नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी

दिल्ली जल संकट से बदहाल है। नौबत यहां तक आ पहुंची कि दिल्ली के कई इलाकों कुसुमपुर पहाड़ी, ओखला, संगम विहार, विवेकानंद कैंप आदि में टैंकर के लिए लंबी-लंबी कतारें लग रही है तो वहीं एनडीएमसी ने वीआईपी इलाकों में पानी की आपूर्ति एक बार कर दी है। भारत का आईटी हब कहा जाना वाला बेंगलुरू शहर इन दिनों हर रोज बीस करोड़ लीटर पानी की कमी झेल रहा है। मुंबई और चेन्नई जैसे शहर भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त करीब 60 करोड़ भारतीय जल संकट का सामना कर रहे हैं। हर साल करीब 2 लाख लोगों की मौत पानी की कमी की वजह से हो रही है। अभी हालात और बिगड़ने की आशंका है क्योंकि 2050 तक पानी की मांग इसकी आपूर्ति से ज्यादा हो जाएगा। डब्ल्यूएमओ की एक रिपोर्ट ‘2021 स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज के अनुसार भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगातार घट रही है। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2031 में और घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार पानी की बर्बादी का एक अन्य अनुमान बताता है कि हर दिन 4,84,20,000 करोड़ क्यूबिक मीटर यानी 48.42 अरब एक लीटर पानी की बोतलें बर्बाद हो जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार , पिछली शताब्दी में पानी का उपयोग जनसंख्या वृद्धि की दर से दोगुने से भी अधिक बढ़ गया है। 2025 तक, अनुमान है कि 1.8 बिलियन लोग पानी की कमी से ग्रस्त क्षेत्रों में रहेंगे, दुनिया की दो-तिहाई आबादी उपयोग, विकास और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रहती है।

अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण भूजल संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। भारत की स्थिति इस मामले में चिंताजनक है। भारत में पूरी दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है लेकिन उस अनुपात में जब पानी की बात की जाए तो वह सिर्फ चार प्रतिशत के करीब बैठता है। हैरानी की बात है कि भारत में पूरी दुनिया का सिर्फ चार प्रतिशत शुद्ध जल का स्रोत है।

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की निदेशक और पर्यावरणविद् सुनीता नारायण कहती है कि इस साल बेंगलुरु में पैदा हुआ जल संकट पूरे देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। हमारे शहर रहने लायक तभी बने रहेंगे जब शहर में रहने वाले गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए भी साफ पेय जल की उपलब्धता हो। बेंगलुरु में पर्याप्त बारिश होती है, यहां झीलें हैं जो इस बारिश को इकट्ठा कर सकती हैं और भूजल को रिचार्ज कर सकती हैं। इन झीलों के चलते ज्यादा बारिश के समय भी शहर में बाढ़ जैसी स्थिति नहीं बनती है। शहरों में पानी की हर बूंद का इस्तेमाल आने वाले अभाव के दौर के लिए किया जा सकता है। पानी की बचत के लिए शहरों के सीवर में बह जाने वाले पानी के प्रबंधन पर भी विचार करना होगा। इसके लिए जल इंजीनियरों को जमीन पर उतरना होगा, फिर से काम करना होगा और फिर से सोचना होगा। यह आज बेंगलुरु की कहानी है और कल ये किसी भी शहर की कहानी हो सकती है।

सिंगापुर और इजराइल से सीखें भारत के महानगर

भूजल, झीलों और तालाबों को रिचॉर्ज करने के लिए बारिश के पानी का संचय आवश्यक है। इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की समस्या कम होगी। सिंगापुर जैसे सबसे आधुनिक शहर वर्षा जल संचयन की प्रैक्टिस करते हैं। सिंगापुर की लगभग आधी भूमि का उपयोग बारिश के पानी को कैप्चर करने के लिए किया जाता है। इस तरह की पहल से बेंगलुरू जैसे शहर पानी की कमी की समस्या को काफी हद तक हल कर सकते हैं। सिंगापुर, इजरायल जैसे देश व विश्व के कई बड़े शहर पानी की बर्बादी रोककर और अपशिष्ट जल को शोधित कर पेयजल संकट को दूर कर रहे हैं। दिल्ली में आधा से अधिक पेयजल चोरी व रिसाव में बर्बाद हो जाता है।

सिंगापुर, टोक्यो सहित अन्य स्थानों पर यह पांच प्रतिशत के आसपास है। दिल्ली जल बोर्ड के पूर्व सदस्य आरएस त्यागी का कहना है कि तकनीक के सहयोग से सिंगापुर की तरह दिल्ली में भी पानी वितरण के दौरान व घर में जल की बर्बादी रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। शोधित अपशिष्ट जल का उपयोग कर जल संकट को दूर किया जा सकता है।

दिल्ली के खस्ताहाल

टेरी के वैज्ञानिक चंदर कुमार सिंह कहते हैं कि केंद्रीय भूजल आयोग (सीजीडब्ल्यूबी) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली हर साल औसतन 0.2 मीटर भूजल खो रही है। इस लिहाज से हर दिन दिल्ली की जमीन के नीचे का पानी 0.05 सेंटीमीटर नीचे जा रहा है। यहां के करीब 80 फीसदी स्त्रोत क्रिटिकल या सेमी क्रिटिकल स्थिति में आ चुके हैं। वहीं टेरी की ओर से किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि दिल्ली -एनसीआर में बढ़ती कंकरीट की सतह के चलते ज्यादातर बारिश का पानी बह जाता है जिससे जमीन में पानी रीचार्ज नहीं हो पाता है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती कंक्रीट की सतह का असर सीधे तौर पर ग्राउंड वाटर रीचार्ज पर पड़ा है। अनुमान है कि 2031 तक बारिश का 70 फीसदी से ज्यादा ज्यादा पानी बह कर नालों के जरिए नदियों में चला जाएगा।

दिल्ली में गिर रहा जलस्तर

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष नवंबर में जारी भूजल रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है। सबसे अधिक खराब स्थिति नई दिल्ली जिले की है अन्य जिलों की स्थिति भी सही नहीं है। दिल्ली की 34 में से सिर्फ तीन में ही भूजल सुरक्षित स्तर पर है, 22 को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है।

कई स्थानों पर यह 20 से 30 मीटर नीचे चला गया है। इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो इन शहरों का भूजल खत्म हो जाएगा। इससे पेयजल संकट और बढ़ेगा। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक विश्व के 200 शहर डे जीरो की स्थिति में पहुंच सकते हैं, जिसमें शीर्ष के 10 में भारत के चार शहर दिल्ली, जयपुर, चेन्नई और हैदराबाद शामिल है। डे जीरो का अर्थ है कि शहर में उपलब्ध पानी के सभी स्त्रोत समाप्त हो जाना। इस स्थिति से बचने के लिए भूजल दोहन में कमी लाकर जल संचयऩ को बढ़ावा देना होगा। पर्यावरणविद् अनिल जोशी कहते हैं कि आज वायु प्रदूषण और बढ़ता जल संसाधन सबसे बड़ी चुनौतियां बन कर हमारे सामने खड़े हैं। शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण अब जानलेवा होने लगा है। ये प्रदूषण कई बीमारियों का भी जनक है। अंधाधुंध दोहन के चलते हमारे जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। पहाड़ों में बड़ी संख्या में बरसाती नदियां लगभग समाप्ती की कगार पर हैं। भूजल का स्तर भी लगातार नीचे जा रहा है। वहीं जमीन को रीचार्ज करने की कोई व्यवस्था की नहीं जा रही है। ऐसे में समय रहने कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में देश के एक बड़े हिस्से के सामने जल संकट खड़ा होने की स्थिति है। हमें अपने शहरों में घरों या इमारतों के निर्माण के साथ ही अनिवार्य तौर पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए प्रेरित करना होगा। वहीं जल के प्रबंधन के लिए भी कदम उठाने होंगे। जलाशयों की संख्या बढ़ाने के लिए भी कदम उठाने होंगे।

पानी की बर्बादी

औसत भारतीय अपनी दैनिक पानी की ज़रूरत का 30 प्रतिशत बर्बाद कर देते हैं। यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, प्रति मिनट 10 बूंदें टपकने वाला टपकने वाला नल प्रतिदिन 3.6 लीटर पानी बर्बाद करता है साथ ही, शौचालय के हर फ्लश में लगभग छह लीटर पानी खर्च होता है। सीएसई की एक रिपोर्ट बताती है कि हर दिन 4,84,20,000 करोड़ क्यूबिक मीटर यानी एक लीटर की 48.42 अरब बोतल पानी बर्बाद हो जाता है, जबकि इस देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिल पाता है।

भारत में पानी की कितनी कमी

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता लगभग 1,100 क्यूबिक मीटर है, भारी किल्लत को दर्शाता है। जब प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर यानी 17 लाख लीटर से कम होती है, तब माना जाता है कि देश में पानी की कमी हो रही है। लेकिन जब ये उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर यानी 10 लाख लीटर से कम हो जाएगी तो माना जाएगा कि भारत में पानी की भयानक किल्लत है। इसकी तुलना में, वैश्विक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,500 क्यूबिक मीटर है।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में अधिकतम जल निकाय बहुत छोटे हैं। भारत के अधिकांश जल निकाय एक हेक्टेयर से भी छोटे हैं। इसके अलावा इस रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि कई जल निकायों का पानी इतना पुराना और इतना मैला है कि उसे इस्तेमाल उसे इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं इसलिए इन जल निकायों के पानी को इस्तेमाल करने योग्य भी नहीं बताया गया है।

पानी को लेकर सरकार की योजनाएं

राष्ट्रीय जल नीति- इस नीति के तहत नदी के एक भाग को इस्तेमाल के लिए संरक्षित किए जाने का प्रावधान है तो वहीं नदी के दूसरे भाग को बहते देने का प्रावधान है. जिससे लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध हो सके।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को 2015-16 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य खेत पर पानी की भौतिक पहुंच को बढ़ाना और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना था।

जल शक्ति अभियान, ‘कैच द रेन’ अभियान-सभी स्थितियों के आधार पर जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिये वर्षा जल संचयन संरचना का निर्माण करना।

अटल भूजल योजना-अटल भूजल योजना 6,000 करोड़ रुपये की लागत वाली एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत प्रबंधन को बढ़ावा देना है। इसमें जल बजट के निर्माण, ग्राम-पंचायत-वार जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के माध्यम से लोगों की भागीदारी की परिकल्पना की गई है।

कृषि पर असर

कृषि में भारत के 80 फीसदी पानी का उपयोग होता है। नीति आयोग की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक गेहूं की खेती का लगभग 74 फीसदी क्षेत्र और चावल की खेती का 65 फीसदी क्षेत्र 2030 तक पानी की भयंकर कमी का सामना करेगा।

कुशल सिंचाई के द्वारा जल बचाने की जरूरत

डीसीएम श्रीराम और सत्व नॉलेज की एक रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सिंचाई जल का दक्षता से उपयोग किया जाए, तो 20% पानी को बचा सकते हैं।

भारत में जल संकट के परिणाम

भारत में जल संकट के कारण कृषि उत्पादकता में कमी, जलजनित बीमारियां और आर्थिक चुनौतियां पैदा होती हैं। इससे विकास में भी बाधा आती है और समुदायों की समग्र खुशहाली पर भी असर पड़ता है।

वेस्ट वाटर का सही इस्तेमाल

काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर की ‘रीयूज ऑफ ट्रीटेड वेस्टवॉटर इन इंडिया'रिपोर्ट के अनुसार भारत में अगर चुनिंदा क्षेत्रों में ट्रीटेड वेस्टवॉटर (उपचारित अपशिष्ट जल) को बेचने की व्यवस्था हो तो 2025 में इसका बाजार मूल्य 83 करोड़ रुपये होगा, जो 2050 में बढ़कर 1.9 अरब रुपये पहुंच जाएगा। अध्‍ययन बताता है कि भारत में पैदा हो रहे वेस्‍टवॉटर की मात्रा इतनी है कि 2050 तक निकलने वाले वेस्टवॉटर के ट्रीटमेंट से जितना साफ पानी मिलेगा, उससे दिल्ली से 26 गुना बड़े क्षेत्रफल की सिंचाई की जा सकती है।

हर साल कम हो रहा तीन सेंटीमीटर पानी

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट ‘2021 स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज’ में बताया गया है क‍ि भारत में पिछले 20 वर्षों (2002-2021) में स्थलीय जल संग्रहण में 1 सेमी. प्रति वर्ष की दर से गिरावट दर्ज की गई है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगातार घट रही है। यह वर्ष 2001 के 1,816 क्यूबिक मीटर की तुलना में वर्ष 2011 में घटकर 1,545 क्यूबिक मीटर हो गई। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2031 में और घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी।

पानी का लगातार बढ़ रहा उपभोग

विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) के अनुमानों पर आधारित आंकड़ों से पता चलता है कि विश्लेषण किए गए 164 देशों और क्षेत्रों में से 51 में 2050 तक उच्च से लेकर अत्यधिक उच्च जल तनाव की स्थिति होने की संभावना है, जो कि 31 प्रतिशत आबादी के बराबर है। पूरे अरब प्रायद्वीप, ईरान और भारत के अलावा, अल्जीरिया, मिस्र और लीबिया जैसे अधिकांश उत्तरी अफ्रीकी देश उन देशों में शामिल हैं, जिनके 2050 तक उपलब्ध पानी का कम से कम 80 प्रतिशत उपभोग करने की उम्मीद है।

दूषित होती नदियां

स्टेट ऑफ एनवायरमेंट (एसओई) रिपोर्ट 2023 में यह खुलासा किया गया है कि रिपोर्ट के मुताबिक देश के 30 राज्यों में कुल 279 (46 फीसदी) नदियां प्रदूषित हैं, हालांकि, 2018 के मुकाबले मामूली सुधार 2022 में देखा गया है. 2018 में 31 राज्यों में 323 नदियां प्रदूषित थीं।

जबलपुर की ओमती नदी देखते ही देखते नाले में हुई तब्दील

एक जमाने में कलकल करती बहने वाली ओमती नदी देखते ही देखते नाले में तब्दील हो गई।

खंदारी की किस्मत भी वैसी- जिस तरह ओमती नदी शहरी प्रदूषण का शिकार हुई, ठीक वैसी ही किस्मत खंदारी की भी रही। जानकारों का कहना है कि एक जमाने में बिलहरी, तिलहरी से होते हुए खंदारी नदी ग्वारीघाट से ठीक पहले आकर नर्मदा में मिला करती थी, लेकिन यह भी जल्द नाले में तब्दील हो गई।

उत्तराखंड : देहरादून की रिस्पना को कभी जीवन दायिनी नदी कहा जाता था, जिसका पानी कभी पीने योग्य था, आज उसके अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है।

झारखंड : जमशेदपुर की लाइफ लाइन कही जाने वाली स्वर्णरेखा नदी की नाले से भी बदतर हालत हो गई है