जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनावों का अलग-अलग कारणों से विशेष महत्व था। जहां जम्मू-कश्मीर को लेकर यह उत्सुकता थी कि हमारा यह भूभाग लोकतंत्र की कसौटी पर खरा उतरता है या नहीं, वहीं हरियाणा इस कारण सबकी निगाह में था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की लोकप्रियता का जो ग्राफ गिरा, उसमें कोई बदलाव आता है या नहीं? जम्मू-कश्मीर की जनता ने विधानसभा चुनाव के नतीजों के पहले ही यह जरूरी संदेश दे दिया था कि यहां लोकतंत्र ने फिर से अपनी जड़ें जमा ली हैं। देश के साथ दुनिया को यह संदेश मिल जाने के चलते बस यह जिज्ञासा रह गई थी कि सत्ता किसे हासिल होती है?

चूंकि भाजपा यहां सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी और जम्मू संभाग की तुलना में कश्मीर घाटी में उसका प्रभाव नगण्य ही था, इसलिए इसके आसार न्यून ही थे कि वह सत्ता की प्रबल दावेदार बन जाएगी। इसके बाद भी यह उल्लेखनीय है कि जम्मू संभाग में विरोधियों पर भारी पड़ने के साथ ही उसने कश्मीर घाटी में अपने जनाधार की जमीन तैयार की। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस के साथ सरकार बनाना तय है, लेकिन उसे विभाजनकारी एजेंडे को छोड़कर ऐसा माहौल बनाना होगा कि शांति एवं स्थिरता बढ़े, जम्मू को बराबर का महत्व मिले और कश्मीरी हिंदुओं की घर वापसी हो सके। यह सब किए बिना राज्य के दर्जे की बहाली पर जोर देना सही नहीं होगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हरियाणा के नतीजे अप्रत्याशित रहे। इस कारण और भी, क्योंकि चुनाव के पहले यह माहौल बना दिया गया था कि कांग्रेस की आसानी से वापसी होने जा रही है। यदि ऐसा नहीं हो सका और भाजपा ने पिछली बार से अधिक सीटें लेकर रिकार्ड तीसरी बार सत्ता हासिल कर ली तो इसका कारण केवल यही नहीं कि उसने अपनी नीति-रणनीति बदली, बल्कि इसलिए भी कि कांग्रेस अकारण अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई।

लगता है उसने यह समझ लिया था कि वह लोकसभा चुनाव की तरह दुष्प्रचार के सहारे अपने पक्ष में माहौल बना लेगी। उसे समझना चाहिए था कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती। कांग्रेस ने एक गलती यह भी की कि उसने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कुछ ज्यादा ही अधिकार संपन्न कर दिया। हैरानी नहीं कि उनके कारण ही जाट बनाम गैर जाट का मुद्दा सतह पर आया और वह कांग्रेस पर भारी पड़ा। अब चुनाव नतीजों पर चकित होकर और चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा कर कांग्रेस यही साबित कर रही है कि वह अपनी गलतियों का दोष दूसरों पर मढ़ने में माहिर हो चुकी है। हरियाणा के चुनाव परिणामों से भाजपा का मनोबल बढ़ना स्वाभाविक है, क्योंकि एक तो वह लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद बने नकारात्मक माहौल को दूर करने में सफल रही और दूसरे महाराष्ट्र, झारखंड समेत अन्य राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उसे अतिरिक्त ऊर्जा मिल गई।