श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर न्यूयॉर्क के एक गुरुद्वारे में गए भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू के साथ खालिस्तान समर्थकों ने जो बदसुलूकी की, उससे फिर यह स्पष्ट हुआ कि खालिस्तानी तत्व किस तरह बेलगाम हो रहे हैं। यह अच्छा हुआ कि कुछ साहसी सिखों ने भारतीय राजदूत से धक्कामुक्की की कोशिश कर रहे खालिस्तान समर्थकों को खदेड़ दिया, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करेगा?

इसके आसार कम ही हैं, क्योंकि कनाडा एवं ब्रिटेन की तरह अमेरिका भी खालिस्तान समर्थकों को पालने-पोसने के साथ उनकी भारत विरोधी गतिविधियों से जानबूझकर आंखें मूंदे हुए हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमेरिकी प्रशासन ने सैन फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास में आगजनी करने वाले खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उसने केवल इस घटना की निंदा करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली। जैसी घटना न्यूयॉर्क के गुरुद्वारे में भारतीय राजदूत के साथ हुई, वैसी ही कुछ समय पहले ब्रिटेन के ग्लासगो स्थित गुरुद्वारे में भारतीय उच्चायुक्त के साथ हुई थी। वहां तो भारतीय उच्चायुक्त को गुरुद्वारे में जाने भी नहीं दिया गया था।

अनहोनी की आशंका के चलते भारतीय उच्चायुक्त फौरन वहां से चले गए थे, क्योंकि खालिस्तान समर्थक उनके साथ मारपीट करने पर आमादा थे। खालिस्तान समर्थकों को संरक्षण देने के मामले में कनाडा की सरकार अमेरिका और ब्रिटेन से भी दो हाथ आगे है। वह तो भारत में वांछित खालिस्तानी आतंकियों को भी संरक्षण दे रही है।

भारत में प्रतिबंधित सिख फॉर जस्टिस का सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू आए दिन भारत को धमकाता रहता है, लेकिन उसके खिलाफ न तो कनाडा की सरकार कोई कार्रवाई करने को तैयार है और न ही अमेरिकी प्रशासन। चूंकि पन्नू के पास अमेरिका के साथ कनाडा की भी नागरिकता है, इसलिए वह इन दोनों देशों में बेरोक-टोक अपनी भारत विरोधी गतिविधियां चलाता रहता है।

अमेरिका और कनाडा केवल खालिस्तानी चरमपंथियों को पाल-पोस ही नहीं रहे हैं, वे ऐसे तत्वों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी कर रहे हैं। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में कथित भारतीय एजेंट का हाथ होने का जो आरोप कनाडा ने लगाया था, उसे पुष्ट करने वाले प्रमाण उसने आज तक भारत को नहीं सौंपे। ऐसा करने के स्थान पर कनाडा सरकार यह राग अलाप रही है कि भारत को निज्जर की हत्या की जांच में सहयोग करना चाहिए। यह बेतुकी मांग है, क्योंकि भारत बिना किसी प्रमाण के कोई भी जांच नहीं कर सकता।

जैसे कनाडा ने यह शिगूफा छोड़ा कि निज्जर की हत्या में कोई भारतीय एजेंट शामिल है, उसी तरह अमेरिका की ओर से उपलब्ध कराई गई कथित खुफिया सूचना के आधार पर एक ब्रिटिश अखबार ने यह आरोप उछाला कि कोई भारतीय एजेंट पन्नू की हत्या की कोशिश कर रहा था। ऐसे आरोप भारत को दबाव में लेने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं।