यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए सेना को आगे आकर यह स्पष्ट करना पड़ा कि उनके इस दावे में कोई दम नहीं कि बलिदानी अग्निवीर अजय सिंह के स्वजनों को किसी तरह की क्षतिपूर्ति नहीं की गई है।

हालांकि राहुल गांधी के इस झूठे दावे का रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में उसी समय खंडन कर दिया था, जब उन्होंने कहा था कि अग्निवीरों के स्वजनों को किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया जाता, लेकिन उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा और वह अपने झूठ पर अड़े रहे।

राहुल गांधी ने अपने झूठ को सच की शक्ल देने के लिए ही अग्निवीर अजय सिंह के पिता के पुराने बयान का हवाला देते हुए इसी पर जोर दिया कि उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है। आखिरकार सेना को यह साफ करना पड़ा कि उनके परिवार वालों के बैंक खातों में इसी वर्ष जनवरी में 48 लाख और फरवरी में 50 लाख रुपये जमा कर दिए गए थे।

होना तो यह चाहिए था कि रक्षा मंत्री के बयान के बाद इस प्रकरण पर राहुल गांधी कुछ कहने से पहले वस्तुस्थिति पता कर लेते, लेकिन उन्होंने ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं समझी। हैरानी नहीं कि इसलिए न समझी हो, क्योंकि वह झूठ बोलने के आदी हो गए हैं। वह राफेल विमान सौदे को लेकर भी झूठ बोले थे। हालांकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी, लेकिन उन्होंने चेतने से इनकार किया।

राहुल गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष भले ही बन गए हों, लेकिन वह इस पद की महत्ता समझने को तैयार नहीं। कायदे से देश को जानबूझकर गुमराह करने और साथ ही अग्निवीरों एवं उनके परिवार वालों का मनोबल गिराने की कोशिश पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन यदि ऐसी कोई पहल होती है तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेता यह दुष्प्रचार करते हुए आसमान सिर पर उठा लेंगे कि बोलने की आजादी पर हमला किया जा रहा है।

यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जानबूझकर झूठ बोला जाएगा तो इससे लोकतंत्र के समक्ष गंभीर खतरे ही पैदा होंगे। अग्निपथ योजना में संशोधन-परिवर्तन की मांग समझ आती है-इसलिए और भी कि स्वयं रक्षा मंत्री इस योजना पर विचार करने की बात कह चुके हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि उसे लेकर जानबूझकर झूठ फैलाया जाए और सेना की छवि खराब की जाए। दुर्भाग्य से राहुल गांधी ऐसा ही कर रहे हैं।

अच्छा हो कि कोई उन्हें बताए कि रक्षा-सुरक्षा के मामले में झूठ की राजनीति का सहारा लेना गैर जिम्मेदारी की पराकाष्ठा है। यदि राजनीति के इस लोकतंत्रघाती चलन को रोका नहीं गया तो राहुल गांधी जैसे नेता संकीर्ण स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए छल-कपट और झूठ का सहारा लेने के मामले में किसी भी हद तक जा सकते हैं।