प्राइम टीम, नई दिल्ली। आने वाले तीन महीने में ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं व्हाइट गुड्स, मेटल और मशीन टूल्स जैसे प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नई भर्तियां निकल सकती हैं। इन कंपनियों की अगले 6 माह में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना है, इसलिए इन सेगमेंट की 40 से 57 प्रतिशत तक कंपनियों ने कहा कि वे नई भर्तियां करेंगी। उद्योग चैंबर फिक्की की तरफ से 10 प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट में किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। जुलाई से सितंबर तिमाही के लिए किए गए इस सर्वेक्षण में छोटी-बड़ी 380 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को शामिल किया गया। इनका कुल सालाना टर्नओवर 4.88 लाख करोड़ रुपये है।

सर्वेक्षण में पता चला कि दूसरी तिमाही में ग्रोथ मोमेंटम बढ़ा है। विकसित देशों की इकोनॉमी की रफ्तार कम होने के बावजूद भारत में आने वाली तिमाहियों में ग्रोथ मोमेंटम बढ़ने का अनुमान है। इस वर्ष अप्रैल-जून तिमाही में 57% कंपनियों ने उत्पादन बढ़ने की जानकारी दी थी, जबकि सितंबर तिमाही में 79% कंपनियों का उत्पादन बढ़ा है। 80% कंपनियों ने कहा कि जुलाई से सितंबर के दौरान उनके पास पिछले साल की तुलना में ज्यादा ऑर्डर थे। मजबूत यानी 10% से 20% ग्रोथ वाले सेगमेंट में इलेक्ट्रॉनिक्स और व्हाइट गुड्स, सीमेंट, ऑटोमोबाइल और मशीन टूल्स शामिल हैं। मशीनरी और कंस्ट्रक्शन के समान, केमिकल, टेक्सटाइल, मेटल, पेपर जैसे सेगमेंट में ग्रोथ औसत यानी 5% से 10% रहने की उम्मीद है।

ग्रोथ मोमेंटम की बात बिक्री के आंकड़ों से भी साबित होती है। कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अनुसार इस वर्ष के दिवाली सीजन में देश भर के बाजारों में 3.75 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का रिकॉर्ड तोड़ व्यापार हुआ। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल के मुताबिक गोवर्धन पूजा, भैया दूज, छठ पूजा एवं तुलसी विवाह में लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का और व्यापार होने की संभावना है।

क्षमता विस्तार और नई भर्तियों की उम्मीद कहां

ऑटोमोबाइल सेक्टर की 70% कंपनियों ने कहा कि अगले 6 माह में क्षमता विस्तार करेंगी, तीन माह में 57% कंपनियां नई भर्तियां भी करेंगी। बेहतर बिक्री की उम्मीदों के चलते इलेक्ट्रॉनिक्स और व्हाइट गुड्स सेगमेंट की 75% कंपनियों ने क्षमता विस्तार और आधी ने नई भर्तियों की बात कही। मेटल और इसके प्रोडक्ट की 55% कंपनियों ने क्षमता विस्तार की बात कही तो 45% ने कहा कि वे तीन महीने में नई भर्तियां करेंगी। मशीन टूल्स बनाने वाली कंपनियों में 60% ने क्षमता विस्तार और 40% ने नई भर्तियों की बात कही।

हालांकि हर मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट में स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। जैसे, कैपिटल गुड्स यानी मशीनरी बनाने वाली 83% कंपनियों ने कहा कि वे क्षमता विस्तार करेंगी, लेकिन अगले तीन माह में नई भर्तियों की बात सिर्फ 33% ने कही। सीमेंट बनाने वाली आधी कंपनियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना है, लेकिन उनमें नई भर्तियां अभी कम ही होंगी। केमिकल और उर्वरक बनाने वाली 75% कंपनियां क्षमता का विस्तार करेंगी लेकिन अगले तीन माह में सिर्फ 25% कंपनियों में नई भर्तियों की उम्मीद है। टेक्सटाइल और अपैरल सेगमेंट में 25% कंपनियों की योजना क्षमता बढ़ाने की है तो नई भर्तियों की योजना सिर्फ 19% की है। पेपर और इसके प्रोडक्ट बनाने वाली आधी कंपनियों ने कहा कि वे क्षमता विस्तार करेंगी, लेकिन अभी नई भर्तियां नहीं करेंगी।

कंपनियों में 74% उत्पादन क्षमता का इस्तेमाल

समग्र तौर पर देखें तो कंपनियों की क्षमता के इस्तेमाल में सुधार हुआ है। यह जून तिमाही के 73% से बढ़कर 74% हो गया है। 57% कंपनियों ने कहा कि वे अगले 6 महीने में निवेश और विस्तार करेंगी। यह भी पिछली तिमाही की तुलना में ज्यादा है। हालांकि मांग को लेकर कंपनियां अब भी सशंकित हैं। करीब 40% कंपनियों ने कहा कि उनके लिए मांग की समस्या बनी हुई है, चाहे वह घरेलू स्तर पर हो या निर्यात मांग। कच्चे माल की बढ़ी कीमत, कर्ज पर अधिक ब्याज दर, लॉजिस्टिक्स तथा सप्लाई चेन महंगा होना अन्य समस्याएं हैं।

59% कंपनियों ने बताया कि पिछली तिमाही के तुलना में ब्याज दर में वृद्धि हुई है। निर्यात के मोर्चे पर प्रदर्शन पिछली तिमाही से बेहतर रहा है। 48% कंपनियों ने कहा कि सितंबर तिमाही में उनका निर्यात बढ़ा है। जून तिमाही में सिर्फ 33% कंपनियों के निर्यात में वृद्धि हुई थी। एक तिहाई से ज्यादा, 38% कंपनियों ने कहा कि वे अगले 3 महीने के दौरान नई भर्तियां करेंगी। 82% कंपनियों के सामने वर्कफोर्स की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है, लेकिन 18% कंपनियों को अब भी वर्कफोर्स की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट लगातार पांचवें महीने घटा

सर्वेक्षण में अनेक कंपनियों ने घरेलू और निर्यात मांग को लेकर अंदेशा जताया है। यह बात एसएंडपी की एक रिपोर्ट से भी साबित होती है। इसने सोमवार को जारी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में लिखा है कि महामारी के समय विभिन्न सरकारों ने ग्लोबल इकोनॉमी में जो स्टीमुलस का इंजेक्शन दिया था वह अब खत्म हो रहा है, महामारी के बाद पर्यटन और मनोरंजन के क्षेत्र में जो तेज बढ़ोतरी देखने को मिली थी उसमें भी गिरावट आ रही है। महामारी के बाद सप्लाई चेन की समस्या थी, तब ज्यादा स्टॉक बनाने के लिए कंपनियों ने मैन्युफैक्चरिंग अधिक की थी। अब वे पहले इन्वेंटरी खाली करना चाहती हैं।

एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में 40 देशों की 27000 कंपनियों के आंकड़ों का अध्ययन किया गया। इससे पता चलता है कि अक्टूबर में दुनिया भर में बिजनेस गतिविधियों में स्थिरता आई है। मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) फरवरी के बाद सबसे निचले स्तर पर है। ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग आउटपुट अक्टूबर में लगातार पांचवें महीने घटा है। सर्विस सेक्टर की ग्रोथ भी स्थिर हो गई है। मीडिया, मनोरंजन और रिटेल जैसे कंज्यूमर सेक्टर में वृद्धि हुई है लेकिन हैवी इंडस्ट्रीज और टेक्नोलॉजी सेक्टर में तेज गिरावट आई है। मांग कम होने के कारण महंगाई दर में भी कमी आई है। अक्टूबर में ग्लोबल औसत मूल्य तो बढ़े लेकिन बढ़ने की दर 3 साल में सबसे कम रही।

विश्व स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग में माइग्रेशन

भारत में मैन्युफैक्चरिंग को वैश्विक स्तर पर समर्थन मिला है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट में लिखा कि बीते 5 वर्षों के दौरान ट्रेड वॉर, महामारी, प्राकृतिक आपदा, सप्लाई चेन में बाधा, ब्रेक्जिट, रूस-यूक्रेन युद्ध और औद्योगिक नीतियों में बदलाव ने निर्यात के लिहाज से ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग को नया आकार दिया है। इसने उत्तर अमेरिका की मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का एक सर्वेक्षण किया जिसमें 90% से ज्यादा कंपनियों ने कहा कि उन्होंने पिछले 5 वर्षों के दौरान अपने उत्पादन और सोर्सिंग के केंद्र बदले हैं।

भू-राजनीतिक अनिश्चितता और चीन के साथ ट्रेड वॉर के चलते अमेरिका में चीन से अनेक वस्तुओं के आयात पर शुल्क अधिक लगता है। इससे बचने के लिए अनेक इंडस्ट्री सेक्टर में चीन से आयात कम हुआ है। इस दौरान भारत, मेक्सिको और दक्षिण पूर्व एशिया निर्यात मैन्युफैक्चरिंग पावर हाउस के रूप में उभरे हैं। इन तीनों जगहों पर श्रम तथा अन्य लागत कम है, और स्केल भी बढ़ रहा है। भारत के साथ एक और सकारात्मक बात यह है कि इसका अपना विशाल घरेलू बाजार है।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 से 2022 के दौरान अमेरिका में वस्तुओं का आयात चीन से 10% कम हुआ, जबकि मेक्सिको से 18%, भारत से 44% और आसियान देशों से 65% बढ़ा है। सेगमेंट के लिहाज से देखें तो अमेरिका में चीन से कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात 2%, सेमीकंडक्टर और मैटेरियल का 29%, ऑटो कंपोनेंट का 12% और मैकेनिकल मशीनरी का 28% घटा है। इस दौरान भारत से कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स का अमेरिका को निर्यात 392%, सेमीकंडक्टर और मैटेरियल का 143%, ऑटो कंपोनेंट का 65% और मैकेनिकल मशीनरी का 70% बढ़ा है।

जहां तक नई जगह जाने की बात है तो अमेरिका के हाईटेक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता, ऑनलाइन कंज्यूमर रिटेलर, खिलौने और गेम बनाने वाली कंपनियां भारत आ रही हैं। लेकिन अमेरिका की सॉफ्टवेयर और चिप कंपनियां वियतनाम गई हैं। हालांकि बढ़ती श्रम लागत के बावजूद चीन प्रतिस्पर्धी बना हुआ है। उसका सप्लायर बेस बड़ा है, लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर तथा कई इंडस्ट्री में वैल्यू चेन काफी मजबूत है।

बीसीजी का कहना है कि अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को वैल्यू चेन का संपूर्ण आकलन करना चाहिए तथा उन देशों में जाने पर विचार करना चाहिए जो स्केल बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए भारत इंजन और टरबाइन उत्पादक के तौर पर विकसित हो रहा है। मोरक्को ऑटोमोबाइल असेंबली और कंपोनेंट के डेस्टिनेशन के तौर पर और वियतनाम कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स के नए केंद्र के रूप में उभर रहा है। इन देशों में श्रम और जमीन आसानी से और कम कीमत पर उपलब्ध है।

इंजन और टरबाइन की लागत कम करने के लिए असेंबलिंग और कंपोनेंट की खरीद भारत में शिफ्ट की जा सकती है। यहां लागत में 25% से 40% तक की बचत हो सकती है। हालांकि यहां भी लीड टाइम यानी उत्पादन की प्रक्रिया शुरू करने से पूरा करने तक लगने वाला समय अधिक हो सकता है। नई उत्पादन क्षमता विकसित करने के लिए निवेश की जरूरत पड़ेगी और सप्लाई बेस भी तैयार करना पड़ेगा।

आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के मुताबिक भारत जीवीए में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17.3% है। नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी में इसे 2025 तक 25% करने का लक्ष्य है। मैन्युफैक्चरिंग में करीब 2.73 करोड़ लोग काम करते हैं। वित्त वर्ष 2022-23 में 447.46 अरब डॉलर का मैन्युफैक्चरिंग निर्यात हुआ। यह एक साल पहले के 422 अरब डॉलर से 6% ज्यादा है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लॉजिस्टिक्स इंफ्रास्ट्रक्चर असमान रूप से विकसित हुआ है। पर्यावरण के लिहाज से यहां की सस्टेनेबिलिटी कमजोर है। इसने बहुत कम देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। फिर भी भारत लागत के लिहाज से काफी प्रतिस्पर्धी है। बड़े निर्यातक के रूप में उभरने के साथ इसका मैन्युफैक्चरिंग आधार भी बढ़ रहा है। इलेक्ट्रिक वाहन से लेकर हेवी मशीनरी, केमिकल तथा अप्लायंसेज तक हर क्षेत्र में इसकी स्थिति मजबूत हो रही है।