एस.के. सिंह, नई दिल्ली। 6 दिसंबर 2011 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक भाषण में आर्थिक विकास में मध्य वर्ग की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा था, “एक कमजोर मध्य वर्ग पूरे देश के आर्थिक विकास को बाधित करता है। मजबूत विकास के लिए सशक्त मध्य वर्ग जरूरी है। जब कंपनियों के उत्पाद और सेवाओं को खरीदने में मध्यवर्गीय परिवारों की क्षमता घटने लगती है, तो अर्थव्यवस्था में ऊपर से नीचे तक सब कुछ गिरने लगता है। असमानता हमारे लोकतंत्र को विकृत करती है क्योंकि इससे वे चुनिंदा लोग ही अपनी आवाज उठा पाते हैं जिनके पास लॉबिंग और प्रचार के लिए पैसा होता है।”

चाहे हम अमेरिका की बात करें या यूरोप या अन्य विकसित देशों की, इकोनॉमी को आगे बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान वहां के मध्य वर्ग का रहा है। मध्य वर्ग की आबादी अधिक होती है, इसलिए ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं की खपत यही वर्ग करता है। इससे निवेश को बढ़ावा मिलता है और आर्थिक के साथ सामाजिक विकास भी होता है। सरकार के टैक्स रेवेन्यू में भी इसका बड़ा योगदान होता है। यह वर्ग देश की राजनीतिक स्थिरता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में मध्य वर्ग

तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने में भी इसके मध्य वर्ग की बड़ी भूमिका रहेगी। जनसंख्या बढ़ने के साथ भारत में मध्य वर्ग का भी तेजी से विस्तार हो रहा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार 2027 तक भारत का मध्य वर्ग चीन, अमेरिका और यूरोप से भी बड़ा हो जाएगा। रिसर्चगेट का आकलन है कि 2035 तक दुनिया का हर चौथा मध्यवर्गीय उपभोक्ता भारतीय होगा।

पीपुल रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (PRICE) की एक स्टडी के अनुसार भारत की आबादी में कुल संख्या और प्रतिशत, दोनों लिहाज से मध्य वर्ग सबसे अधिक तेजी से बढ़ रहा है। 1995 से 2021 के दौरान हर साल इसमें 6.3% की वृद्धि हुई। वर्ष 2047 तक भारत के मध्य वर्ग का आकार 100 करोड़ को पार कर जाने की उम्मीद है।

भारतीय मध्य वर्ग का आकार

वैसे तो भारतीय मध्य वर्ग के आकार पर कोई एक राय नहीं है, अलग-अलग विशेषज्ञ इसके लिए अलग आय सीमा मानते हैं। आम तौर पर आमदनी या खपत के स्तर को पैमाना माना जाता है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ डेवलपमेंट की डॉ. संध्या कृष्णन के अनुसार, प्रतिदिन 2 से 10 डॉलर आय को पैमाना माना जाए तो 2012 में करीब 60 करोड़ लोग यानी आधी आबादी मध्य वर्ग में थी। वर्ष 2000 में इस पैमाने पर 30 करोड़ लोग यानी 27% आबादी थी। अगर 17 से 100 डॉलर का पैमाना लें तो 2021 में 43 करोड़ यानी 31% से अधिक भारतीय मध्य वर्ग में थे, जो 2005 में सिर्फ 14% थे।

प्राइस के अनुसार वर्ष 2005 में सालाना 5 से 30 लाख रुपये आय वाला मध्य वर्ग 14% था जो 2021 में 31% हो गया। इसके 2047 में 63% हो जाने की संभावना है। 2047 में कम आय वाले लोगों का अनुपात बहुत कम होगा। ‘द राइज ऑफ इंडियाज मिडल क्लास’ नाम से जारी सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि दो करोड़ रुपये से अधिक सालाना आय वाले सुपर रिच लोगों की संख्या 1994-95 में सिर्फ 98000 थी, यह 2020-21 में बढ़कर 18 लाख हो गई। 2047 तक इसमें 18 गुना वृद्धि होने की संभावना है।

इसका कहना है कि देश में गरीबी कम हो रही है। वर्ष 2031 में सिर्फ 6% परिवार निम्न आय वर्ग में रह जाएंगे जो अभी 15% हैं। अर्थव्यवस्था का आकार 2031 में 7.1 लाख करोड़ डॉलर हो जाएगा जिसमें उपभोक्ता खर्च 5.2 लाख करोड़ डॉलर होगा। इस दौरान खपत में जो वृद्धि होगी, उसका 55% मध्य वर्ग के कारण होगा।

उदारीकरण के बाद एक नया मध्य वर्ग उभरा है जिसे आकांक्षी वर्ग भी कहा जाता है। अभी यह वर्ग सबसे बड़ा है। लेकिन आय बढ़ने से दशक के अंत तक मध्य वर्गीय लोगों की संख्या आकांक्षी वर्ग से अधिक हो जाएगी। तब अर्थव्यवस्था वास्तव में मध्य वर्ग द्वारा चालित होगी।

हंसा रिसर्च के ईवीपी और क्वांटिटेटिव रिसर्च प्रमुख संदीप रानाडे ने जागरण प्राइम को बताया, “भारत का मध्य वर्ग आर्थिक विकास, शहरीकरण और बेहतर शिक्षा के अवसरों के कारण लगातार बढ़ रहा है। यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि आमदनी, खरीदारी की आदत और सामाजिक-आर्थिक स्टेटस जैसे मानकों पर आधारित मध्य वर्ग की परिभाषा भिन्न-भिन्न है। इस वर्ग के आकार का आकलन करने के लिए विभिन्न संगठन और अकादमीशियन अलग परिभाषा और विधि का प्रयोग करते हैं।”

“आर्थिक सुधारों, उदारीकरण और वैश्वीकरण के चलते 1991 से भारत के मध्य वर्ग का आकार हर पांच साल में बढ़ा है। महानगरीय इलाकों में खासकर आईटी और आईटी इनेबल्ड इंडस्ट्री के विस्तार ने नौकरी के अवसर और आमदनी बढ़ाई है। मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल और फाइनेंस जैसे उद्योग भी रोजगार के अवसरों का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इससे मध्य वर्ग का आकार लगातार बढ़ रहा है।”

मध्य वर्ग से आता है समावेशी विकास

अप्रैल 2022 की पिउ रिसर्च की एक रिपोर्ट में सीनियर रिसर्चर राकेश कोचर ने लिखा है, “बीते 5 दशकों में अमेरिका में मध्य वर्ग का आकार घटा है। 1971 में अमेरिका के 61% परिवार मध्यवर्गीय थे, जबकि 2021 में ये 50% रह गए। इस दौरान उच्च आय वर्ग का अनुपात 14% से बढ़कर 21% तथा निम्न आय वर्ग का 25% से बढ़कर 29% हो गया।” इन 50 वर्षों में निम्न आय वर्ग की औसत (मीडियन) आमदनी 45%, मध्य वर्ग की 50% और उच्च वर्ग की 69% बढ़ी। इससे असमानता बढ़ी और राष्ट्रीय आय में मध्य वर्ग की हिस्सेदारी कम रह गई। 1970 में मध्यवर्गीय परिवार अमेरिका की कुल राष्ट्रीय आय में 62% हिस्सेदारी रखते थे, 2020 में यह अनुपात घटकर 42% रह गया। इस दौरान उच्च वर्ग की हिस्सेदारी 29% से बढ़कर 50% हो गई।

सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस के सीनियर फेलो डेविड मेडलैंड ने लिखा है कि अगर मध्यवर्गीय समाज एक समान है तो उनकी आय और ग्रोथ भी अधिक होगी। मध्य वर्ग मजबूत होने पर समाज में भरोसा भी बढ़ता है। बड़े मध्य वर्ग वाले समाज में लोग आशावादी होते हैं। मध्यवर्गीय परिवार अपने बच्चों को काम और शिक्षा को महत्व देना सिखाते हैं। गैर-बराबरी वाले समाज में लोगों को यह समझाना मुश्किल होता है कि अमीर और गरीब के मूल्य साझा हैं।

ग्रोथ पर मध्य वर्ग का असर

मशहूर ब्रिटिश अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कींस ने 1936 में अपनी किताब ‘द जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी’ में मध्य वर्ग और आर्थिक विकास के बीच संबंधों के बारे में लिखा था कि निवेश बढ़ाने के लिए एक स्थायी मध्यवर्गीय खपत आवश्यक है। कींस का कहना था कि आमदनी का बेहद असमान वितरण मांग और ग्रोथ दोनों को कम करता है।

किसी भी देश में उद्यमिता और इनोवेशन तेजी से पनपने, बिजनेस जगत के मजबूत विश्वास तथा शिक्षा को अधिक वैल्यू देने जैसा व्यवहार अपनाने के लिए जरूरी है कि उस देश का मध्य वर्ग मजबूत हो। सशक्त मध्य वर्ग एक स्थायी उपभोक्ता आधार बनाता है जो निवेश को भी प्रोत्साहित करता है। निवेश से विकास को गति मिलती है। निजी निवेश के लिए पर्याप्त खपत होना भी जरूरी है, जो मध्य वर्ग से ही आती है। अमीर वर्ग इतनी खपत नहीं करता कि अर्थव्यवस्था को गति दे सके। उच्च आय वर्ग वाले कमाई का बड़ा हिस्सा बचत में लगाते हैं।

रानाडे के अनुसार, “बीते एक दशक में भारत के मध्य वर्ग की आय में तेजी से वृद्धि हुई है। यह वर्ग आर्थिक विकास और स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्टार्टअप और मझोले आकार के उद्यम न सिर्फ रोजगार के अवसर पैदा करते हैं, बल्कि इनोवेशन और उद्यमिता को भी बढ़ावा दे रहे हैं। ये बिजनेस भारत की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं।”

वे कहते हैं, “बचत और निवेश के प्रति मध्य वर्ग का अनुशासित रवैया इकोनॉमी पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। आमदनी बढ़ने के साथ ये अपनी आय का बड़ा हिस्सा बचत, निवेश और इंश्योरेंस प्रोडक्ट में लगाते हैं। यह फंड बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए पूंजी का महत्वपूर्ण स्रोत बन जाता है। इस पूंजी को वे अलग-अलग सेक्टर में कर्ज देकर आर्थिक विकास की गति बढ़ाते हैं। खर्च करने की क्षमता बढ़ने से मध्य वर्ग में वस्तुओं और सेवाओं की खपत भी बढ़ी है।”

मेडलैंड ने लिखा है, अमेरिका में 1947 से 1989 के दौरान कुल राष्ट्रीय आय का 54% मध्य वर्ग को मिला और उस दौरान सालाना ग्रोथ रेट औसतन 3.7% थी। 1980 से 2010 के दौरान मध्य वर्ग की स्थिति कमजोर होने लगी और कुल राष्ट्रीय आय में उसकी हिस्सेदारी सिर्फ 46% रह गई, तब अमेरिका की औसत सालाना ग्रोथ 2.7% थी। सिर्फ 1% का यह अंतर काफी मायने रखता है। अगर अर्थव्यवस्था 2.7% की दर से बढ़े तो 30 साल में उसका आकार 2.25 गुना होगा, लेकिन अगर ग्रोथ रेट 3.7% होती है तो इकोनॉमी का आकार 30 वर्षों में 3 गुना से अधिक हो जाएगा।

खर्च करने के तरीके में बदलाव

रानाडे ने हंसा रिसर्च कंजूमर सेल्स सर्वे रिपोर्ट 2022 का हवाला देते हुए बताया कि जब परिवार निम्न आय से मध्य आय वर्ग में जाते हैं तो उनकी खरीदारी की आदतें बदल जाती हैं। सर्वे में पता चला कि 51% उपभोक्ताओं ने स्मार्टफोन खरीदे। आमदनी बढ़ने पर परिवार अच्छी क्वालिटी के कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स और जूतों पर भी खर्च बढ़ाते हैं। यह सर्वे 19 शहरों में ए, बी और सी तीन सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोगों के बीच किया गया। कुल मिलाकर सर्वे का नतीजा यह रहा कि निम्न से मध्य आय वर्ग में जाने वाले परिवार बेहतर प्रोडक्ट और जीवन शैली की आकांक्षा रखते हैं।

प्राइस सर्वे के अनुसार 5 लाख से 15 लाख रुपये सालाना आमदनी वाले हर 10 परिवार में से तीन के पास कार है। 30 लाख रुपये से अधिक आय वाले हर घर में एक कार होती है। करोड़पति परिवारों में हर घर में औसतन तीन कारें होती हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियों की संस्था सियाम के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल बिके 42.18 लाख यात्री वाहनों में 49% एसयूवी थे। वर्ष 2022 में इनका हिस्सा 42% था। सेडान का हिस्सा पिछले साल 11% से घट कर 9.4% और हैचबैक का 35% से घट कर 30% रह गया।

यह ट्रेंड घरों की खरीद-बिक्री में भी दिख रहा है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म एनारॉक के अनुसार 2024 की पहली छमाही में देश के सात प्रमुख शहरों में लांच हुए नए घरों में लक्जरी (1.5 करोड़ से अधिक) और प्रीमियम सेगमेंट (80 लाख-1.5 करोड़) ज्यादा रहे। कुल लांचिंग में इनका हिस्सा 28-28 प्रतिशत था। मिड सेगमेंट (40-80 लाख) वाले घर 26% थे और अफोर्डेबल (40 लाख से कम) घरों की संख्या सिर्फ 19% थी। 2023 में भी लांच हुए नए घरों में 31% घर 40 से 80 लाख रुपये, 28% घर 80 लाख से 1.5 करोड़ रुपये और 23% घर 1.5 करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले थे। अफोर्डेबल घरों का हिस्सा सबसे कम 18% था।

भारत के आकांक्षी वर्ग में शेयर बाजार का भी आकर्षण है। वर्ष 2023 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निवेशक आधार 7 करोड़ से 22% बढ़ कर 8.54 करोड़ हो गया। म्यूचुअल फंड बॉडी एम्फी (AMFI) के मुताबिक 2023-24 में 4.28 करोड़ नए एसआईपी एकाउंट खुले। यह संख्या पिछले दो वर्षों में 2.52 करोड़ और 2.66 करोड़ थी। इस साल अप्रैल-मई में ही 1.13 करोड़ एसआईपी खाते खुल चुके हैं।

मध्य वर्ग के साथ बढ़ रही इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग

एसबीआई रिसर्च ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग के आधार पर अगस्त 2023 में द एसेंट ऑफ द न्यू मिडल क्लास रिपोर्ट जारी की। इसके मुताबिक आकलन वर्ष 2022-23 में लगभग 7.8 करोड़ रिटर्न फाइल हुए और 2046-47 में यह संख्या 48.2 करोड़ पहुंच जाने का अनुमान है। रिटर्न फाइल करने वालों की औसत आय (वेटेड मीन) आकलन वर्ष 2014 में 4.4 लाख थी जो अब 13 लाख हो गई है। 2047 में इसके 49.7 लाख हो जाने का अनुमान है। इसका आकलन है कि प्रति व्यक्ति आय 2022-23 के 2 लाख रुपये (लगभग 2500 डॉलर) से बढ़ कर 2047 में 14.9 लाख (लगभग 12,400 डॉलर) हो जाएगी।

हालांकि इस आय स्तर से भारत विकसित देशों की श्रेणी में नहीं जाएगा। प्रति व्यक्ति सालाना 1135 डॉलर तक सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) वाले देश निम्न, 1136 से 4465 डॉलर वाले निम्न मध्य, 4466 से 13845 डॉलर वाले उच्च मध्य और 13846 डॉलर या इससे अधिक आय वाले देश उच्च आय वर्ग में आते हैं। भारत अभी निम्न मध्य आय वर्ग में है। वर्ल्ड बैंक इस पैमाने में हर साल संशोधन करता है, जिसमें आय की सीमा बढ़ती जाती है। उच्च आय वर्ग के लिए 2021-22 (जुलाई-जून) में न्यूनतम सीमा 12695 डॉलर और 2022-23 में 13205 डॉलर थी। यानी 2047 तक यह सीमा और बढ़ जाएगी।

आकलन वर्ष 2011-12 से 2022-23 के दौरान आईटीआर के ट्रेंड के आधार पर एसबीआई रिसर्च ने कई अनुमान भी लगाए हैं। वर्ष 2011-12 से 2022-23 तक 13.6% लोग जिस वर्ग में थे, उससे ऊपरी आय वर्ग में गए। सालाना 5-10 लाख रुपये आय वर्ग में 8.1%, 10-20 लाख रुपये आय वर्ग में 3.8% और 20-50 लाख रुपये आय वर्ग में 1.5% वृ्द्धि हुई। इनके अलावा 50 लाख से एक करोड़ रुपये आय वर्ग में 0.2% और एक करोड़ से अधिक वाले वर्ग में 0.02% वृद्धि हुई है।

इस ट्रेंड आधार पर वर्ष 2047 तक 25% लोगों के ऊपरी आय वर्ग में आने का अनुमान है। सबसे ज्यादा 17.5% वृद्धि 5-10 लाख रुपये वाले वर्ग में होगी। उसके बाद 10-20 लाख रुपये वाले वर्ग में 5%, 20-50 लाख वाले वर्ग में 3%, 50 लाख से एक करोड़ वाले वर्ग में 0.5% और एक करोड़ से अधिक आय वर्ग में 0.075% की वृद्धि होगी। टैक्सेबल आय वाले भी बढ़ेंगे। आकलन वर्ष 2011-12 में 84.1% आईटीआर में जीरो टैक्स लायबिलिटी थी, यह 2022-23 में घट कर 64% रह गई।

देश में शहरीकरण बढ़ने के साथ प्रोफेशनल्स की संख्या बढ़ेगी, नए बिजनेस हब बनेंगे। डेलॉय, केपीएमजी जैसी प्रोफेशनल कंपनियां अभी से टैलेंट के लिए छोटे शहरों की ओर जा रही हैं। फोन से लेकर कार और घर तक, हर चीज में प्रीमियम सेगमेंट में बिक्री सस्ती की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ेगी, प्रीमियम सर्विसेज और प्रोडक्ट की मांग में भी वृद्धि होगी। भारत का यह मध्य वर्ग दुनिया के लिए विशाल बाजार बनता जा रहा है और यही वर्ग भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाएगा।