विधि आयोग की ओर से समान नागरिक संहिता पर लोगों से सुझाव मांगने के बाद भोपाल की एक सभा में प्रधानमंत्री का यह कहना उल्लेखनीय है कि यह संहिता समय की मांग है। इसका अर्थ है कि उनकी सरकार समान नागरिक संहिता के निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है। यह अच्छा हुआ कि उन्होंने इसका उल्लेख किया कि कुछ राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता को लेकर मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। यह काम वास्तव में हो रहा है।

अनेक राजनीतिक दल और कुछ सामाजिक-धार्मिक संगठन जिस तरह समान नागरिक संहिता के खिलाफ खड़े होते दिख रहे हैं, वह शुभ संकेत नहीं। समान नागरिक संहिता के खिलाफ उठ रही आवाजें न केवल संविधान निर्माताओं के सपनों के विरुद्ध हैं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी करने वाली भी हैं। इसके अतिरिक्त ये एक देश में दो विधान की स्थिति बनाए रखने वाली भी हैं।

विश्व के किसी भी पंथनिरपेक्ष देश में अलग-अलग निजी कानून नहीं हैं, लेकिन भारत में वे इसके बाद भी बने हुए हैं कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह लिखा गया है कि राज्य देश के सभी लोगों के लिए एक समान कानून बनाएगा। क्या यह विचित्र नहीं कि हिंदुओं के निजी कानूनों को तो संविधान लागू होने के कुछ समय बाद ही संहिताबद्ध कर दिया गया, लेकिन अन्य समुदायों के निजी कानून बने रहने दिए गए। निःसंदेह ऐसा वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण किया गया।

इसका कोई औचित्य नहीं कि सात दशक बाद भी अलग-अलग समुदाय भिन्न-भिन्न निजी कानूनों के जरिये संचालित होते रहें और वे भी तब, जब उनके कारण महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा होती हो और वे अन्याय का शिकार बनती हों। समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों को किस तरह गुमराह किया जा रहा है, इसका पता इससे चलता है कि कुछ राजनीतिक दल यह प्रचारित करने में लगे हुए हैं कि इससे विभिन्न समुदायों की धार्मिक आजादी में हस्तक्षेप होगा।

यह निरा झूठ है। समान नागरिक संहिता से किसी समुदाय की धार्मिक रीतियों में कोई हस्तक्षेप नहीं होने वाला। वह तो केवल सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सहायक होगी। जैसे बाल विवाह, तीन तलाक की कुप्रथा खत्म करने की जरूरत थी, वैसे ही उन कुरीतियों को भी खत्म किया जाना चाहिए, जिनके कारण महिला अधिकारों का हनन होता है। वास्तव में इसी कारण कई बार विभिन्न उच्च न्यायालय और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय भी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता जता चुका है।

समान नागरिक संहिता के खिलाफ दुष्प्रचार इसीलिए किया जा रहा है, क्योंकि आम लोगों को इसका भान नहीं है कि उसमें क्या और कैसे प्रविधान होंगे? इसे देखते हुए उचित यह होगा कि विधि आयोग लोगों के सुझाव प्राप्त कर यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा देश की जनता के विचारार्थ पेश करे। इससे ही समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार करने वालों पर लगाम लगेगी।