चुनाव की औपचारिकता, कांग्रेस में वैसे किसी मौलिक परिवर्तन की कोई आशा नहीं
कांग्रेस कुछ भी दावा करे इस नतीजे पर पहुंचने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं कि करीब दो दशक बाद हुए अध्यक्ष पद का चुनाव एक औपचारिकता ही रहा। इसी तरह यह भी साफ है कि गांधी परिवार पार्टी से अपनी पकड़ छोड़ने के लिए तैयार नहीं।
कांग्रेस में नए अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए मतदान संपन्न हो जाने के बाद अब प्रतीक्षा है परिणाम की, लेकिन यह लगभग निश्चित है कि कौन पार्टी की कमान संभालने जा रहा है? यदि कोई चमत्कार नहीं होता तो कांग्रेस के नए अध्यक्ष 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे ही बनेंगे। इसलिए बनेंगे, क्योंकि वह उन गांधी परिवार की पसंद हैं, जिनकी इच्छा के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता। यह भी स्पष्ट है कि भले ही खड़गे को पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत न किया गया हो, लेकिन अशोक गहलोत की उम्मीदवारी खटाई में पड़ने के बाद वह जिस तरह अचानक अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बने और स्वयं उन्होंने कहा कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, उससे इसमें कोई संशय नहीं रहा कि कांग्रेस नेतृत्व यानी गांधी परिवार उन्हें ही अध्यक्ष बनाना चाहता है।
रही-सही कसर मल्लिकार्जुन खड़गे के इस तरह के वक्तव्यों से पूरी हो गई कि वह इसलिए चुनाव लड़ रहे हैं, क्योंकि गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं लड़ रहा है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह न केवल भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी के साथ खड़े हुए और उन्होंने यह कहने में संकोच भी नहीं किया कि वह गांधी परिवार के मार्गदर्शन में कांग्रेस को चलाएंगे।
कांग्रेस कुछ भी दावा करे, इस नतीजे पर पहुंचने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं कि करीब दो दशक बाद हुए अध्यक्ष पद का चुनाव एक औपचारिकता ही रहा। इसी तरह यह भी साफ है कि गांधी परिवार पार्टी से अपनी पकड़ छोड़ने के लिए तैयार नहीं। वास्तव में इसीलिए उसने उन मल्लिकार्जुन खड़गे पर भरोसा जताया, जो किसी के लिए चुनौती नहीं बन सकते। यदि पहले की तरह गांधी परिवार ही पार्टी के समस्त निर्णय करता रहा तो कांग्रेस में वैसे किसी मौलिक परिवर्तन की कहीं कोई आशा नहीं, जैसे मल्लिकार्जुन खड़गे को चुनौती देने वाले शशि थरूर चाह रहे हैं।
इसकी भी आशा नहीं की जाती कि कांग्रेस किसी नए विमर्श और एजेंडे से लैस होगी अथवा नया अध्यक्ष पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सकेगा। कुल मिलाकर पार्टी जैसे चलती थी, वैसे ही चलेगी। अंतर बस इतना होगा कि अब निर्णय अध्यक्ष के नाम पर लिए जाएंगे और चुनावी असफलताओं का ठीकरा भी उसके सिर फोड़ा जाएगा। इस तरह गांधी परिवार बिना किसी जवाबदेही अधिकार संपन्न बना रहेगा। निश्चित रूप से इससे उसका प्रभुत्व कायम रहेगा, लेकिन यह कहना कठिन है कि इससे कांग्रेस को राजनीतिक रूप से बल मिलेगा। हां, यदि कहीं शशि थरूर को अपेक्षा से अधिक वोट मिल जाते हैं तो इससे न केवल यह सिद्ध होगा कि गांधी परिवार का महत्व कम हो रहा है, बल्कि कांग्रेस में परिवर्तन की आकांक्षा भी बढ़ रही है।