प्राइम टीम, नई दिल्ली। मोदी 3.0 सरकार के पहले पूर्ण बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2047 तक भारत को विकसित बनाने का रोडमैप प्रस्तुत कर सकती हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में भी इसके संकेत दिए थे। इस लिहाज से बजट 2024-25 में आर्थिक विकास को गति देने के उपायों की घोषणा हो सकती है। नई इनकम टैक्स व्यवस्था में बेसिक छूट और स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाई जा सकती है। मैन्युफैक्चरिंग में नौकरी सृजन के लिए टेक्सटाइल, फुटवियर, खिलौना जैसे सेगमेंट के लिए कुछ घोषणाएं संभव हैं। रोजगार और ज्यादा वैल्यू एडिशन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम का दायरा बढ़ाया जा सकता है। श्रम सघन मैन्युफैक्चरिंग, एमएसएमई को कर्ज, ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर के विस्तार के जरिए सर्विसेज निर्यात में वृद्धि और कीमतों में उतार-चढ़ाव नियंत्रित करने के लिए घरेलू फूड सप्लाई चेन तथा इन्वेंटरी मैनेजमेंट जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। किसानों की आय बढ़ाने के उपायों के साथ ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए भी घोषणाएं संभव हैं। यहां हम बता रहे हैं कि बजट से किस सेक्टर को क्या उम्मीदें हैं और क्या संभव है। नीचे दी गई हेडलाइन को क्लिक कर आप पूरी खबर पढ़ सकते हैं।

टैक्सेशनः एक लाख रुपये हो सकता है स्टैंडर्ड डिडक्शन

बीते कुछ बजट में लगातार हाशिए पर रहने वाले मध्यवर्ग को इस बजट से काफी उम्मीदें हैं और इसमें सबसे बड़ी उम्मीद इनकम टैक्स में राहत मिलने की है। हालांकि ओल्ड टैक्स रिजीम में सरकार स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ाने के अलावा शायद ही कोई छूट दे। स्टैंडर्ड डिडक्शन में छूट को 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये किया जा सकता है। यह सुविधा नई टैक्स रिजीम में भी मिल सकती है। फिलहाल ग्राहकों के लिए एन्युटी इनकम पूरी तरह टैक्सेबल है, जिसमें मूलधन और ब्याज दोनों शामिल हैं। यह लोगों को इन प्रोडक्ट्स में निवेश करने से हतोत्साहित करता है। इसमें कुछ राहत संभव है। न्यू टैक्स रिजीम में धारा 80सीसीडी(1बी) के तहत छूट की सुविधा भी दी जा सकती है। इस धारा के तहत न्यू पेंशन स्कीम (NPS) में निवेश करने पर 50 हजार रुपये की अतिरिक्त कटौती मिलती है।

ऑटो इंडस्ट्री को फेम-3 और ज्यादा स्क्रैपिंग इंसेंटिव की उम्मीद

ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड &) इलेक्ट्रिक व्हीकल (FAME-3) योजना के ऐलान की उम्मीद है। इस योजना का उद्देश्य लागत को कम करके ईवी की मांग को बढ़ावा देने के साथ ही प्रमुख घटकों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना होगा। बजट में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए सब्सिडी और टैक्स बेनेफिट जैसे विशिष्ट प्रावधानों की भी उम्मीद है। वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने सरकार की वाहन स्क्रैपिंग के लिए ज्यादा प्रोत्साहन की मांग की है। उद्योग संगठन कॉमर्शियल गाड़ियों खासकर ट्रकों और बसों के लिए अधिक प्रोत्साहन की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्तमान इन्सेंटिव इतना नहीं है कि वह कॉमर्शियल गाड़ियों की स्क्रैपिंग के लिए प्रोत्साहित कर सके, जबकि यही वाहन अधिकांश उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।

कृषिः रिसर्च और किसानों की आय बढ़ाने पर रह सकता है फोकस

कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या किसानों की आमदनी बढ़ाने की है। दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों की चुनौतियां बढ़ रही हैं। कृषि में आय बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक अपनाने, उन्नत बीजों का इस्तेमाल करने और उर्वरकों का सटीक प्रयोग करने की जरूरत है। पैदावार बढ़ाने के लिए बजट में बीजों की नई किस्में तैयार करने, बेहतर सिंचाई व्यवस्था अपनाने, उपज की बेहतर मार्केटिंग, किसानों को बाजार से सीधे जोड़ने जैसे उपायों पर जोर दिया जा सकता है। इन सबके साथ ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए भी घोषणा संभव है। हाल के दिनों में किसानों की प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी रही है। सरकार दलहन और तिलहन जैसी फसलों के लिए इसका ऐलान कर सकती है।

निर्यात के लिए बढ़ सकता है आरएंडडी पर खर्च

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में निर्यात बढ़ाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। सबसे प्रमुख कदम रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) पर खर्च का है, जिसमें वृद्धि संभव है। इसके अलावा भारत की अपनी बड़ी शिपिंग लाइन विकसित करने का रोडमैप भी तैयार किया जा रहा है। इससे विदेशी मुद्रा की काफी बचत होगी। आरएंडडी में जोखिम अधिक होता है और इसके नतीजे मिलने में भी काफी समय लगता है। इसलिए अनेक देशों में आरएंडडी को इंसेंटिव दिया जाता है। लेकिन भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट को इंसेंटिवाइज नहीं किया जाता। पहले आरएंडडी पर 200% टैक्स डिडक्शन की सुविधा थी। उसे कम करके पहले 150% और फिर 100% कर दिया गया।

एमएसएमईः रोजगार बढ़ाने के लिए उठाए जा सकते हैं कदम

देश में रोजगार देने में लघु, छोटे और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की अहम भूमिका है। कृषि के बाद सबसे अधिक लोग इसी सेक्टर में काम करते हैं। इसलिए बजट में एमएसएमई के लिए कुछ घोषणाएं संभव हैं। छोटे-मझोले उपक्रमों को कम ब्याज पर वर्किंग कैपिटल कर्ज, क्रेडिट गारंटी, रिफाइनेंस जैसी सहूलियतें दी या बढ़ाई जा सकती हैं। एमएसएमई को वास्तव में मिलने वाले कर्ज और उनकी जरूरत के बीच 20 से 25 लाख करोड़ रुपये का अंतर है। इसलिए कर्ज लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा सकती है। बजट में स्पेशल मेंशन एकाउंट (एसएमए) के नियमों में भी ढील दिए जाने की संभावना है। एमएसएमई के लिए रेटिंग की प्रक्रिया में भी संशोधन किया जा सकता है।

इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए कई ऐलान संभव

विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार की प्राथमिकताओं में हाउसिंग, रेल, सड़क, जल, हवाई मार्ग के साथ-साथ डिजिटल इंफ्रा शामिल हैं। केंद्र की विकसित भारत योजना के केंद्र में गति शक्ति योजना है। इसके तहत देश में एक मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने का काम किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इस बजट में देरी से चल रहे प्रोजेक्टों में तेजी लाने पर जोर दे सकती है। वहीं अफोर्डेबल हाउसिंग के साथ एग्री इंफास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिए बड़े ऐलान किए जा सकते हैं। ग्रीन एनर्जी को प्रोत्साहित करने के लिए इसका इंफास्ट्रक्चर विकसित करने पर जोर दिया जा सकता है।

रियल एस्टेटः लांग टर्म कैपिटल गेन के लिए 12 माह हो सकती है होल्डिंग अवधि

रियल एस्टेट सेक्टर इकोनॉमी को कई तरीके से गति देने की क्षमता रखता है। कंस्ट्रक्शन में बड़ी संख्या में लोगों को काम तो मिलता ही है, सीमेंट और स्टील के साथ कंज्यूमर गुड्स इंडस्ट्री में भी मांग बढ़ती है। हाल में मिड और प्रीमियम रेंज के घरों की बिक्री तो खूब बढ़ी है, लेकिन अफोर्डेबल सेगमेंट में मांग कम है। बजट में इस सेगमेंट के लिए घोषणा संभव है। कैपिटल गेन की परिभाषा में संशोधन करते हुए होल्डिंग अवधि 24 महीने से घटा कर 12 महीने की जा सकती है। ज्यादातर शहरों में 45 लाख रुपये में 60 वर्ग मीटर कार्पेट एरिया (नॉन-मेट्रो में 90 वर्ग मीटर) वाला घर मिलना मुश्किल हो गया है। इसलिए अफोर्डेबल हाउसिंग की परिभाषा में बदलाव संभव है।

शिक्षाः डिजिटल इनक्लूजन को प्रभावी बनाने के उपाय संभव

बीते कुछ सालों में शिक्षा बजट में सुधार हुआ है। इस बजट में ध्यान इस बात पर होगा कि कैसे कुशल जनशक्ति को अधिक रोजगार मुहैया कराया जाए। साथ ही देश भर की शिक्षा व्यवस्था में आए बदलाव से लेकर डिजिटल शिक्षा को तेजी से अपनाने के चलते हमारे नौजवानों की शिक्षा के स्तर में भी इजाफा हुआ है। तकनीक छात्रों को पूरी क्षमता से पढ़ाई करने के लिए सशक्त बना रही है। वहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने जॉब मार्केट में हलचल मचा दी है। ऐसे में डिजिटल इनक्लूजन और तकनीक को कैसे प्रभावी बनाया जाए, इस बारे में भी घोषणा होने की उम्मीद है। यही नहीं शिक्षा सेक्टर में जीएसटी में भी राहत देने की इंडस्ट्री की मांग है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेजों और स्कूल का बढ़ावा देने की भी बेहद आवश्यकता है।

इलेक्ट्रॉनिक्सः कंपोनेंट इकोसिस्टम के लिए अलग पीएलआई संभव

भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, खास कर मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग में अच्छी तरक्की हासिल की है। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) जैसे कदमों से पिछले 10 वर्षों में भारत में मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग 20 गुना से अधिक बढ़ी है। भारत में बिकने वाले 97% फोन देश में ही बनते हैं, जबकि एक-चौथाई से ज्यादा फोन का निर्यात होता है। दो सौ से ज्यादा कंपनियों के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है। इसके बावजूद अभी तक यहां इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट ईकोसिस्टम नहीं बन पाया है। ईकोसिस्टम विकसित करने के मकसद से बजट में सब-असेंबली और कंपोनेंट के लिए 35 से 40 हजार करोड़ रुपये की अलग पीएलआई स्कीम घोषित की जा सकती है।

अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के लिए स्टार्टअप पर हो सकता है फोकस

फरवरी में पेश अंतरिम बजट में स्टार्टअप के लिए कई घोषणाएं की गई थीं। कर छूट के लिए स्टार्टअप गठित करने की अवधि 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दी गई थी। उससे पहले के बजटों में भी स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए कई कदम उठाए गए। इसके बावजूद पिछले दो वर्षों में नए स्टार्टअप का गठन धीमा हुआ है, उनमें निवेश में कमी आई है और अनेक स्टार्टअप ने बड़े पैमाने पर छंटनी भी की है। दरअसल शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि से लेकर इंडस्ट्री के हर सेक्टर में स्टार्टअप का महत्व बढ़ता जा रहा है। ये नए-नए सॉल्यूशन लेकर आ रहे हैं जिनसे उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल रही है और लागत भी घट रही है। इन्हें बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों ने फंडिंग की कमी दूर करने, टैक्स में रियायत देने, स्किल डेवलपमेंट और आरएंडडी को बढ़ावा देने जैसे सुझाव दिए हैं। स्पेस सेक्टर में भारतीय स्टार्टअप के बढ़ते कदम को देखते हुए कंपोनेंट पर जीएसटी खत्म करने और अलग प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) की सिफारिश भी की गई है।