नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपने पहले संबोधन से राहुल गांधी ने निराश ही किया। उन्होंने कोई छाप छोड़ने के बजाय टकराव और कलह पैदा करने का काम किया। उन्होंने कहा कि जो अपने आपको हिंदू कहते हैं, वे 24 घंटे हिंसा और नफरत करते हैं। जब उनके इस कथन पर आपत्ति जताई गई तो वह यह कहने लगे कि भाजपा और आरएसएस ही हिंदू नहीं हैं।

यह निष्कर्ष तो ठीक है, लेकिन क्या वह यह सिद्ध करना चाहते हैं कि जो भी हिंदू भाजपा या आरएसएस से जुड़ा है, वह 24 घंटे हिंसा और नफरत करता है? संभव है कि वह ऐसा ही मानते हों, लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा को लगभग 24 करोड़ मतदाताओं ने वोट दिया है।

क्या राहुल गांधी यह कहना चाह रहे हैं कि ये सब वे हिंदू हैं, जो 24 घंटे हिंसा और नफरत करते हैं? उनका आशय जो भी हो, उनके इस कथन से इतना तो पता चलता ही है कि वह भाजपा को अपने राजनीतिक विरोधी के रूप में नहीं, बल्कि एक शत्रु के रूप में देखते हैं और उससे नफरत भी करते हैं।

राहुल गांधी ने अपने संबोधन की शुरुआत जय संविधान से की और यह दावा किया कि उन्होंने इसे बचाने का काम किया है। स्पष्ट है कि वह अभी भी चुनावी मुद्रा में ही हैं। शायद इसी कारण वह सदन के स्थान पर किसी चुनावी सभा को संबोधित करते हुए अधिक दिखे।

यह ठीक है कि चुनाव के दौरान भी उन्होंने संविधान के खतरे में होने का हौवा खड़ा किया था और माना जाता है कि इससे उन्हें कुछ राजनीतिक लाभ भी मिला, लेकिन यदि वह संविधान के इतने ही बड़े ही हितैषी और रक्षक हैं तो फिर उस आपातकाल की आलोचना क्यों नहीं सहन कर पा रहे हैं, जिसे देश पर थोपकर न केवल संविधान को बदलने का काम किया गया था, बल्कि यह व्यवस्था भी बना दी गई थी कि कोई भी अदालत संसद से पारित किसी कानून की सुनवाई नहीं कर सकेगी।

आखिर इसे तानाशाही के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है? क्या यह हास्यास्पद नहीं कि राहुल गांधी एक ओर संविधान बचाने का दावा कर रहे हैं और दूसरी ओर इसी संविधान को कुचलने वाले आपातकाल की आलोचना को अनावश्यक करार दे रहे हैं?

ऐसा नहीं है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करते समय राहुल गांधी सरकार की आलोचना नहीं कर सकते थे, लेकिन उन्होंने दिखाया कि उनका उद्देश्य सरकार की आलोचना करना कम, बल्कि जनता को गुमराह करना अधिक है। इसी कारण वह यहां तक कह गए कि यदि किसी अग्निवीर की जान चली जाती है तो उसके स्वजन को सरकार कोई मुआवजा नहीं देती। आश्चर्य नहीं कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को उनके इस गलत बयान का खंडन करना पड़ा।