नई दिल्ली, विवेक तिवारी / संदीप राजवाड़े।  दिल्ली-एनसीआर में एक बार फिर हवा में प्रदूषण का स्तर मानकों से कई गुना अधिक हो चुका है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस प्रदूषित हवा में सांस लेना आपके दिल की सेहत को खराब कर सकता है। अमेरिकन हार्ट जनरल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक हवा में बढ़ते PM 2.5 के स्तर के चलते पिछले तीन दशक में वैश्विक तौर पर दिल की बीमारियों के खतरा 31 फीसदी तक बढ़ गया है। वहीं, वैज्ञानिकों ने 35 अलग-अलग अध्ययनों को रिव्यू करने पर पाया कि हवा में PM2.5 में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर का स्तर बढ़ने पर हार्ट अटैक का खतरा 2.1 फीसदी तक बढ़ जाता है।

प्रदूषण के बढ़ने के साथ ही हार्ट अटैक और दिल के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है। दिल्ली स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर सुमन भंडारी कहते हैं कि वायु प्रदूषण का सीधा असर दिल पर पड़ता है। वहीं इससे डायबिटीज भी बढ़ती है। उन्होंने बताया कि जब से वायु प्रदूषण बढ़ा है दिल के मरीजों की संख्या दोगुना तक बढ़ गई है। इसमें हार्ट अटैक के मरीज भी शामिल हैं। गुरुग्राम सनार इंटरनेशनल हॉस्पिटल के कार्डियो विभाग के डायरेक्टर डॉ डीके झांब कहते हैं कि प्रदूषण बढ़ने के साथ ही दिल के मरीजों की संख्या भी 40 फीसदी तक बढ़ गई है। दिल के मरीजों की ओपीडी में सामान्य दिनों में जहां 25 से 30 मरीज आते थे, वहीं प्रदूषण बढ़ने के बाद से मरीजों की संख्या 40 से 45 तक हो गई है। ज्यादातर मरीजों की धमनियों में कोरोनरी आर्टरी डिजीज देखी जा रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें दिल तक खून पहुंचाने वाली धमनियों में प्लाक जमा होने लगता है। इससे दिल की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। इसके कारण सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होती है। 

कैलाश हॉस्पिटल के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ पार्थ चौधरी कहते हैं कि ठंड में दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ हार्ट के मरीजों की संख्या भी बढ़ जाती है। सामान्य दिनों में जहां रोज करीब 35 के करीब दिल के मरीज आ रहे थे वहीं पिछले कुछ समय से इन मरीजों की संख्या 45-50 हो गई है। खास बात ये है कि इनमें ज्यादातर नए मरीज हैं। हार्ट अटैक के मामले भी तेजी से बढ़े हैं।

लैंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से लगभग 16.7 लाख मौतें हुईं, ये उस साल देश में होने वाली सभी मौतों का 17.8% हिस्सा था। दुनिया की लगभग 91% आबादी उन जगहों पर रहती है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है।

शोधकर्ताओं ने 1990 और 2019 के के बीच 204 देशों के स्वास्थ्य डेटा के आधार पर PM 2.5 के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि हवा में PM 2.5 का स्तर बढ़ने से हाइपरटेंशन, ब्लड शुगर सहित दिल की बिमारी का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि वायु प्रदूषण के चलते 1990 में दुनिया भर में होने वाली मौतों की संख्या 2.6 रही। ये 2019 में बढ़कर 3.5 मिलियन हो गईं। एम्स कॉर्डियोलॉजी के निदेशक रह चुके और वर्तमान में Nims University के कुलपति डॉक्टर संदीप मिश्रा कहते हैं कि वायु प्रदूषण में PM 2.5 बेहद छोटे कण होते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि आपकी सांस के जरिए आपके फेफड़ों तक और वहां से आपके खून तक पहुंच जाते हैं। इन प्रदूषक कणों के आपके शरीर में पहुंचने से दिल, धमनियों सहित कई जगहों पर संक्रमण फैल जाता है। ये धीरे-धीरे दिल की गतिविधियों पर असर डालते हैं। ज्यादा समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने पर कंजेशन के चलते हार्ट अटैक की स्थिति बन सकती है। हवा में इस प्रदूषक कण की मात्रा बढ़ने से आपको कफ भी ज्यादा बनता है। 

प्रदूषित हवा में मौजूद PM 2.5 दिल के साथ ही दिल तक खून पहुंचाने और ले जाने वाले पूरे सिस्टम पर असर डालता है। ऑर्गनाइज्ड मेडिसिन अकेडेमिक गिल्ड के सेक्रेटरी जनरल डॉ ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि PM 2.5 के खून मे पहुंच जाने के बाद ये प्रदूषक तत्व खून के साथ पूरे शरीर में घूमते हुए दिल तक पहुंचता है। ऐसे में मरीज को सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, चक्कर आना, बेचैनी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। कई बार मरीज को ऐसा लगता है कि उसको सांस कम आ रही है। ऐसे में मरीज की मुश्किल बढ़ सकती है। उसे तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। PM 2.5 का असर फेफड़ों और दिल के साथ ही आपके दिमाग पर भी पड़ता है। हवा में प्रदूषण बढ़ने पर खास तौर पर सांस के मरीजों, दिल की बीमारी से जूझ रहे मरीजों और ऐसे मरीज जिन्हें पहले कोविड संक्रमण हुआ हो उन्हें ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। ब्रांकाइटिस के मरीज अगर ज्यादा लम्बे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो उनके जीवन पर भी संकट खड़ा हो सकता है। ऐसे में इस तरह के मरीजों को खास तौर पर ध्यान देने की जरूरत है।

PM 2.5 की शरीर में ज्यादा मात्रा हो जाने से शरीर के कई अंगों में सूजन हो जाती है। यूएन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कॉर्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर के असोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राघव बंसल कहते हैं कि कई सारे अध्ययन बताते हैं कि PM 2.5 के हवा में बढ़ने से दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। दरअसल ये प्रदूषक कण आपकी सांस के जरिए सीधे खून में पहुंच जाता है, जिससे शरीर के कई अंगों में सूजन हो जाती है। दिल की धमनियों पर भी असर होता है। इससे दिल की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। यदि कोई पहले से दिल का मरीज है तो PM 2.5 ज्यादा मात्रा में शरीर में पहुंचे से उसके लिए मुश्किल बढ़ सकती है और उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है।

पार्टिकुलेट मैटर (PM)किसे कहते हैं

पार्टिकुलेट मैटर तरल और ठोस कणों का मिश्रण है। ये हवा में मौजूद रहते हैं। इन्हें प्रदूषक तत्वों के तौर पर देखा जाता है। ये सूक्ष्म कणों से लेकर धुएं, कालिख, तरल कणों और धूल जैसे कणों तक हो सकते हैं। सामान्य तौर पर सस्पेंडेड पार्टिकल के कण 50-100 माइक्रोमीटर के बीच होता है। वहीं पार्टीकुलेटेड मैटर को उनके आकार के आधार पर 3 श्रेणियों में बांटा गया है। ये PM10 मोटे और बड़े आकार के कण होते हैं। इनका आकार 10 माइक्रोमीटर तक होता है। इन्हें आप आंखों से देख सकते हैं। PM2.5 ये बेहद छोटे कण होते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर तक होता है। ये आपकी सांस के साथ आपके खून तक पहुंच सकते हैं। PM1 ये अल्ट्रा-फाइन कण हैं। ये 1 माइक्रोमीटर से भी छोटे होते हैं।