टाटा समूह के मार्गदर्शक रतन टाटा के निधन पर जिस तरह खास से लेकर आम लोग द्रवित हुए और उन्हें श्रद्धांजलि देने उमड़े, उससे स्वतः यह प्रमाणित हो जाता है कि वह कितने अधिक आदर एवं सम्मान के पात्र थे। ऐसा इसीलिए था, क्योंकि उन्होंने टाटा समूह को इस तरह से नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया कि देश की प्रतिष्ठा भी बढ़ी।

उन्होंने जब टाटा समूह की कमान संभाली थी, तब भी इस समूह का नाम था, लेकिन रतन टाटा ने उसे और भरोसेमंद बनाया और उसका विस्तार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि टाटा की कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर की हों। इसीलिए टाटा समूह की कंपनियां विश्व की जानी-मानी कंपनियों का मुकाबला करने में सक्षम बनीं।

रतन टाटा की पहचान केवल एक दूरद्रष्टा कारोबारी की ही नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता की भी थी। वह जितना सजग अपनी कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता को उत्तम बनाने के लिए रहते थे, उतना ही इसके प्रति भी कि भारत विश्वस्तर पर एक औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरे और देश के आम लोगों का जीवनस्तर सुधरे।

इसी भावना के वशीभूत होकर उन्होंने सबसे सस्ती कार नैनो का निर्माण करने में अतिरिक्त दिलचस्पी ली। वह यह चाहते थे कि देश के आम लोग भी कार की सुविधा हासिल कर सकें। इस कार के निर्माण का विचार उन्हें तब कौंधा था, जब उन्होंने बाइक सवार एक दंपती को बारिश में भीगते देखा था। इससे पता चलता है कि उन्हें आम आदमी की सुख-सुविधा का कितना ध्यान था। इसीलिए उनकी गिनती आम उद्योगपतियों से अलग होती थी।

रतन टाटा उद्योगपति के साथ ही एक समाजसेवी भी थे-और वह भी ऐसे समाजसेवी, जो इसका प्रचार पसंद नहीं करते थे कि वह लोगों की भलाई के लिए क्या-क्या कर रहे हैं। उनकी व्यक्तिगत पहल पर टाटा समूह ने अनेक ऐसे संस्थान शुरू किए, जिनका लक्ष्य लोगों के जीवन को बेहतर बनाना और उन्हें शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना था।

उल्लेखनीय यह है कि ऐसे अनेक संस्थानों को तैयार करने के बाद टाटा समूह ने स्वयं को उनके संचालन से विरत करना बेहतर समझा। रतन टाटा अपनी कारोबारी दूरदर्शिता, उद्यमशीलता के साथ-साथ सादगी के लिए भी जाने जाते थे। जब अनेक उद्योगपति तड़क-भड़क और दिखावे वाली जिंदगी जीने के लिए जाने जाते हैं, तब वह साधारण लोगों सरीखा जीवन जीना पसंद करते थे।

टाटा समूह का मानद चेयरमैन बनने के बाद से उन्होंने स्वयं को भले ही दैनिक कारोबारी गतिविधियों से अलग कर लिया हो, लेकिन वह भारत की आर्थिक उन्नति को लेकर सक्रिय थे और इसीलिए उन्होंने कई स्टार्टअप को आगे बढ़ाने में मदद की। यदि उनके महती योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न देने की मांग की जा रही है तो यह सर्वथा उचित ही है, क्योंकि वह देश के सच्चे रत्न और वास्तविक अर्थों में महान सपूत थे। देश को उनके जैसे और रत्न चाहिए।