उमेश चतुर्वेदी। भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर इस समय खूब अटकलें लगाई जा रही हैं। मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल पूरा हुए दो महीने बीत चुके हैं। इस समय वह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व भी संभाल रहे हैं। चूंकि भाजपा में एक व्यक्ति-एक पद का सिद्धांत स्वीकार्य है, अतः नए अध्यक्ष की खोज स्वाभाविक है।

कई नामों की चर्चा भी है, लेकिन पिछले कुछ समय से पार्टी की कार्यसंस्कृति को देखते हुए कुछ भी कहना कठिन है कि अंतिम मुहर किस नाम पर लगेगी। छह महीने पहले तक जिस पार्टी को अजेय समझा जा रहा था, उसकी स्थिति आम चुनाव के बाद बदली है। यह पहलू नए अध्यक्ष के चयन में भी प्रभावी होता दिख रहा है।

पार्टी ने जिन वर्गों में अपनी पैठ बढ़ाई थी, वह कुछ कमजोर होती दिख रही है। अति पिछड़े और दलितों में गैर-जाटव मतदाता पहले की भांति मंडल की राजनीति के इर्दगिर्द एक बार फिर गोलबंद होते नजर आ रहे हैं। ऐसे में पार्टी के समक्ष दलित या पिछड़े वोट बैंक में विस्तार के लिए इसी वर्ग से नया अध्यक्ष चुनने का दबाव हो सकता है।

हालांकि पार्टी औपचारिक रूप से ऐसे किसी दबाव से इनकार करती है। पार्टी में दलबदलुओं को तवज्जो मिलने से कोर वोट बैंक में भी निराशा दिख रही है। ऐसे में नए अध्यक्ष के लिए तमाम चुनौतियां प्रतीक्षा कर रही हैं।

फिलहाल अध्यक्ष पद के लिए जिन नामों की चर्चा है, उनमें केंद्रीय संगठन में सक्रिय महाराष्ट्र के विनोद तावड़े के अलावा उनके ही राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम प्रमुख हैं।

नए अध्यक्ष के मामले में भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद का भी ख्याल रखना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि मौजूदा अध्यक्ष नड्डा की आम चुनाव के दौरान संघ को लेकर की गई एक टिप्पणी ने दोनों पक्षों के बीच खटास बढ़ाने का काम किया था।

नड्डा ने कहा था कि ‘अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं पड़ती।’ इन्हीं वजहों से माना जा रहा है कि मौजूदा माहौल में ऐसा व्यक्ति ही भाजपा की कमान संभाल सकता है, जो संघ और पार्टी में बेहतर तालमेल बिठा सके और जमीनी स्तर पर संतुलन बनाए रखते हुए संगठन को आगे तो बढ़ाए ही, अपने आधार वोट बैंक को फिर से आश्वस्त करे।

इस लिहाज से देखा जाए तो फडणवीस और शिवराज सिंह चौहान दोनों ही संघ के नजदीकी हैं। दोनों का संघ के नेतृत्व से सहज संबंध है। इनमें शिवराज का पलड़ा भारी दिख रहा है। मध्य प्रदेश इन दिनों संघ और भाजपा की सफल प्रयोगशाला बन चुका है। जब तमाम राज्यों में भाजपा की सीटें घटीं, तब मध्य प्रदेश की सभी सीटें भाजपा के खाते में आईं।

खुद शिवराज आठ लाख से ज्यादा मतों के अंतर से प्रचंड जीत हासिल करने में कामयाब रहे। हाल के दिनों में जिस तरह शिवराज सिंह चौहान ने कृषि मंत्री का दायित्व निभाया है, फिर चाहे संसद में एमएसपी पर विपक्ष की बोलती बंद करना हो या राहुल गांधी की गलत बयानी का जवाब देना, उससे उनकी नई छवि उभरी है। वह जमीनी नेता हैं और कार्यकर्ताओं से उनका सीधा संवाद भी है।

पखवाड़े भर पहले दिल्ली का दौरा करने वाले फडणवीस के बारे में चर्चा चली कि उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान खुद को संगठन में भेजने की खुली मांग रखी। इसके बाद उनके भाजपा अध्यक्ष बनने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया। संघ से नजदीकी और उनकी कम उम्र भी मुफीद बैठती है। हालांकि महाराष्ट्र की राजनीति की जो हालत है, उसमें पार्टी शायद ही उन्हें अध्यक्ष बनाए।

इसके बजाय उन्हें राज्य में महायुति के नेता के रूप में पेश किया जा सकता है। कुछ महीनों में ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य की राजनीति की दृष्टि से भी फडणवीस की बड़ी उपयोगिता है।

एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना (शिंदे गुट), भाजपा और एनसीपी (अजीत पवार गुट) को कड़ी चुनौती देने के लिए विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) ने सत्तारूढ़ महायुति को शिकस्त देने के लिए हरसंभव प्रयास आरंभ कर दिए हैं।

उद्धव ठाकरे ने साफ किया है कि भाजपा और शिंदे को रोकने के लिए वह सीएम पद की आकांक्षा छोड़ने को भी तैयार हैं। मौजूदा लड़ाई को उद्धव राज्य के स्वाभिमान की रक्षा की लड़ाई भी बता चुके हैं।

चूंकि राजनीतिक दृष्टि से महाराष्ट्र महत्वपूर्ण राज्य है और वहां पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा है, इसलिए उसके लिए फडणवीस से बेहतर शायद कोई दूसरा विकल्प नहीं। अपने शासनकाल की उपलब्धियों के चलते फडणवीस की छवि अलग है।

अपने शासनकाल में उन्होंने पारदर्शिता, जवाबदेही और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया था। फडणवीस की हालिया पहल, ‘माझी लाड़की बहिन योजना’ भी सफल मानी जा रही है, जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता के साथ ही स्वास्थ्य और पोषण सुधार के लिए महाराष्ट्र में 21 से 65 वर्ष वाली महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपये की पेशकश की गई है। इन्हीं वजहों से भाजपा शायद ही फडणवीस को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए। इसके बजाय उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति की पूरी कमान सौंपी जा सकती है।

ऐसे में शिवराज सिंह चौहान को लेकर उम्मीद बढ़ जाती हैं। हालांकि तब केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उनका कारगर विकल्प खोजने की चुनौती भी कम बड़ी नहीं होगी। यह समय बताएगा कि विनोद तावड़े, देवेंद्र फडणवीस और शिवराज सिंह चौहान में से ही कोई अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालता है या फिर पार्टी किसी और नाम को तरजीह देगी? जो भी हो, अब किसी भी नाम पर विधानसभा चुनाव निपटने के बाद ही मुहर लगने के आसार हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)