जागरण संपादकीय: जनगणना पर सवाल, अनावश्यक विलंब पर देना होगा ध्यान
जनगणना एक लंबी प्रक्रिया है। यदि अगले वर्ष जनगणना शुरू होती है तो उसके आंकड़े सामने आने में लगभग दो वर्ष का समय लग सकता है। ऐसे में उचित यही है कि इसे यथाशीघ्र शुरू किया जाए क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व भी है। जनगणना केवल देश के लोगों की गिनती करना ही नहीं है। यह लोगों की आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का पता लगाने का उपक्रम भी है।
जनगणना में देरी को लेकर कांग्रेस ने सरकार से जो सवाल पूछा, उसका जवाब सामने आना ही चाहिए, क्योंकि इस कार्य में अनावश्यक विलंब हो रहा है। जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण उसे टालना पड़ा।
महामारी के प्रकोप को देखते हुए यह उचित ही था, लेकिन अब जब कोविड महामारी समाप्त हो चुकी है और लोकसभा चुनाव होने के साथ अन्य दूसरे बड़े आयोजन हो रहे हैं, तब फिर यह प्रश्न अनुत्तरित क्यों हैं कि जनगणना कब शुरू होगी? ध्यान रहे कि कोविड महामारी के कारण जिन अन्य देशों ने भी जनगणना टाल दी थी, उनमें से कई देश उसे पूरा कर चुके हैं।
पड़ोसी देश श्रीलंका में भी जनगणना होने जा रही है। उसका ही उल्लेख कर कांग्रेस ने सरकार के सामने जनगणना में देरी का प्रश्न रखा है। यह ठीक है कि श्रीलंका एक छोटा देश है, लेकिन जनगणना के महत्व को देखते हुए भारत सरकार को उसमें और अधिक देर नहीं करनी चाहिए।
यदि जनगणना में और अधिक देरी हुई तो इससे यह प्रश्न भी उठ खड़ा होगा कि उसे 2031 में कराया जाएगा या नहीं? कहीं ऐसा न हो कि जनगणना में और अधिक देरी से उसका क्रम ही बाधित हो जाए। जनगणना में देरी का एक दुष्परिणाम यह भी होगा कि महिला आरक्षण कानून के अमल में विलंब हो सकता है। इसी तरह निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन का काम भी अटक सकता है।
यह ठीक है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करीब तीन सप्ताह पहले यह संकेत दे चुके हैं कि जनगणना शीघ्र कराई जाएगी, लेकिन उचित यह होगा कि इसे स्पष्ट किया जाए कि यह कब कराई जाएगी और इसमें देरी क्यों हो रही है, क्योंकि अब विलंब का कोई कारण नहीं दिखता।
चूंकि पिछले आम बजट में जनगणना के लिए कोई विशेष आवंटन नहीं किया गया, इसलिए यह प्रश्न उभर आया है कि अब कहीं अगले वर्ष बजट के बाद ही तो जनगणना शुरू नहीं होगी? जनगणना एक लंबी प्रक्रिया है। यदि अगले वर्ष जनगणना शुरू होती है तो उसके आंकड़े सामने आने में लगभग दो वर्ष का समय लग सकता है।
ऐसे में उचित यही है कि इसे यथाशीघ्र शुरू किया जाए, क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व भी है। जनगणना केवल देश के लोगों की गिनती करना ही नहीं है। यह लोगों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का पता लगाने का उपक्रम भी है। चूंकि जनगणना में देर हो रही है, इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को 2011 के आंकड़ों से ही काम चलाना पड़ रहा है।
यह ठीक नहीं, क्योंकि अब इतने पुराने आंकड़े प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। पुराने आंकड़ों के सहारे किसी योजना का क्रियान्वयन करना ठीक नहीं। जनगणना के सटीक आंकड़े जहां जनकल्याण और विकास की प्रभावी योजनाएं तैयार करने में मददगार साबित होते हैं, वहीं शोध एवं व्यापारिक संस्थानों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होते हैं।