तरुण गुप्त। आखिरकार आइसीसी ट्राफी की हमारी लंबी प्रतीक्षा पूरी हुई। गत शनिवार को ब्रिजटाउन की धरती हमारे लिए इस स्वर्णिम उपलब्धि की साक्षी बनी। इससे पहले अंतिम बार 2013 में इंग्लैंड में हमने चैंपियंस ट्राफी अपने नाम की थी। क्रिकेटरों और उनके समर्थकों-प्रशंसकों की एक पूरी पीढ़ी उस उत्साह का अनुभव करने के लिए व्याकुल थी, जो केवल किसी अंतरराष्ट्रीय खिताब की प्राप्ति पर ही संभव होता है।

कई वर्षों से हम सभी प्रारूपों में शीर्ष टीम के रूप में विराजमान हैं। निरंतरता के मानदंडों पर हमारा प्रदर्शन बीते कुछ वर्षों में सर्वश्रेष्ठ रहा है। द्विपक्षीय शृंखलाओं में हमारा रिकार्ड उत्कृष्ट रहा है। साथ ही, खेल के प्रति जुनून और प्रतिभाओं की पर्याप्तता को देखते हुए हम किसी भी शृंखला अथवा टूर्नामेंट से पहले ‘फेवरेट’ यानी सबसे प्रबल दावेदार माने जाते रहे हैं। इस बार विश्व कप का मंच ऐसा रहा, जहां हमने इस फेवरेट वाले टैग के साथ पूरा न्याय किया। हम अपेक्षाओं की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरे।

पूरी टी-20 प्रतियोगिता के दौरान रोमांच की कहीं कोई कमी नहीं रही। ग्रुप चरण में हमने एक कम स्कोर वाले मैच में चिरप्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को परास्त किया। अगले चरण में दमदार आस्ट्रेलिया के खिलाफ रनों का अंबार लगाकर उन्हें मात दी। उस मुकाबले में रनों का ऐसा पहाड़ खड़़ा किया, जो खेल के इस सबसे छोटे प्रारूप की विशेष पहचान मानी जाती है। उसके बाद सेमीफाइनल में हमने पिछले विश्व चैंपियन इंग्लैंड की चुनौती को निस्तेज किया।

इस जीत के साथ ही कुछ साल पहले एडिलेड में हुए इसी प्रारूप के विश्व कप सेमीफाइनल में इंग्लैंड के हाथों मिली दस विकेट की शर्मनाक हार का हिसाब भी चुकता किया। अंतिम पड़ाव पर हमारा सामना दक्षिण अफ्रीका से हुआ। अंत तक हमारी टीम ही अपराजेय रही। हमारा विजय रथ आगे बढ़ता रहा। उसके शीर्ष तक पहुंचने की राह में क्रिकेट की महाशक्तियों से लेकर नवोदित टीमें पीछे छूटती गईं।

क्रिकेट एक टीम गेम है। फाइनल मुकाबला इसका सबसे बड़ा उदाहरण रहा। सीमित ओवरों के क्रिकेट के निर्विवाद रूप से सर्वकालिक महानतम बल्लेबाज विराट कोहली ने अपने टी-20 करियर के अंतिम पड़ाव पर अपनी बल्लेबाजी से भारतीय पारी को सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया। अक्षर पटेल और शिवम दुबे सरीखे युवाओं ने पारी को आवश्यक गति प्रदान की।

जसप्रीत बुमराह की तो बात ही अलग है, जो सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को दिन-प्रतिदिन नए आयाम पर लेकर जा रहे हैं। उनके प्रदर्शन का वर्णन करने के लिए लेखकों-टिप्पणीकारों को मैच दर मैच या यूं कहें कि स्पेल दर स्पेल नए विशेषण खोजने पड़ रहे हैं। फाइनल में भी उन्होंने उम्दा स्पेल डाला। सूर्यकुमार यादव के कैच ने यह साबित किया कि बड़े से बड़े टूर्नामेंट की नियति महीन एवं मामूली अंतर से निर्धारित हो सकती है।

विश्व कप विजय टी-20 अंतरराष्ट्रीय से रोहित शर्मा के लिए उपयुक्त विदाई रही। उन्होंने दबाव में खुद पर नियंत्रण रखा एवं टीम को कुशाग्र नेतृत्व प्रदान किया। एक बल्लेबाज के रूप में पारी के प्रारंभ में नि:स्वार्थ भाव से विस्फोटक शुरुआत देने के लिए विकसित की अपनी शैली पर ही उन्होंने भरोसा किया। उनकी इस शैली ने टीम के लिए बड़ी सफलताओं की नींव रखने का काम किया। कोच राहुल द्रविड़ के कार्यकाल की भी सफल परिणति हुई।

कैरेबियाई जमीन पर ही 2007 के एक दिवसीय विश्व कप में उनके नेतृत्व में भारतीय टीम पहले चरण में बाहर हो गई थी। वह अप्रत्याशित पराजय भारी अपयश का कारण बनी थी। उसी जमीन पर यह जीत उस जख्म पर सबसे माकूल मरहम कही जा सकती है। एक खिलाड़ी के रूप में उनका रिकार्ड अभूतपूर्व रहा है। कोच के रूप में भी उनकी प्रतिबद्धता कमाल की रही है। असल में वह पार्श्व में रहकर सक्रिय रूप से अपना काम करने वाले नायक की तरह हैं, जिनकी उपलब्धियों का कुछ अन्य की तुलना में अपेक्षित महिमामंडन नहीं हो सका। यह जीत हमें यह भी सिखाती है कि आज की कड़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में सौम्य, शालीन एवं मर्यादित आचरण वाले भी शीर्ष पर पहुंचने में सक्षम होते हैं।

इस विजयगाथा से जुड़ी कई और प्रेरक कहानियां हैं। परीकथा सरीखी रिषभ पंत की वापसी। एक बेहद खतरनाक सड़क दुर्घटना में वह बाल-बाल बचे। उनके करियर को लेकर संदेह किया जाने लगा, लेकिन उन्होंने न केवल बल्लेबाजी, बल्कि विकेट के पीछे भी कमान संभालकर प्रेरणा का नया अध्याय लिखा। कुछ समय पहले तक ट्रोलिंग के शिकार और व्यक्तिगत जीवन में तमाम तरह की उथल-पुथल झेलने वाले हार्दिक पांड्या ने उस दौर को पीछे छोड़ते हुए अपने प्रदर्शन से दृढ़ता एवं लचीलेपन का उदाहरण प्रस्तुत किया।

सदाबहार रवींद्र जडेजा ने भी अपने प्रदर्शन से अपनी उपस्थिति जताई। इस प्रतियोगिता में हमें एक अलग ही अर्शदीप के दर्शन हुए, जिन्होंने अपने प्रदर्शन से बड़े मंच पर बड़ी छाप छोड़ी और सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों की सूची में शीर्ष पर रहे। ऐसी उपलब्धियों की एक अंतहीन सी सूची है, जो नाना प्रकार के पहलुओं को रेखांकित कर सकती है।

किसी भी बड़े टूर्नामेंट की समीक्षा में अपरिहार्य रूप से बड़े सबक छिपे होते हैं। सदैव परिणाम को लेकर आतुर रहने वाले देश के लिए पहला सबक तो यही है कि हमें प्रयासों और उनकी निष्ठा में आस्था रखनी चाहिए। ईमानदार प्रयास ही किसी बड़ी सफलता का प्रथम पड़ाव होते हैं। ऐसे प्रयासों से ही सफलता की भव्य इमारत खड़ी की जा सकती है। यदि आप अनथक प्रयास करते हैं तो ‘करत-करत अभ्यास’.... वाली कहावत सार्थक होकर सफलता से आपका साक्षात्कार करा देती है। इसलिए सदैव दृढ़ता का परिचय दें।

असफलताओं के प्रभाव को अपने ऊपर हावी न होने दें। खेलों की इस मिसाल को हम अपने सामान्य जीवन में भी उतार सकते हैं कि प्रयास की व्यापकता, संवेदनशीलता, मंशा और ईमानदारी के भाव अनुकूल परिणामों के निमित्त बनते हैं। इस तथ्य को कभी विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए कि महत्वपूर्ण तो प्रयास एवं प्रक्रिया होती है। परिणाम तो उनकी एक स्वाभाविक परिणति है।