बिहार में जातीय गणना का काम शुरू होना इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि वह इस तरह की गणना कराने वाला पहला राज्य है। बिहार के साथ अन्य राज्य जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार किन्हीं कारणों से पुरानी परंपरा का ही पालन करने के लिए तैयार हुई। वह शायद इसलिए हिचक गई, क्योंकि इससे जातिवाद आधारित राजनीति को बल मिलने के साथ आरक्षण की नित नई मांगें सामने आने का अंदेशा था। सच जो भी हो, यह अच्छा है कि बिहार सरकार जातीय गणना के साथ लोगों की आर्थिक स्थिति का भी आकलन करने जा रही है। लोगों की आर्थिक स्थिति जानना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि उसे जानकर ही क्षेत्र विशेष के लिए आर्थिक उत्थान की कारगर योजनाएं शुरू की जा सकती हैं।

आर्थिक स्थिति का आकलन निर्धनता निवारण की योजनाओं के क्रियान्वयन में भी सहायक होता है, लेकिन यही बात जातीय गणना के बारे में नहीं कही जा सकती। सैद्धांतिक रूप से तो देश के सामने यह स्पष्ट होना ही चाहिए कि किस जाति के कितने लोग हैं, क्योंकि सामाजिक विकास की कई योजनाएं इसी आधार पर संचालित होती हैं कि कहां, किस जाति की कितनी संख्या है? जाति भारतीय समाज की एक सच्चाई है और उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। जाति का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से भी महत्व है, लेकिन जातीय गणना के खतरे भी हैं। सबसे बड़ा खतरा यह है कि विभिन्न राज्यों में जातियों का आकलन करने के नाम पर जातिवाद की राजनीति को नए सिरे से धार दी जा सकती है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपने देश में जातियों को गोलबंद करके किस तरह वोट बैंक की राजनीति की जाती है। देश में कई दल ऐसे हैं, जो जाति विशेष की राजनीति करते हैं। इन दलों ने विभिन्न जातीय समूहों को गोलबंद करके तरह-तरह के समीकरण बना रखे हैं। क्षेत्रीय राजनीतिक दल ऐसे समीकरण बनाने में माहिर हैं। भले ही जातियों के आधार पर राजनीति करने वाले दल सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने का दावा करते हों, लेकिन सच यह है कि वे जातिगत आधार पर लोगों का ध्रुवीकरण करते हैं और चुनावों के समय उसका लाभ उठाते हैं।

इस तरह की राजनीति न केवल समाज को बांटने का काम करती है, बल्कि कई बार विभिन्न जातियों के बीच वैमनस्य भी पैदा करती है। कहना कठिन है कि बिहार में जो जातीय गणना होने जा रही है, उसके क्या परिणाम और प्रभाव होंगे, लेकिन इस तथ्य को ओझल नहीं किया जा सकता कि बिहार जातिवादी राजनीति के लिए कुख्यात रहा है। एक समय यहां जाति आधारित हथियारबंद संगठन खड़े किए गए, जिन्हें जाति विशेष की निजी सेनाओं के रूप में जाना गया। स्पष्ट है कि जातीय गणना के आंकड़ों का इस्तेमाल जातिवादी राजनीति के लिए नहीं होने दिया जाना चाहिए।