नीति आयोग का यह आकलन एक बड़ी उपलब्धि को रेखांकित करने वाला है कि पिछले नौ वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। यह आंकड़ा इसलिए उल्लेखनीय है कि इसी अवधि में अन्य देशों की तरह भारत को भी कोविड महामारी के कारण लाकडाउन से गुजरना पड़ा। इसने अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया और निर्धनता निवारण के अभियान पर भी बुरा असर डाला। इस महामारी ने गरीबों को आर्थिक रूप से कमजोर करने का भी काम किया।

नीति आयोग के अनुसार अभी भी लगभग 15 करोड़ लोग गरीबी के दायरे में हैं। यह एक बड़ी संख्या है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि विकास के सतत लक्ष्यों के आधार पर इसका आकलन किया जा रहा है कि लोग गरीबी से मुक्त हो रहे हैं या नहीं? इन लक्ष्यों में पोषण, बाल एवं किशोर मृत्यु दर, स्कूली शिक्षा की अवधि, बिजली, पानी, आवास, बैंक खातों तक पहुंच आदि संकेतक शामिल हैं। इसी कारण यह कहा जा रहा है कि लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हो रहे हैं।

आशा की जाती है कि जैसे मात्र नौ वर्षों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से मुक्त करने में सफलता मिली, वैसे ही शेष 15 करोड़ लोगों को भी यथाशीघ्र निर्धनता से बाहर ले आया जाएगा। इसके लिए यह आवश्यक है कि आर्थिक प्रगति का सिलसिला कायम रहे और केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करें। इसी के साथ उद्यमियों को खलनायक बताने की राजनीति भी बंद होनी चाहिए।

यह अच्छी बात है कि विभिन्न राज्यों में औद्योगिक-व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। निवेश को आकर्षित करने के लिए राज्यों में जो प्रतिस्पर्धा जारी है, वह और तेज होनी चाहिए। विभिन्न राज्य सरकारें निवेश सम्मेलनों का जो आयोजन कर रही हैं, उससे यह उम्मीद बंधती है कि निर्धनता निवारण के लक्ष्य को जल्द हासिल कर लिया जाएगा, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों का लक्ष्य केवल गरीबी निवारण ही नहीं होना चाहिए, बल्कि लोगों को आर्थिक रूप से कहीं अधिक सक्षम बनाना भी होना चाहिए।

यह एक शुभ संकेत है कि आर्थिक रूप से पिछड़े माने जाने वाले राज्य भी लोगों को गरीबी से मुक्त करने में सफल हो रहे हैं। इससे इन्कार नहीं कि निर्धनता निवारण अभियान की सफलता के मूल में कल्याणकारी योजनाएं हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाएं बेहतर करने एवं पानी, बिजली आदि उपलब्ध कराने से लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने में आसानी होती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि जनकल्याण के नाम पर रेवड़ियां बांटने का काम किया जाए।

इस बुनियादी बात को समझा जाना चाहिए कि वे लोकलुभावन योजनाएं गरीबी से लड़ाई में सहायक नहीं हो सकतीं, जो लोगों को अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित नहीं करतीं। ऐसी योजनाओं से बचा जाना चाहिए, जो लोगों की उत्पादकता बढ़ाने के स्थान पर उन्हें सरकारी मदद का मोहताज बनाती हैं।