फार्मा उद्योग की प्रतिष्ठा, भारत सरकार को मेडेन फार्मा कंपनी में बनी दवा की फिर से करनी चाहिए जांच
भारत की पहचान इस रूप में भी बननी चाहिए कि यहां निर्मित दवाएं गुणवत्ता के मामले में श्रेष्ठ होती हैं। इससे ही भारत का फार्मा उद्योग सबसे अधिक दवाएं बेचने वाले उद्योग बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा।
देश के फार्मा उद्योग के लिए यह अच्छी खबर नहीं कि पिछले वर्ष गांबिया में कुछ बच्चों की मौत के लिए भारत में बनी खांसी की दवाई जिम्मेदार है। यह खबर एक अमेरिकी एजेंसी और गांबिया के स्वास्थ्य अधिकारियों की संयुक्त जांच के निष्कर्षों से निकली है। अब यह आवश्यक है कि भारत सरकार इसकी गहन जांच करे कि क्या हरियाणा की मेडेन फार्मा कंपनी में बनी और गांबिया भेजी गई खांसी की दवाई दूषित थी? जब पहली बार यह मामला सामने आया था तो औषधि महानियंत्रक की ओर से कहा गया था कि गांबिया बिना किसी गहन जांच के इस नतीजे पर पहुंच गया कि भारत में निर्मित कफ सिरप उसके यहां कुछ बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार है। तब औषधि महानियंत्रक ने यह भी स्पष्ट किया था कि इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से साझा की गई जानकारी अपर्याप्त थी।
कुछ समय बाद गांबिया की मेडिसिन कंट्रोल एजेंसी ने भी माना था कि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई कि भारत में निर्मित खांसी की दवाई के कारण ही उनके यहां बच्चों की मौत हुई। अब जब नए सिरे से यह कहा जा रहा है कि भारत में बनी कफ सिरप गांबिया में 60 से अधिक बच्चों की मौत का कारण बनी तो फिर संबंधित फार्मा कंपनी की फिर से पड़ताल की जानी चाहिए। इस मामले में किसी तरह का कोई संशय नहीं रहना चाहिए, क्योंकि उसका असर देश की दूसरी फार्मा कंपनियों की साख पर भी पड़ सकता है।
भारत में औषधि बनाने वाली सभी कंपनियां गुणवत्ता के उच्च मानकों का पालन वास्तव में करें, यह इसलिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि गांबिया मामले से जुड़ी खबर एक ऐसे समय आई है, जब विगत दिवस ही नोएडा की एक फार्मा कंपनी के कुछ अधिकारियों को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया कि उनके यहां बनी दूषित कफ सिरप पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत हो चुकी है। यह सामान्य बात नहीं कि छह माह के भीतर देश की दो फार्मा कंपनियों पर यह आरोप लगे कि उनके यहां खराब गुणवत्ता वाली ऐसी कफ सिरप बनाई गई, जिससे गांबिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौत हो गई।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन को केवल इन दोनों मामलों की ही तह तक जाने की आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही उसे यह भी देखना होगा कि अन्य फार्मा कंपनियां मानकों के तहत दवाओं और स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों का निर्माण करें। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इस समय भारत विश्व की फार्मेसी के तौर पर जाना जा रहा है। भारत की पहचान इस रूप में भी बननी चाहिए कि यहां निर्मित दवाएं गुणवत्ता के मामले में श्रेष्ठ होती हैं। इससे ही भारत का फार्मा उद्योग सबसे अधिक दवाएं बेचने वाले उद्योग बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा।