जागरण संपादकीय: लोक से संवाद का अनूठा प्रयोग, शासक का संवाद लोकतंत्र की कामयाबी के लिए जरूरी
आधुनिक लोकतंत्र की पहली शर्त है लोक का चुने हुए शासक से सीधा संवाद। इस संवाद के माध्यम और तरीके पर हमेशा से चिंतन होता रहा है। इन अर्थों में आकाशवाणी पर प्रसारित हो रहे ‘मन की बात’ कार्यक्रम को लोक संवाद की आधुनिक व्यवस्था कहा जा सकता है। रेडियो के इतिहास में ‘मन की बात’ संभवत पहला कार्यक्रम है जो इतना नियमित है।
उमेश चतुर्वेदी। महाकवि कालिदास के प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् का एक दृश्य है, जहां एक व्यक्ति न्याय की अपेक्षा में राजा दुष्यंत के महल में तीन बजे भोर में पहुंचता है। वह द्वारपाल से राजा से मिलने की अनुमति मांगता है। वह कुछ संकोच भी कर रहा है कि राजा कहीं विश्राम कर रहे होंगे। तब द्वारपाल उस व्यक्ति को समझाता है कि यह आपका लोकतांत्रिक अधिकार है कि अपने राजा से कभी भी मिल सकते हैं। ऐसा अधिकार उस राजतंत्रिक व्यवस्था में था, जिसे हम पुरातनपंथी मानते हैं। आधुनिक लोकतंत्र की जटिलताओं के चलते आज के शासक से मिलना आमजन के लिए संभव ही नहीं है। कहीं-कहीं जनता दरबार जैसी संकल्पनाएं हैं भी तो उनमें भी दुष्यंत जैसा लोकतांत्रिक सोच नहीं है। आधुनिक लोकतंत्र की पहली शर्त है, लोक का चुने हुए शासक से सीधा संवाद। इस संवाद के माध्यम और तरीके पर हमेशा से चिंतन होता रहा है। इन अर्थों में आकाशवाणी पर प्रसारित हो रहे ‘मन की बात’ कार्यक्रम को लोक संवाद की आधुनिक व्यवस्था कहा जा सकता है। रेडियो के इतिहास में ‘मन की बात’ संभवत: पहला कार्यक्रम है, जो इतना नियमित है। हाल में इसने एक दशक का सफर पूरा कर लिया। सबसे अहम बात यह है कि यह कार्यक्रम तब रेडियो पर आया, जब संचार माध्यमों की क्रांति अपने उफान पर थी।
इंटरनेट के विस्तार और विकास ने दो मोर्चों पर संचार माध्यमों को प्रभावित किया है। उसने खुद में सारे माध्यमों मसलन प्रिंट, रेडियो और टीवी को तो आत्मसात किया ही, खुद को सभी रूपों में एक साथ विस्तारित भी किया। ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ के जरिये देश को संबोधित करना शुरू किया, जिसकी वजह से दूसरी पीढ़ी के माध्यम यानी पारंपरिक रेडियो की लोकप्रियता को नई गति मिली। हालांकि इसकी वजह से मोदी अपने राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर भी रहे। उन्हें अक्सर यह उलाहना भी सुनना पड़ा कि उन्हें ‘जन की बात’ करनी चाहिए। सार्वजनिक माध्यम के जरिये जनता को संबोधित करने की पहली कोशिश पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने की थी।
दूसरे विश्व युद्ध की आहट की वजह से जहां अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था चरमराने लगी थी, वहीं जर्मनी के हिटलर प्रशासन की ओर से खूब प्रोपेगंडा फैलाया जा रहा था। ऐसे माहौल में रूजवेल्ट को लगा कि अमेरिकी लोगों को सांत्वना देने और दुनिया को अफवाहों से बचाने के लिए उनके सामने सही बात रखी जानी चाहिए। इसके लिए रेडियो उन्हें ज्यादा प्रभावी माध्यम लगा, जिसके जरिये अपनी बात तुरंत लोगों तक पहुंचाई जा सकती थी। रूजवेल्ट ने इस कार्यक्रम का नाम फायरसाइड चैट दिया, जिसके जरिये उन्होंने अमेरिका और दुनिया को अमेरिका के रुख से न सिर्फ परिचित कराया, बल्कि ध्वस्त होने के कगार पर पहुंची अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था को बचाने के लिए की जा रही अपनी सरकार की कोशिशों की जानकारी भी दी। फायरसाइड चैट के जरिये उन्होंने लोगों की राय बदल दी। 1933 में शुरू हुआ उनका यह रेडियो संवाद 1944 तक जारी रहा। हालांकि उसमें रुकावट भी आ जाती थी। इसकी तुलना में ‘मन की बात’ नियमित है।
‘मन की बात’ के पहले एपिसोड का प्रसारण तीन अक्टूबर, 2014 को हुआ, जिसका विषय एक दिन पहले ही शुरू हुआ ‘स्वच्छता अभियान’ था। उस दिन शुक्रवार था और दशहरा का पावन त्योहार भी। तब से लेकर मार्च 2015 तक महीने के आखिरी शुक्रवार को ही इसका प्रसारण होता रहा, लेकिन बाद में महीने के आखिरी रविवार का दिन तय हुआ। तब से प्रसारण का यही दिन नियत है। इस कार्यक्रम में सामाजिक बदलाव ला रहे स्थानीय नायकों का खूब उल्लेख होता है। बिहार की किसान चाची हों या कश्मीर का शिकारा चलाकर परिवार पालता बच्चा या फिर वाराणसी के गंगा घाट की सफाई का अभियान शुरू करने वाली छात्राएं हों, ऐसे तमाम लोगों की इस कार्यक्रम में चर्चा हुई है। इनके जरिये सामाजिक बदलाव लाने वाले लोगों को समाज के सामने प्रेरक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस कार्यक्रम में उस महीने विशेष के त्योहारों के जरिये भी सांस्कृतिक और आर्थिक आयामों को प्रस्तुत किया जाता है।
मेक इन इंडिया, लोकल के प्रति वोकल, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, खेती-किसानी में नवाचार, खिलौना उद्योग का विस्तार, स्टार्टअप, अंगदान की महत्ता जैसे तमाम विषय हैं, जिन पर प्रधानमंत्री ने खुलकर चर्चा की और उन पर लोगों का ध्यान भी गया है। जल संरक्षण, त्योहारों पर भारतीय वस्तुओं की खरीद, खादी का कम से कम एक वस्त्र जरूर खरीदने की अपील हो या फिर नवीकरणीय ऊर्जा की बात, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव लाने वाले ऐसे कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी ने इस एक दशक में खुलकर चर्चा की है।
गत दिनों ‘मन की बात’ की एक सौ चौदहवीं कड़ी में प्रधानमंत्री ने ‘नारी शक्ति’, अमेरिका से वापस आ रही सैकड़ों कलाकृतियों की चर्चा के साथ ही मातृभाषा में शिक्षा की चर्चा की। इसके ठीक पहले के एपिसोड में उन्होंने प्रतिभाओं की राह में आने वाली बाधाओं में परिवारवाद को भी जिम्मेदार बताया था। प्रधानमंत्री इस कार्यक्रम में शामिल किए जाने के लिए विषयों के लिए आम लोगों से सुझाव भी मांगते रहे हैं। लोक से शासक का संवाद लोकतंत्र की कामयाबी के लिए जरूरी है। इस लिहाज से देखें तो ‘मन की बात’ इसी संवाद प्रक्रिया का तरीका है, जो रूजवेल्ट के संवाद से कुछ अलग है। रूजवेल्ट ने राजनीति को जवाब के तौर पर फायरसाइड चैट का इस्तेमाल किया, जबकि मोदी इसके जरिये समाज को ही सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बदलाव को लेकर हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित करने की कोशिश कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)