यह गंभीर चिंता का कारण बनना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नई सरकार का गठन होने के बाद से आतंकी हमलों का सिलसिला कायम हो गया है। राज्य में बीते सात दिन में चार आतंकी हमले हो चुके हैं। इन हमलों में आम लोगों के साथ सैनिकों को भी निशाना बनाया गया है। ऐसा लगता है कि आतंकी यह संदेश देना चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में वे अब भी कहीं पर और कभी भी हमला करने में सक्षम हैं। यह संदेश देने के लिए वे ऐसी जगहों पर भी हमले कर रहे हैं, जहां आम तौर पर पहले उनकी गतिविधियां देखने को नहीं मिलती रहीं।

साफ है कि आतंकी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के साथ ही यह प्रकट करना चाहते हैं कि वे दहशत फैलाने में समर्थ हैं। उनका यह मुगालता दूर करना ही होगा और इसमें सफलता तब मिलेगी, जब उनके साथ-साथ उनकी मदद करने वालों को भी सबक सिखाया जाएगा। अधिकांश आतंकी हमलों में यह देखने को मिला है कि आतंकियों को स्थानीय लोगों का सहयोग मिला। आतंकियों के स्थानीय मददगारों पर शिकंजा कसने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें पाकिस्तान से किसी तरह का सहयोग न मिलने पाए। केवल इतना पर्याप्त नहीं कि भारत पाकिस्तान की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आ रहा है कि सब कुछ भूलकर आगे बढ़ने की जरूरत है। पाकिस्तान को यह सख्त संदेश देने की भी जरूरत है कि उसे जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने की फिर से वैसी ही कीमत चुकानी पड़ सकती है, जैसी सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के रूप में चुकाई थी।

अब जब यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आने वाला नहीं है, तब फिर सीमा पर चौकसी बढ़ाने, आतंकियों की घुसपैठ रोकने और घाटी में उनके समर्थकों को बेनकाब करने पर नए सिरे से ध्यान देना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि पाकिस्तान को यह रास नहीं आया है कि जम्मू-कश्मीर में शांति से चुनाव संपन्न हो गए और इन चुनावों में लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। यह सही है कि इन चुनावों में अलगाववादियों को मात मिली, लेकिन इसकी आशंका है कि वे जिनके भरोसे चुनाव मैदान में उतरे, वही दबे-छिपे ढंग से आतंकियों की मदद कर रहे हों। जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया का शांति से निपटना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन आतंकी हमलों का सिलसिला यह बताता है कि अभी आतंक के खिलाफ पहले जैसी ही सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

इस आवश्यकता की पूर्ति की जानी चाहिए और उमर अब्दुल्ला सरकार से यह कहा जाना चाहिए कि अभी जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को बहाल करने का समय नहीं आया है। उमर अब्दुल्ला को भी चाहिए कि फिलहाल वह राज्य के दर्जे की वापसी पर जोर देने के बजाय आतंक को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने, अलगाववादियों को पस्त करने और पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को बेनकाब करने में सहयोग करें।