बजट में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के हो सकते हैं उपाय, अभी 60% कंपोनेंट का होता है आयात
इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने बजट में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है। इसका कहना है कि 2026 तक 300 अरब डॉलर और 2030 तक 500 अरब डॉलर के उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है। विभिन्न सेगमेंट में असेंबलिंग गतिविधियां काफी बढ़ी हैं लेकिन अब भी 60% से अधिक कंपोनेंट आयात किए जाते हैं। ज्यादा आयात चीन से ही होता है।
एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, खास कर मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग में अच्छी तरक्की हासिल की है। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) जैसे कदमों से पिछले 10 वर्षों में भारत में मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग 20 गुना से अधिक बढ़ी है। भारत में बिकने वाले 97% फोन देश में ही बनते हैं, जबकि एक-चौथाई से ज्यादा फोन का निर्यात होता है। दो सौ से ज्यादा कंपनियों के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है। इसके बावजूद अभी तक यहां इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट ईकोसिस्टम नहीं बन पाया है। ईकोसिस्टम विकसित करने के मकसद से बजट में सब-असेंबली और कंपोनेंट के लिए 35 से 40 हजार करोड़ रुपये की अलग पीएलआई स्कीम घोषित की जा सकती है।
दरअसल, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट ईकोसिस्टम के लगभग 90% हिस्से पर चीन का नियंत्रण है। चीन हर साल लगभग 900 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट का निर्यात करता है, जबकि भारत का निर्यात 15 अरब डॉलर के आसपास है। हालांकि पिछले एक दशक में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात दोनों में खासी बढ़ोतरी हुई है। उद्योग संगठन इंडियन सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) के अनुसार, 2014-15 में देश में 18,900 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन बने थे, यह पिछले साल 4.1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस दौरान निर्यात भी 1556 करोड़ से बढ़ कर 1.2 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
आयात पर निर्भरता कम करना जरूरी
इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ELCINA) ने बजट में इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है। इसका कहना है कि 2026 तक 300 अरब डॉलर और 2030 तक 500 अरब डॉलर के उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह जरूरी है। विभिन्न सेगमेंट में असेंबलिंग गतिविधियां काफी बढ़ी हैं, लेकिन अब भी 60% से अधिक कंपोनेंट आयात किए जाते हैं। ज्यादा आयात चीन से ही होता है।
चीन पर निर्भरता कम करने के लिए लोकल इनपुट बढ़ाना जरूरी है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च एंड इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) ने भी एक विश्लेषण में लिखा है कि इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में ‘पहले ग्लोबलाइज फिर लोकलाइज’ का तरीका अधिक कामयाब रहा है। चीन और वियतनाम में ऐसा देख चुके हैं।
उद्योग चैंबर सीआईआई का कहना है कि ग्रीन एनर्जी की दिशा में बढ़ने के लिए अहम खनिजों की उपलब्धता बहुत जरूरी है। रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और अन्य एडवांस मैन्युफैक्चरिंग में तो इसका काफी महत्व है। लेकिन इन खनिजों के मामले में भारत काफी हद तक आयात पर निर्भर है। वह भी चीन पर। उदाहरण के लिए रेयर अर्थ मिनरल में भारत अपनी 90% जरूरत चीन से आयात के जरिए पूरी करता है।
आयात शुल्क कम करने की जरूरत
घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए मोबाइल हैंडसेट और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की मांग आयात शुल्क का ढांचा तार्किक बनाने और मोबाइल फोन के कंपोनेंट या सब-असेंबली पर धीरे-धीरे ड्यूटी कम करने की है। इससे ग्लोबल वैल्यू चेन वाली कंपनियां भारत के प्रति आकर्षित होंगी और यहां बड़े पैमाने पर उत्पादन भी करेंगी। इससे कम आयात शुल्क वाले चीन और वियतनाम जैसे देशों से मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी।
एल्सिना के प्रेसिडेंट और डिक्सन टेक्नोलॉजीज के सीईओ अतुल लाल का कहना है, “हमारा फोकस ज्यादा क्षमता वाले कंपोनेंट और मॉड्यूल पर है, ताकि ग्लोबल वैल्यू चेन में भारत की स्थिति मजबूत हो सके। इससे मैन्युफैक्चरिंग में टिकाऊ ग्रोथ होगी तथा बदलती वैश्विक परिस्थितियों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ेगी।”
डेकी इलेक्ट्रॉनिक्स के एमडी और एल्सिना के पूर्व प्रेसिडेंट विनोद शर्मा बड़ी कंपनियों के साथ मझोली और छोटी कंपनियों के निवेश को भी जरूरी बताते हैं। इसके लिए उनका सुझाव इन्सेंटिव का है। उनका कहना है, “वैल्यू एडेड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग की चुनौतियों से निपटने के लिए यह इन्सेंटिव जरूरी है। यह सिर्फ आर्थिक चुनौती नहीं, बल्कि देश के लिए रणनीतिक खतरा भी है। इसलिए उम्मीद है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय तथा वित्त मंत्रालय से हमें पूरा सहयोग मिलेगा।”
आरएंडडी और ट्रेंड मैनपॉवर पर निवेश बढ़ाने के उपाय चाहिए
इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (IESA) के अध्यक्ष अशोक चंडोक कहते हैं, देश में सेमीकंडक्टर की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए घरेलू सप्लाई चेन की क्वालिटी में काफी सुधार की जरूरत है। हमें आरएंडडी और ट्रेंड मैनपॉवर पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है। बजट में इन्हें बढ़ावा देने वाले कदमों की अपेक्षा है। इसके अलावा, लागत में कमी लाने के लिए नेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स मिशन के तहत आने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स पुर्जों पर आयात शुल्क तीन साल के लिए शून्य करने की आवश्यकता है। अभी कोई भी कलपुर्जा कस्टम से क्लियर होने में तीन दिन का समय लग जाता है, इसे घटाकर एक दिन करना चाहिए, जिससे उत्पादन में तेजी आ सके।
आईसीईए का कहना है कि इनपुट पर टैरिफ कम करने से भारत 2026-27 तक चीन और वियतनाम के बराबर आ सकता है। इससे न सिर्फ भारतीय इंडस्ट्री प्रतिस्पर्धी होगी, बल्कि उत्पादन और निर्यात बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। एसोसिएशन ने सीधी वित्तीय मदद या पीएलआई के तहत 40 से 50 हजार करोड़ रुपये के इन्सेंटिव की मांग की है।
आईसीईए ने सात देशों के इनपुट टैरिफ की स्टडी के आधार पर बताया है कि प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत में आयात शुल्क ज्यादा है। इससे भारतीय इंडस्ट्री की प्रतिस्पर्धी क्षमता कम होती है। यह ग्लोबल वैल्यू चेन में शामिल होने में भी बाधक है। इस कारण विदेशी वैल्यू चेन भी भारत आने से कतराते हैं। स्केल और एफडीआई हासिल करने के लिए प्रतिस्पर्धा की क्षमता जरूरी है। इससे घरेलू वैल्यू एडिशन के साथ रोजगार का भी सृजन होगा।
आईसीईए की इसी साल जून की स्टडी से पता चलता है कि इनपुट पर भारत का औसत एमएफएन टैरिफ 7.4% है, जबकि चीन में यह शून्य और वियतनाम में 0.7% है। चीन में सबसे ज्यादा एमएफएन टैरिफ 10% और वियतनाम में 6.7% है, जबकि भारत में यह 20% तक है। वियतनाम में 97% और चीन में 56% टैरिफ लाइन पर शुल्क 0-5% है। भारत में चीन की तुलना में 84% और वियतनाम की तुलना में 98% वस्तुओं पर टैरिफ अधिक है।
आईसीईए के चेयरमैन पंकज मोहिंद्रू कहते हैं, “मोबाइल फोन उत्पादन और निर्यात में तेज बढ़ोतरी के लिए जरूरी है कि हमारा टैरिफ भी चीन और वियतनाम के बराबर हो। मौजूदा टैरिफ से भारत में मैन्युफैक्चरिंग की लागत 7%-7.5% बढ़ जाती है। इससे स्थानीय ईकोसिस्टम का विकास, निर्यात और रोजगार सृजन सब प्रभावित हो रहे हैं।”
एल्सिना का आकलन है कि भारत में वर्ष 2026 तक इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट और मॉड्यूल की मांग 180 अरब डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर की हो जाएगी। तेजी से बढ़ती इस मांग को देखते हुए घरेलू मैन्युफैक्चरिंग क्षमता भी बढ़ाने की जरूरत है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक मांग तथा मौजूदा उत्पादन के बीच 248 अरब डॉलर का अंतर रहेगा। इसका कहना है कि इसकी सिफारिशों पर अमल होने से वर्ष 2030 तक यह अंतर 100 अरब डॉलर रह जाएगा। इन कदमों से 2026 तक 10 लाख और 2030 तक 50 लाख अतिरिक्त रोजगार का सृजन होगा।
आईसीईए के अनुसार आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिहाज से इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग एक महत्वपूर्ण सेक्टर बन गया है। विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात हब बनने के लिए ग्लोबल वैल्यू चेन को आकर्षित करना जरूरी है। भारतीय कंपनियां समय पर डिलीवरी सुनिश्चित कर सकें, इसके लिए विश्वस्तरीय फैक्ट्रियां और वेयरहाउस होना भी जरूरी है।
आईसीईए के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत में रिकॉर्ड 115 अरब डॉलर की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हुई। इसमें से 29.1 अरब डॉलर का निर्यात किया गया और इलेक्ट्रॉनिक्स पांचवीं सबसे बड़ी निर्यात कैटेगरी बनी। इस निर्यात में मोबाइल फोन के हिस्सेदारी 54% थी। पिछले साल 51 अरब डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात किया गया। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत में मोबाइल फोन का उत्पादन 21 गुना और निर्यात 81 गुना बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में आयात पर निर्भरता 78% थी, जबकि 2023-24 में सिर्फ देश में बिकने वाले सिर्फ 3% फोन आयातित थे।
ग्लोबल कंसल्टेंसी ईवाई का आकलन है कि घरेलू मांग और निर्यात में प्रतिस्पर्धी होने के कारण एक दशक में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का पावरहाउस बन जाएगा। इसमें 2016-17 से 2021-22 तक घरेलू उत्पादन दोगुना हुआ है और 2026-27 तक हर साल औसतन 24% बढ़ने की संभावना है। ईवाई के अनुसार भारत में बढ़ती इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री का एक प्रमुख स्तंभ इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सर्विसेज (ईएमएस) है। इसमें डिजाइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग, टेस्टिंग, कंपोनेंट की सर्विसिंग और असेंबलिंग शामिल हैं। कंसल्टेंसी फर्म पीडब्लूसी ने एक रिसर्च रिपोर्ट में लिखा है कि ग्लोबल ईएमएस बाजार हर साल औसतन 5.4% बढ़ते हुए 2026 में 1145 अरब डॉलर का हो जाएगा।
कंज्यूमर ड्यूरेबल की लागत कम करने के उपाय हों
प्रमुख कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी गोदरेज अप्लायंसेज के बिजनेस हेड और एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट कमल नंदी के अनुसार, “इनपुट की लागत कम करने, कम बिजली खर्च करने वाले प्रोडक्ट के लिए इनोवेशन को प्रोत्साहन तथा अप्लायंसेज का पेनिट्रेशन बढ़ाने के लिए टैक्स दर घटाने जैसे उपायों से कंज्यूमर ड्यूरेबल इंडस्ट्री को मदद मिलेगी। अनेक शहरों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच जाने के कारण एयरकंडीशनर जरूरी हो गए हैं। जीएसटी कम करने से एसी सस्ते होंगे तथा अनेक भारतीयों की जीवनशैली बेहतर होगी। हमें पर्यावरण पर अप्लायंसेज के प्रभाव को भी देखना है। इसलिए हमारा सुझाव है कि 5-स्टार रेटिंग वाले प्रोडक्ट पर टैक्स की दर कम रखी जाए।”
पीडब्लूसी के अनुसार, भारत का कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार 2025 में 21.18 अरब डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। अभी देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में मोबाइल फोन, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो इलेक्ट्रॉनिक्स आईटी हार्डवेयर का हिस्सा 80% है।
पंकज मोहिंद्रू कहते हैं, “हमारा लक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में इस वृद्धि को और गति देना है। उचित फोकस वाली पॉलिसी, वित्तीय मदद, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी टैक्स व्यवस्था और एडवांस स्किल के बूते भारत ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में अग्रणी बन सकता है।”
एल्सिना के महासचिव राजू गोयल का कहना है कि सरकार को कंपोनेंट, पार्ट्स, मॉड्यूल तथा वैल्यू एडेड मैन्युफैक्चरिंग पर अधिक जोर देना चाहिए। अभी तक असेंबलिंग में हासिल ग्रोथ आगे तभी बनी रहेगी जब हम टेक्नोलॉजी अधिग्रहण, इनोवेशन तथा प्रोडक्ट डिजाइन के जरिए ग्लोबल वैल्यू चेन में खुद को शामिल करेंगे। यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन अगर हमने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आयात पर हमारी निर्भरता बनी रहेगी और वह हमारी कमजोरी होगी।