पहले ही फंडिंग की कमी से जूझ रहे स्टार्टअप्स को लग रहा विदेशी निवेशकों की बेरुखी का डर
भारतीय स्टार्टअप बीते एक साल से फंडिंग की कमी से जूझ रहे हैं ऐसे समय में विदेशी निवेश को भी Angel Tax के दायरे में लाने के प्रस्ताव ने स्टार्टअप्स की चिंता बढ़ा दी है। उन्हें डर है कि इसके चलते विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से करताने लगेंगे।
स्कन्द विवेक धर, नई दिल्ली। मोदी सरकार के सभी आम बजट की तरह इस बजट में भी स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए कई घोषणाएं हुईं, लेकिन विदेशी निवेशकों तक एंजेल टैक्स के विस्तार की एक घोषणा इन सब पर भारी पड़ गई। सालभर से फंडिंग की कमी से जूझ रहे भारतीय स्टार्टअप्स को डर है कि इस फैसले के चलते विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने से करताने लगेंगे।
ऐसा नहीं है कि भारत में एंजेल टैक्स नया है। इसकी शुरुआत 2012 में हुई थी। इसके तहत यदि कोई अनलिस्टेड कंपनी अपनी फेयर वैल्यू से ऊंची कीमत पर शेयर बेचकर पूंजी उठाती है तो फेयर वैल्यू और सेल वैल्यू के अंतर को उस कंपनी की 'अन्य स्रोतों से आय' के तौर पर देखा जाता है और उस पर इनकम टैक्स लगता है।
भारतीय निवेशकों से हासिल निवेश पर एंजेल टैक्स पहले से लागू है। इस बजट में वित्त मंत्रालय ने विदेशी निवेशकों से मिलने वाले निवेश को भी एंजेल टैक्स के दायरे में ला दिया है। हालांकि, भारत सरकार के उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप को एंजेल टैक्स से छूट प्रदान की गई है।
इस प्रस्ताव का अर्थ है कि नए वित्त वर्ष से कोई स्टार्टअप किसी विदेशी निवेशक से फेयर प्राइस से अधिक भाव पर धन जुटाता है, तो उसे एंजेल टैक्स चुकाना पड़ेगा। उदाहरण के लिए यदि किसी स्टार्टअप के शेयर का फेयर प्राइस 100 रुपए प्रति शेयर है, लेकिन किसी राउंड में वह 200 रुपए प्रति शेयर के भाव से फंड उठाती है तो इस 100 रुपए के अतिरिक्त प्रीमियम पर स्टार्टअप को 20% टैक्स भरना होगा।
एंजेल टैक्स सैद्धांतिक रूप से भले ही बेहद सरल लगे, लेकिन इसका व्यवहारिक पक्ष बेहद जटिल है। वेंचर कैपिटल फर्म अर्था वेंचर फंड के मैनेजिंग पार्टनर अनिरुद्ध ए दमानी कहते हैं, किसी अनलिस्टेड कंपनी के शेयर की फेयर वैल्यू क्या होगी, ये कौन तय करेगा। किसी निवेशक को एक कंपनी के प्रॉस्पेक्ट अच्छे लग सकते हैं और वह ज्यादा प्रीमियम चुकाने को तैयार हो जाता है, दूसरे को वह कंपनी पसंद नहीं आती और वह उसकी कम कीमत लगाता है। दोनों भावों में से फेयर प्राइस कौन सा है, यह कौन और कैसे तय करेगा।
शेयर बाजार में आने वाले आईपीओ का उदाहरण देते हुए दमानी कहते हैं, 10 रुपए के फेसवैल्यू वाले शेयर का आईपीओ कोई कंपनी 100 रुपए में लाती है, कोई 500 में तो कोई दो हजार रुपयों में। फिर इसमें फेयर वैल्यू की बात क्यों नहीं की जाती।
भारतीय स्टार्टअप बीते एक साल से फंडिंग की कमी से जूझ रहे हैं। पीडब्ल्यूसी इंडिया के मुताबिक, वर्ष 2022 में इससे बीते साल की तुलना में भारत के स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग एक तिहाई घटकर 24 अरब डॉलर रह गई। विदेशी निवेशक भारतीय स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग का एक प्रमुख स्रोत हैं। यदि वे भी भारतीय बाजार से दूरी बना लेते हैं तो उद्यमियों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है।
बेंगलूरु स्थित अर्ली स्टेज वीसी फंड जावा कैपिटल के पार्टनर विनोद शंकर जागरण प्राइम से कहते हैं, सिकोइया कैपिटल, सॉफ्टबैंक, टाइगर ग्लोबल, कार्लाइल, केकेआर और ब्लैकस्टोन जैसे विदेशी निवेशकों से पूंजी जुटाने वाले स्टार्टअप्स पर "एंजेल टैक्स" लगाने की घोषणा से फंडिंग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी निवेशक नहीं चाहेंगे कि उनके निवेश का एक बड़ा हिस्सा कंपनी की ग्रोथ में लगने के बजाय टैक्स के रूप में चला जाए। इसके अलावा, विदेशी निवेशक किसी भी प्रकार के लिटिगेशन से बचना चाहेंगे। इसलिए आशंका है कि वह अपना फंड दूसरे देशों में डायवर्ट करने लगें।
स्टार्टअप्स की चिंता को देखते हुए केंद्र सरकार ने स्पष्टीकरण जारी किया है कि डीपीआईआईटी से मान्यता प्राप्त स्टार्टअप को एंजेट टैक्स से छूट जारी रहेगी और भारत में पंजीकृत घरेलू अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड ( एआईएफ) को इससे छूट दी गई है। हालांकि, इससे भी स्टार्टअप्स की चिंता पूरी तरह दूर नहीं हुई है।
शंकर कहते हैं, डीआईपीपी में स्टार्टअप की परिभाषा संकीर्ण है। निजी कंपनियों को स्टार्टअप के रूप में मान्यता देने के लिए चुकता शेयर पूंजी और शेयर प्रीमियम की कुल राशि के लिए 25 करोड़ रुपए की सीमा है। स्टार्टअप के रूप में मान्यता प्राप्त करने या बने रहने के लिए कई अन्य प्रतिबंध भी हैं। यह सीरीज ए+ स्टेज की फंडिंग को चुनौतीपूर्ण बनाता है। इससे भविष्य में बड़े टैक्स विवाद हो सकते हैं।
शंकर के मुताबिक, सरकार का यह कदम स्टार्टअप्स को टैक्स चुकाने से बचने के लिए विदेशों में शिफ्ट होने के लिए भी प्रोत्साहित कर सकता है। सवाल उठाते हुए शंकर कहते हैं, क्या सरकार भारत में निवेश के लिए विदेशी धन की ऑनशोरिंग पर जोर दे रही है?
मुंबई की वीसी फर्म यूनिकॉर्न इंडिया वेंचर्स के मैनेजिंग पार्टनर अनिल जोशी कहते हैं, विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय स्टार्टअप में निवेश अब कम आकर्षक होगा, क्योंकि यह फेयर प्राइस से ऊपर के प्रीमियम पर एंजेल टैक्स को आकर्षित करेगा। जोशी के मुताबिक, स्टार्टअप्स को उनकी भविष्य की क्षमता के आधार पर महत्व दिया जाता है। निवेशक कंपनी की सफलता पर बेहतर रिटर्न की उम्मीद में प्रीमियम पर निवेश करने के लिए सहमत होते हैं।
जोशी कहते हैं, मैं इस मामले पर सरकार की ओर से और स्पष्टीकरण की जरूरत महसूस करता हूं। अन्यथा हम स्टार्टअप्स में एफडीआई को प्रतिबंधित कर देंगे, जो शुरुआती चरण की कंपनियों के लिए पूंजी का प्रमुख स्रोत है। प्रारंभिक चरण के निवेश काफी जोखिम भरे होते हैं। स्टार्टअप्स के लिए भारत या विदेश से धन जुटाने को और आसान बनाने की जरूरत है।
डी2सी ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस इकोसॉल होम के को-फाउंडर राहुल सिंह कहते हैं, केंद्रीय बजट में की गई घोषणाएं स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए सकारात्मक है। मैं स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम के तहत 283.5 करोड़ रुपये और फंड ऑफ फंड्स फॉर स्टार्टअप के लिए 1,000 करोड़ रुपये के आवंटन का स्वागत करता हूं। लेकिन एंजेल टैक्स स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के लिए चुनौती पेश कर सकता है। इससे भारतीय स्टार्टअप्स के लिए मुकदमेबाजी का जोखिम भी बढ़ जाता है, क्योंकि कई स्टार्टअप्स वैश्विक निवेशकों से धन जुटा रहे हैं।
इस बीच, एंजेल टैक्स के मसले को लेकर सरकार की ओर से भी सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के चेयरमैन नितिन गुप्ता ने कहा कि छूट प्राप्त स्टार्टअप के लिए कुछ भी नहीं बदला है। कानून के तहत कुछ बदलाव किए गए हैं, जो स्टार्टअप्स को उक्त टैक्स से छूट देते हैं। इसके बावजूद यदि उनकी (स्टार्टअप) कोई वास्तविक चिंता है, तो उस पर गौर किया जाएगा।