। हमारे नीति-नियंताओं को इसकी अनदेखी नही करनी चाहिए कि शहर विकास के इंजन होते हैं और यदि उनके आधारभूत ढांचे को ठीक नहीं किया गया तो आर्थिक विकास के लक्ष्य को पाना कठिन ही होगा।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]