सामंती मानसिकता का प्रदर्शन, यह माहौल बनाना ठीक नहीं कि देश के लिए सब कुछ नेहरू-गांधी परिवार ने ही किया
एक तथ्य यह भी है कि नेहरू इंदिरा गांधी को तो उनके जीवनकाल में ही भारत रत्न से विभूषित कर दिया गया लेकिन सरदार पटेल और डा. भीमराव आंबेडकर आदि को बहुत बाद में देश का यह सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हो सका। सरदार पटेल को तो उनकी मत्यु के करीब चालीस साल बाद यह सम्मान मिला। इसी तरह आंबेडकर को भी यह सम्मान प्रदान करने में बहुत देरी हुई।
नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय यानी एनएमएमएल का नाम प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय अर्थात पीएमएमएल करने पर कांग्रेस नेताओं ने जैसी तीखी आपत्ति जताई और मोदी सरकार पर हमलावर हुए, उसका औचित्य समझना कठिन है। आखिर जिस संग्रहालय में देश के सभी प्रधानमंत्रियों की स्मृतियों को संजोया गया हो और उनके कार्यकाल में किए गए महत्वपूर्ण कार्यों और निर्णयों को रेखांकित किया गया हो, उसका नाम किसी एक प्रधानमंत्री के नाम पर क्यों होना चाहिए?
जब इस संग्रहालय में नेहरू की विरासत को भव्य तरीके से प्रदर्शित किया गया है और उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में दर्शाने के साथ यह भी बताया गया हो कि उन्होंने किस तरह बड़े बांधों का निर्माण कराया और योजना आयोग समेत अनेक तकनीकी एवं शोध संस्थानों की स्थापना की तब फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि मोदी सरकार उनकी विरासत मिटाने पर तुली हुई है। यदि कांग्रेस नेता ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं तो इसका कारण उनकी यह मानसिकता ही है कि इस देश को बनाने-संवारने का काम केवल नेहरू-गांधी परिवार ने किया।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि नेहरू के नाम पर देश भर में न जाने कितने मेडिकल, तकनीकी विश्वविद्यालयों के साथ ढेरों शिक्षा संस्थानों का नामकरण किया गया है। इसके अलावा अनेक स्टेडियम, अस्पताल, पार्क, चिड़ियाघर, चौक, सेतु, बाजार आदि भी उनके नाम पर बने हुए हैं। इनकी संख्या सैकड़ों में है।
इसी तरह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर भी तमाम संस्थान, भवन, स्टेडियम आदि बने हुए हैं। अनेक योजनाओं-परियोजनाओं के नाम भी नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी के नाम पर हैं। इनकी कुल संख्या चार सौ से भी अधिक है। नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी की तुलना में सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री आदि कांग्रेसी नेताओं के नाम वाले संस्थान और भवन इने-गिने ही हैं।
एक तथ्य यह भी है कि नेहरू, इंदिरा गांधी को तो उनके जीवनकाल में ही भारत रत्न से विभूषित कर दिया गया, लेकिन सरदार पटेल और डा. भीमराव आंबेडकर आदि को बहुत बाद में देश का यह सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हो सका। सरदार पटेल को तो उनकी मत्यु के करीब चालीस साल बाद यह सम्मान मिला। इसी तरह आंबेडकर को भी यह सम्मान प्रदान करने में बहुत देरी हुई। इससे भी सभी अवगत हैं कि राजीव गांधी को किस तरह उनके निधन के चंद दिनों बाद ही भारत रत्न प्रदान कर दिया गया था।
इससे इन्कार नहीं कि नेहरू-गांधी परिवार का देश के निर्माण में बहुत योगदान है और उसे विस्मृत नहीं किया जा सकता, लेकिन कांग्रेसी नेताओं की ओर से यह माहौल बनाना ठीक नहीं कि देश के लिए सब कुछ नेहरू-गांधी परिवार ने ही किया। यह एक तरह की सामंती मानसिकता है। कांग्रेस नेताओं की ओर से नेहरू-गांधी परिवार का महिमामंडन समझ में आता है, लेकिन वह चाटुकारिता का पर्याय नहीं होना चाहिए।