एस.के. सिंह, नई दिल्ली। बजट से पहले एक आशंका थी कि गठबंधन के सहयोगी दलों के दबाव में कुछ ऐसी घोषणाएं हो सकती हैं, जिनसे सरकार की राजकोषीय स्थिति कमजोर होगी। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में दोनों का ख्याल रखा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और कृषि जैसे क्षेत्रों के लिए बड़े आवंटन के बावजूद राजकोषीय घाटा इस वर्ष 4.9% और अगले वर्ष 4.5% पर लाने का लक्ष्य है। लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राजस्व प्राप्ति का इस्तेमाल घाटा कम करने में किया गया है। कुल 48.20 लाख करोड़ रुपये के बजट के केंद्र में रोजगार और स्किल है। श्रम सघन उत्पादन पर जोर, रोजगार से जुड़े इन्सेंटिव, संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की कोशिश जैसे कदम भारत के डेमोग्राफिक डिविडेंड को भुनाने के प्रयास हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह दीर्घकाल का बजट है, जिसमें खपत बढ़ाने के कुछ तात्कालिक उपाय भी किए गए हैं। वे इसे समावेशी भी मानते हैं जिसमें कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में संतुलन बनाने की कोशिश की गई है।

बजट में सबसे अधिक 5.44 लाख करोड़ रुपये का आवंटन ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए किया गया है। यह पिछले साल 5.25 लाख करोड़ था। रक्षा बजट करीब एक हजार करोड़ रुपये कम करके 4.54 लाख करोड़ किया गया है। खर्च के लिहाज से तीसरा सबसे बड़ा मद ग्रामीण विकास है, जिसके लिए आवंटन 2.38 लाख करोड़ से बढ़ाकर 2.65 लाख करोड़ रुपये किया गया है।

प्रमुख योजनाओं की बात करें तो पीएम गरीब कल्याण के लिए सबसे अधिक 2.05 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। हालांकि यह पिछले साल से करीब सात हजार करोड़ रुपये कम है। एनएचएआई के लिए 1.68 लाख करोड़ और सड़क निर्माण के लिए 1.15 लाख करोड़ हैं। मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ और पीएम किसान के लिए 60,000 करोड़ रुपये का प्रावधान पिछले साल के बराबर है। लेकिन पीएम आवास योजना के लिए आवंटित रकम काफी बढ़ाई गई है। ग्रामीण योजना के लिए आवंटन 32,000 करोड़ से बढ़ाकर 54,500 करोड़ और शहरी के लिए 22,103 से बढ़ाकर 30,171 करोड़ रुपये किया गया है।

पीरामल समूह के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी जागरण प्राइम से कहते हैं, “वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने सातवें बजट में लोक-लुभावन और राजकोषीय मजबूती के बीच अच्छा संतुलन बनाया है…। बजट में कुल 48.2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान है जो फरवरी 2024 के अंतरिम बजट की तुलना में लगभग 50,000 करोड़ रुपये अधिक है। यह 50,000 करोड़ रुपये की पूरी रकम राजस्व खर्च में लगाई गई है। यह 1. 2 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त राजस्व आय के कारण संभव हो सका है। यह अतिरिक्त आय आरबीआई के डिविडेंड, सार्वजनिक कंपनियों की प्रॉफिट शेयरिंग और ब्याज से होने वाली सरकार की आय के कारण हुई है। यहां ध्यान रखने वाली बात है कि सरकार ने 1.2 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि को पूरा खर्च नहीं किया। यह बात सरकार के राजकोषीय अनुशासन को दिखाती है।”

आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के ईडी एवं सीआईओ एस. नरेन, कहते हैं, “सरकार ने मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता और विकास का वर्षों से बेहतरीन प्रबंधन किया है। इसी का नतीजा है कि राजकोषीय घाटा, चालू खाते का घाटा, मजबूत फाइनेंशियल सिस्टम, नियंत्रित महंगाई और ग्रोथ के आंकड़े जैसे भारत के मैक्रोइकोनॉमिक इंडिकेटर बेहतरीन हैं। बजट इस प्रगति को आगे बढ़ाता है। जरूरी निवेश के लिए बड़ी रकम के आवंटन के बावजूद राजकोषीय घाटा कम हो रहा है।”

स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (इंडिया) में वेल्थ सॉल्यूशंस के हेड सौरभ जैन का मानना है कि वित्त मंत्री ने बजट में वित्तीय संकट कम करने और विकास का समर्थन करने के बीच एक संयमित संतुलन स्थापित किया है। जीडीपी के मुकाबले राजकोषीय घाटा अंतरिम बजट में 5.1% था जिसे घटाकर 4.9% किया गया है, जबकि ग्रॉस बारोइंग प्लान 14 लाख करोड़ पर स्थिर है। वित्त वर्ष 2026 तक घाटा 4.5% तक ले जाने की दिशा में भी सरकार ने गंभीरता दिखाई है।

हर साल 80 लाख रोजगार पैदा करने में मदद

एचडीएफसी बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट अभीक बरुआ के अनुसार, “बजट का मुख्य फोकस रोजगार और कौशल निर्माण जैसे विषय हैं। जनसांख्यिकीय लाभ को भुनाने के लिए सरकार के प्रयास श्रम प्रधान उत्पादन, कौशल विकास, औपचारिक रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में हैं। बजट में किए गए उपायों से हर साल 80 लाख रोजगार पैदा करने में मदद मिलेगी, जो आर्थिक सर्वेक्षण में निर्धारित रोजगार जरूरतों के अनुरूप है।” पहली बार काम करने वालों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और आयकर स्लैब में बदलाव से डिस्पोजेबल आय में वृद्धि होगी। इससे विशेष रूप से छोटे पैकेट वाली वस्तुओं की खपत बढ़ने की संभावना है।

बरुआ कहते हैं, “सरकार ने अपने कुछ सहयोगियों को आवंटन में वृद्धि के बावजूद पूंजीगत खर्च में कोई समझौता नहीं किया। राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.9% तक लाने की प्रतिबद्धता सकारात्मक है। पूंजीगत खर्च बरकरार रखने, रोजगार सृजन, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि और ग्रामीण विकास के लिए अधिक आवंटन जैसे कदम भी सकारात्मक साबित होने की संभावना है।”

क्रिसिल की प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट दीप्ति देशपांडे कहती हैं, “टैक्स और नॉन-टैक्स रेवेन्यू में वृद्धि का इस्तेमाल राजकोषीय घाटा कम करने, निवेश पर खर्च जारी रखने और जरूरतमंद सेगमेंट के लिए खर्च बढ़ाने में किया गया है। राजस्व खर्च बढ़ने के बावजूद खर्च की क्वालिटी को बरकरार रखा गया है।” दीप्ति के अनुसार, कम घाटा और नॉन-इन्फ्लेशनरी खर्च महंगाई के लिहाज से सकारात्मक हैं। मानसून सामान्य रहने के आसार हैं, इसलिए खुदरा महंगाई दर इस साल घटकर 4.5% रहने की उम्मीद है, जो पिछले साल 5.4% थी। हालांकि जीडीपी ग्रोथ का हमारा 6.8% का पुराना अनुमान बरकरार है।

यस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पान के मुताबिक, “अंतरिम बजट से तुलना करें तो सरकार बाजार से 12,000 करोड़ रुपये कम उधार लेगी। नेट ट्रेजरी बिल में भी एक लाख करोड़ रुपये की कमी की गई है। इससे बाजार में लिक्विडिटी बढ़ेगी और शॉर्ट टर्म के कर्ज पर ब्याज दरों में कमी आएगी। हालांकि लंबी अवधि के कर्ज पर ब्याज अभी पुराने स्तर पर ही रहेंगे।” पान कहते हैं, “आर्थिक सर्वेक्षण में टिकाऊ विकास के लिए जो दिशा बताई गई थी, बजट उसी ओर है। राजकोषीय मजबूती पर नजर रखने के साथ सरकार ने रोजगार बढ़ाने के भी कदम उठाए हैं- सिर्फ संख्या में नहीं, बल्कि क्वालिटी में भी।”

उद्योग चैंबर फिक्की फिक्की के प्रेसिडेंट डॉ. अनीश शाह के अनुसार, “राजकोषीय अनुशासन को बरकरार रखते हुए शॉर्ट टर्म में डिमांड बढ़ाने की कोशिश की गई है, साथ ही मीडियम और लांग टर्म में ग्रोथ पर फोकस किया गया है। बजट इस लिहाज से समावेशी है कि इसमें क्वालिटी रोजगार सृजन और स्किलिंग पर काफी जोर दिया गया है, साथ ही कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज के बीच संतुलन बनाया गया है।”

एमएसएमई के लिए टेक्नोलॉजी अपग्रेड करना आसान

बजट में एमएसएमई के लिए 100 करोड़ रुपये तक की मशीनरी खरीदने पर क्रेडिट गारंटी स्कीम की घोषणा की गई है। इसके लिए उन्हें न कोई कोलैटरल रखना पड़ेगा न किसी थर्ड पार्टी गारंटी की जरूरत पड़ेगी। यह छोटी-मझोली इकाइयों में टेक्नोलॉजी अपग्रेड करने के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम है। बैंक लोन के लिए क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से रेटिंग की व्यवस्था खत्म करने से भी इन उपक्रमों के लिए अच्छा है। ये एजेंसियां बड़ी कंपनियों के पैमाने पर ही इनकी रेटिंग करती हैं, जिससे उन्हें शायद ही कभी निवेश ग्रेड रेटिंग मिल पाती है। अब बैंकों को अपना रिस्क असेसमेंट मॉडल तैयार करना पड़ेगा।

स्पेशल मेंशन एकाउंट (एसएमए) कैटेगरी में आने वाली इकाइयों के लिए अलग फंड बनाने की घोषणा से उन कंपनियों को फायदा होगा जो बाहरी कारणों से संकट में फंसी हैं। मुद्रा लोन की सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने से भी अनेक लोगों को लाभ मिलेगा। एमएसएमई की संस्था फिस्मे ने अलग एमएसएमई बैंक की मांग की थी, जिसकी शाखा हर जिले में हो। बजट में सिडबी से तीन साल में सभी प्रमुख एमएसएमई क्लस्टर में नेटवर्क का विस्तार करने को कहा गया है। इस साल ऐसी 24 ब्रांच खोली जाएंगी। इससे 242 प्रमुख क्लस्टर में से 168 में सिडबी की शाखाएं हो जाएंगी।

एचडीएफसी बैंक की सब्सिडियरी एचडीबी फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ बिजनेस ऑफिसर कार्तिक श्रीनिवासन का कहना है, “वर्किंग कैपिटल की जरूरत पूरी करने, फूड इरैडिएशन यूनिट, क्वालिटी टेस्टिंग लैब और ई-कॉमर्स एक्सपोर्ट हब स्थापित करने जैसे कदमों से सरकार ने एमएसएमई के लिए मजबूत नींव रखी है। इन कदमों से इन इकाइयों को आगे बढ़ने और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा में मदद मिलेगी।”

श्रीनिवासन के अनुसार, व्यापक क्रेडिट गारंटी स्कीम और राज्यों को लंबी अवधि के लिए ब्याज-मुक्त कर्ज से एमएसएमई की वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी और इनोवेशन, रोजगार तथा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट के लिए राज्यों को प्रोत्साहन से ये फायदे और बढ़ेंगे और क्षेत्रीय विकास में संतुलन आएगा।

यस बैंक के इंद्रनील पान के अनुसार, क्रेडिट गारंटी से उन इकाइयों को भी लाभ होगा जो औपचारिक एकाउंटिंग सिस्टम से दूर हैं। छोटे बिजनेस की मदद के लिए मुद्रा लोन की सीमा भी बढ़ाई गई है।

क्लोथिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CMAI) के राहुल मेहता का मानना है कि रोजगार बढ़ाने के उपायों को देखते हुए बजट को इनोवेटिव कहा जा सकता है। वैसे तो बजट में घोषित उपाय सभी इंडस्ट्री के लिए हैं, लेकिन टेक्सटाइल और अपैरल इंडस्ट्री को इससे खास फायदा होगा क्योंकि यह इंडस्ट्री श्रम सघन है। एमएसएमई को बैंक कर्ज में मदद तथा विदेशी निवेश आसान बनाने के उपायों से भी इस इंडस्ट्री को लाभ होगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चरः 14 बड़े शहरों का विकास बदलेगा हालात

‘पूर्वोदय’ योजना को महत्वपूर्ण बताते हुए शहर व इंफ्रा विशेषज्ञ शैलेश पाठक जागरण प्राइम से कहते हैं, “‘विकास केंद्रों के रूप में शहर’ को भारत सरकार ने विशिष्ट भूमिका प्रदान की है। तीस लाख से ऊपर आबादी के 14 बड़े शहरों के लिए ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट (टीओडी) योजनाएं बनेंगी, जिसमें आवागमन तथा शहरी विकास नियम और भी आधुनिक किए जाएंगे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये 14 शहर भारत की जीडीपी में आधे से अधिक का योगदान देते हैं। मौजूदा शहरों के रचनात्मक ब्राउनफील्ड पुनर्विकास के लिए रूपरेखा बनेगी। भारत तभी विकसित होगा जब हमारे लोग गांवों से शहरों में जाकर अधिक आमदनी कमा सकेंगे। मेरा अनुमान है कि देश की शहरी जनसंख्या 2042 तक 50% का आंकड़ा पार कर लेगी। अमृत काल में भारत की एक प्रमुख चुनौती शहरों को भली-भांति बनाने और चलाने की रहेगी।”

स्टैंडर्ड चार्टर्ड के सौरभ जैन के अनुसार, निवेश-आधारित विकास के लिए पूंजीगत व्यय को 11.11 लाख करोड़ रुपये पर बनाए रखा गया है। इसमें बुनियादी ढांचा, रेलवे, हाउसिंग फॉर ऑल और नवीकरणीय ऊर्जा का विकास शामिल हैं। यह बजट भारत के तेज विकास को समर्थन देगा।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स में सीनियर डायरेक्टर और ट्रांसपोर्ट तथा लॉजिस्टिक्स के ग्लोबल हेड जगन्नारायण पद्मनाभन का कहना है, “लक्षित हस्तक्षेप के साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में राज्यों को फोकल प्वाइंट बनाना बजट की मुख्य थीम में एक है। शहरों और उनके संपूर्ण विकास पर फोकस बढ़ा है। इंडस्ट्रियल पार्क का विकास, शहरों को ग्रोथ हब बनाना, ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट स्कीम, शहरों का ब्राउनफील्ड डेवलपमेंट, पानी की आपूर्ति और साफ-सफाई इस संदर्भ में प्रमुख घोषणाएं हैं। संबंधित मंत्रालयों को आवंटन अंतरिम बजट के बराबर रखा गया है। आवंटित राशि को खर्च करना अहम होगा।”

रियल एस्टेटः अफोर्डेबल घरों की मांग बढ़ने की उम्मीद

रियल एस्टेट सेक्टर के नजरिए से देखें तो इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान अहम है। बेहतर इन्फ्रास्ट्र्कचर से इस सेक्टर को गति मिलेगी। प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं, “शहरों और गांवों में रोजगार बढ़ाने पर फोकस के नतीजे बेहतर रहे तो अफोर्डेबल घरों की मांग बढ़ेगी। महामारी के बाद इस सेगमेंट में डिमांड कम हुई है। मांग न सिर्फ सात बड़े शहरों में, बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों में भी होगी।”

पुरी के अनुसार, देश के सात प्रमुख शहरों में इस साल जनवरी-जून के दौरान जितने घर बिके, उनमें अफोर्डेबल श्रेणी (40 लाख रुपये से कम कीमत) के सिर्फ 19% थे। महामारी से पहले 2019 में इनका हिस्सा 38% था। मांग कम होने से इस सेगमेंट में सप्लाई भी 40% से घटकर 18% रह गई है।

बजट में पीएम आवास योजना शहरी 2.0 के तहत एक करोड़ अतिरिक्त घर बनाने का ऐलान किया गया है। इन घरों को बनाने में करीब 10 लाख रुपये का खर्च आएगा। हैदराबाद-बेंगलुरु कॉरिडोर और विशाखापत्तनम-चेन्नई कॉरिडोर के लिए आवंटन बढ़ने से उनके आसपास रियल एस्टेट में ग्रोथ आएगी। हालांकि पुरी यह भी मानते हैं कि व्यक्तिगत करदाताओं को मिली मामूली राहत घरों की मांग बढ़ाने के लिए काफी नहीं है।

एक अन्य प्रमुख प्रॉपर्टी कंसल्टेंट फर्म सीबीआरई भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और अफ्रीका के चेयरमैन और सीईओ अंशुमन मैगजीन रियल एस्टेट और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में इंडस्ट्रियल पार्क, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, पूर्वोदय योजना, पीएम आवास योजना, शहरी आवास, शहरों के ट्रांजिट ओरिएंटेड विकास को महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका कहना है कि बजट प्रस्ताव के अनुसार अगर राज्य स्टांप ड्यूटी कम करते हैं तो खास तौर से महिलाओं के लिए प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन सस्ता होगा। रेंटल हाउसिंग का बाजार संगठित होने का फायदा अनेक शहरों को मिलेगा। ट्रांजिट ओरिएंटेड विकास से शहरों को तो फायदा होगा ही, इससे बड़ी संख्या में रोजगार भी निकलेंगे।

क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स में डायरेक्टर रिसर्च सेहुल भट्ट कहते हैं, “पीएम आवास योजना- शहरी के तहत अगले पांच वर्षों में एक करोड़ अफोर्डेबल घर बनाए जाएंगे। प्रति घर 2.2 लाख रुपये की मदद पिछले आठ वर्षों में दी गई 1.5 लाख की तुलना में ज्यादा है। शहरी योजना के लिए बजट आवंटन 36% और ग्रामीण के लिए 70% बढ़ा है।”

भट्ट के अनुसार, पीएम आवास योजना शहरी और ग्रामीण के तहत तीन करोड़ नए घर बनाने का प्रस्ताव है। इससे मौजूदा वित्त वर्ष में दो करोड़ टन सीमेंट की अतिरिक्त मांग निकलने की उम्मीद है। सीमेंट की 55-60% मांग हाउसिंग सेक्टर से ही निकलती है। पीएम ग्राम सड़क योजना के चौथे चरण में 25,000 गांवों को ऑल-वेदर सड़क से जोड़ने का प्रस्ताव है। इससे भी सीमेंट की काफी मांग बढ़ेगी।

इकोनॉमी में खपत बढ़ाने के उपाय

बजट में कृषि से संबंधित घोषणाओं, नई टैक्स व्यवस्था में स्लैब में बदलाव और स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ने से लोगों की डिस्पोजेबल आय बढ़ेगी। इससे इकोनॉमी में खपत में भी इजाफा होने की उम्मीद है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रमुख कुमार राजगोपालन कहते हैं, “इन कदमों से खपत बढ़ेगी जिसका फायदा पूरी इकोनॉमी को मिलेगा। सोना, चांदी, हीरा, मोबाइल फोन पर आयात शुल्क कटौती से इन सेक्टर को भी फायदा मिलेगा। खास तौर से त्योहारी सीजन में बिक्री बढ़ने की उम्मीद है।” स्किलिंग योजना का स्वागत करते हुए राजगोपालन ने कहा कि इससे रिटेल सेक्टर को तैयार वर्कफोर्स मिलेगी। इंडस्ट्री के साथ मिलकर कामकाजी महिलाओं के लिए होस्टल और क्रैच बनाने से रिटेल सेक्टर की महिलाओं को मदद मिलेगी।

स्टार्टअप के लिए शुरुआती निवेश जुटाना आसान

स्टार्टअप की मांग पूरी करते हुए बजट में एंजेल टैक्स खत्म करने की घोषणा की गई है। स्टार्टअप्स को कानूनी सलाह देने वाली फर्म लीगलविज.इन के संस्थापक श्रृजय शेठ के अनुसार, “इससे स्टार्टअप को शुरुआती चरण में निवेश आकर्षित करने में आसानी होगी। निवेशक फेयर मार्केट वैल्यू से अधिक कीमत पर फंडिंग कर सकेंगे, क्योंकि स्टार्टअप की वैल्यूएशन उसकी भावी क्षमता के आधार पर आंकी जाती है, मौजूदा फाइनेंशियल या नेट एसेट के आधार पर नहीं।” शेठ के मुताबिक विदेशी कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर 40% से घटाकर 35% करना उन कंपनियों के लिए इन्सेंटिव है। वे भारत की ग्रोथ स्टोरी में योगदान कर सकेंगी। इससे भारत में विदेशी पूंजी निवेश बढ़ेगा और अधिक संख्या में रोजगार भी निकलेंगे।