बंगाल में कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाली जैसी घटनाएं रह-रहकर घटती रहती हैं, वैसी अन्य राज्यों में शायद ही होती हों। बहुत दिन नहीं हुए, जब वहां प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की टीम पर हमला किया गया था। इस हमले में तीन अधिकारियों समेत उनके साथ गए सुरक्षा जवान भी घायल हुए थे। यह हमला संदेशखाली के तृणमूल कांग्रेस के कुख्यात नेता शाहजहां शेख की शह पर उसके साथियों ने किया था। ईडी पर हमले के इस मामले में बंगाल पुलिस तब तक शाहजहां शेख की गिरफ्तारी करने से बचती रही, जब तक कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उसे फटकार नहीं लगाई। अब पूर्वी मेदिनीपुर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए की टीम पर हमला किया गया। उसे तब निशाना बनाया गया, जब वह बम विस्फोट के एक मामले की जांच के लिए गई थी। इस बम विस्फोट में तीन लोगों की मौत हुई थी। यह हमला तब किया गया, जब एनआइए की सुरक्षा में केंद्रीय बलों के जवान तैनात थे। इससे यही पता चलता है कि बंगाल में अपराधी तत्वों का दुस्साहस किस तरह चरम पर है। इस दुस्साहस का एक बड़ा कारण ममता सरकार की ओर से केंद्रीय एजेंसियों के प्रति शत्रुवत माहौल बनाया जाना है। दुर्भाग्य यह है कि यह माहौल बनाने का काम खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी करती हैं। एक बार वह तब सीबीआइ के खिलाफ धरने पर बैठ गई थीं, जब इस एजेंसी के अधिकारी चिटफंड घोटाले के सिलसिले में कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त से पूछताछ करने उनके आवास पर गए थे। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता सीबीआइ के दफ्तर पर पथराव भी कर चुके हैं। इसी तरह एक बार आयकर विभाग की टीम भी तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के उग्र प्रदर्शन का सामना कर चुकी है।

बंगाल संभवतः एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां केंद्रीय एजेंसियों को केंद्रीय सुरक्षा बलों के साये में रहकर काम करना पड़ता है। यह स्थिति यही बताती है कि बंगाल में किस तरह केवल संघीय ढांचे के खिलाफ ही काम नहीं किया जा रहा है, बल्कि उसे सीधी चुनौती भी दी जा रही है। यह तब है, जब केंद्रीय एजेंसियां कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर ही विभिन्न मामलों की जांच कर रही हैं। चिंता की बात केवल यह नहीं कि बंगाल में केंद्रीय जांच एजेंसियों को निशाना बनाया जाता है, बल्कि यह भी है कि जब ऐसा होता है तो बंगाल पुलिस निष्क्रिय बनी रहती है। यह कहने में संकोच नहीं कि बंगाल पुलिस तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक शाखा के रूप में काम करती दिखती है। वास्तव में इसी कारण वहां राजनीतिक हिंसा कभी थमती नहीं। बंगाल में जैसे राजनीतिक हिंसा आम है, वैसे ही चुनावी हिंसा भी। यदि लोकसभा चुनावों में कहीं पर सबसे अधिक चुनावी हिंसा होने की आशंका है तो वह बंगाल ही है। बंगाल की अराजक स्थिति उसे जंगलराज का पर्याय बनाने का ही काम कर रही है।