संविधान हत्या दिवस का एलान कर केंद्र ने दिया विपक्ष को संदेश
केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाए जाने का एलान किया है। वहीं विपक्ष ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। विपक्षी दलों ने सरकार पर जमकर निशाना साधा है। कांग्रेस की ओर से किए जा रहे इस दुष्प्रचार की काट करने के लिए कोई कोर कसर नहीं उठा रखेगी कि भाजपा संविधान बदलने का इरादा रखती है।
केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाए जाने की अधिसूचना जारी कर यही स्पष्ट किया कि वह विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस की ओर से किए जा रहे इस दुष्प्रचार की काट करने के लिए कोई कोर कसर नहीं उठा रखेगी कि भाजपा संविधान बदलने का इरादा रखती है। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि मोदी सरकार ने 49 साल पहले 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल थोपे जाने के इंदिरा गांधी के मनमाने फैसले को संविधान को कुचलने वाले कदम के रूप में स्मरण करने का निर्णय केवल इसलिए नहीं किया कि कांग्रेस ने हाल के लोकसभा चुनावों में देश भर में घूम-घूम कर यह दुष्प्रचार कर लोगों को बरगलाया कि यदि भाजपा का चार सौ पार का नारा सही सिद्ध हो गया तो प्रधानमंत्री मोदी संविधान बदल देंगे और आरक्षण खत्म कर देंगे।
यह निर्णय संभवतः इसलिए भी लिया गया, क्योंकि लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद भी कांग्रेस और उसके साथी दल यह खोखला दावा करने में लगे हुए हैं कि उन्होंने संविधान की रक्षा की। निःसंदेह 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय एक राजनीतिक फैसला है, लेकिन शायद मोदी सरकार के लिए ऐसा कोई फैसला लेना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि अभी हाल में जब आपातकाल की बरसी पर इंदिरा सरकार की ओर से की गईं ज्यादतियों का स्मरण किया जा रहा था तो कांग्रेस ने यही दिखाया कि उसे यह रास नहीं आ रहा है। हद तो तब हो गई, जब आपातकाल के विरोध में लोकसभा में प्रस्ताव पारित किया गया तो राहुल गांधी की ओर से कहा गया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
आपातकाल के स्मरण पर कांग्रेस के नकारात्मक रवैये को देखते हुए इसकी आवश्यकता स्वतः रेखांकित होने लगी थी कि उस काले दौर को कभी भूला नहीं जाना चाहिए। यह स्वाभाविक है कि कांग्रेस को 25 जून को संविधान हत्या दिवस के तौर पर मनाए जाने का फैसला पसंद नहीं आया, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसने तो आपातकाल के अलावा भी संविधान की अनदेखी करने वाले फैसले लिए हैं। क्या यह एक तथ्य नहीं कि शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1985 के फैसले को पलटना संविधान का नग्न निरादर ही था?
सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले से देश को यह अच्छी तरह स्मरण भी हो आया। कांग्रेस संविधान को भाजपा और विशेष रूप से मोदी सरकार से खतरे का कितना ही हौवा खड़ा करे, सच यह है कि संविधान में सबसे अधिक संशोधन उसने ही किए हैं और वह भी विपक्ष की अनदेखी करके। इसके विपरीत मोदी सरकार ने बीते दस वर्षों में जो भी संविधान संशोधन किए, उनमें से हर किसी का कांग्रेस ने समर्थन किया-वह चाहे जीएसटी संबंधी हो या फिर निर्धन सवर्णों को आरक्षण प्रदान करने का।