एस.के. सिंह/स्कंद विवेक धर, नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी। वित्त वर्ष 2024-25 के इस पूर्ण बजट में रोजगार बढ़ाने के उपायों पर जोर दिए जाने की संभावना है। देश में रोजगार देने में लघु, छोटे और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की अहम भूमिका है। कृषि के बाद सबसे अधिक लोग इसी सेक्टर में काम करते हैं। इसलिए बजट में एमएसएमई के लिए कुछ घोषणाएं संभव हैं। छोटे-मझोले उपक्रमों को कम ब्याज पर वर्किंग कैपिटल कर्ज, क्रेडिट गारंटी, रिफाइनेंस जैसी सहूलियतें दी या बढ़ाई जा सकती हैं। एमएसएमई भारत की जीडीपी में 30% और मैन्युफैक्चरिंग में 45% योगदान करते हैं।

फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (फिस्मे) के सेक्रेटरी जनरल अनिल भारद्वाज का कहना है कि रोजगार बढ़ाने वाले सेक्टर में खास तौर से एमएसएमई के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) दिया जाना चाहिए। अभी पीएलआई चुनिंदा प्रोडक्ट के लिए है, जिसे फिस्मे ने रोजगार से जोड़ने का सुझाव दिया है। इसका कहना है कि प्रति यूनिट निवेश पर अधिक रोजगार देने वाले सेक्टर को इसके लिए चुना जाना चाहिए।

चैंबर ऑफ इंडियन एमएसएमई के प्रेसिडेंट मुकेश मोहन गुप्ता के अनुसार, जीएसटी रजिस्ट्रेशन में एकरूपता की चुनौती है। कुल 6.3 करोड़ एमएसएमई में से उद्यम पोर्टल पर चार करोड़ रजिस्टर्ड हैं। उनमें भी सिर्फ 1.5 करोड़ के पास जीएसटी रजिस्ट्रेशन है। जीएसटी रजिस्ट्रेशन सबके लिए अनिवार्य होना चाहिए, और भुगतान रसीद के आधार पर किया जाना चाहिए।

गुप्ता के अनुसार, जुलाई 2017 में जीएसटी शुरू होने के बाद इसमें रिटर्न फाइलिंग लगातार बढ़ रही है। लेकिन रिटर्न फाइल करने में जटिलता एमएसएमई के लिए चुनौती बन गई है। इस वजह से अनेक इकाइयों ने अपना रजिस्ट्रेशन रद्द करा दिया। कुछ रजिस्ट्रेशन तो फाइलिंग में गलती और आंशिक, लेट अथवा नॉन-फाइलिंग पर भारी-भरकम जुर्माने के कारण रद्द हुए। अनौपचारिक क्षेत्र के उपक्रमों को क्रेडिट के लायक बनाने के लिए सरकार को सभी उपक्रमों को जीएसटी में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। भले ही मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों का सालाना टर्नओवर 40 लाख और सर्विसेज इकाइयों का 20 लाख रुपये से कम हो।

आसान कर्ज के लिए घोषणा संभव

एमएसएमई के लिए कर्ज जुटाना गंभीर समस्या है। पिछले वित्त वर्ष के बजट में लघु और छोटे उपक्रमों के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम में 9000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई थी। इससे दो लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त कोलैटरल-मुक्त कर्ज दिया जा सकता था। इससे इन उपक्रमों को कर्ज पर ब्याज में करीब एक प्रतिशत की राहत मिलती है। नए बजट में इस स्कीम में और अधिक राशि दी जा सकती है। इस स्कीम के तहत पांच करोड़ रुपये तक के कर्ज पर गारंटी दी जाती है। हालांकि इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि यह स्कीम कोलैटरल-मुक्त होने के बावजूद बैंक अतिरिक्त गारंटी की मांग करते हैं।

स्थायी संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार 40% से भी कम एमएसएमई बैंक जैसे औपचारिक फाइनेंशियल सिस्टम से कर्ज ले पाते हैं। बाकी को महंगे विकल्पों पर निर्भर रहना पड़ता है। समिति का आकलन है कि एमएसएमई को वास्तव में मिलने वाले कर्ज और उनकी जरूरत के बीच 20 से 25 लाख करोड़ रुपये का अंतर है। आरबीआई के अनुसार 2023-24 में इंडस्ट्री के कुल कर्ज का लगभग 28% एमएसएमई को दिया गया था। बाकी कर्ज बड़ी कंपनियों का था।

कर्ज लेने की प्रक्रिया आसान बनाने के लिए उद्योग चैंबर फिक्की का सुझाव है कि कंज्यूमर वीडियो केवाईसी की तर्ज पर एमएसएमई के लिए भी वीडियो केवाईसी की सुविधा होनी चाहिए। एमएसएमई डिजिलॉकर को भी फास्ट ट्रैक करना चाहिए ताकि बिजनेस इकाइयां जब भी जरूरत हो अपने डॉक्यूमेंट विभिन्न अथॉरिटी, रेगुलेटर, बैंक आदि के साथ सुरक्षित रूप से साझा कर सकें। इन कदमों से छोटे उपक्रमों के लिए कर्ज लेना आसान होगा।

भुगतान के लिए पेमेंट्स एक्ट

छोटी इकाइयों की एक और प्रमुख समस्या समय पर भुगतान न मिलने की है। कई नीतिगत कदमों के बावजूद एमएसएमई को भुगतान में देरी की समस्या बरकरार है। फिस्मे ने छोटी-बड़ी सभी इकाइयों में कैश फ्लो सुधारने के लिए पेमेंट्स एक्ट लाने का सुझाव दिया है।

अभी एमएसएमई से सामान खरीदने वाली कंपनी या विभाग के लिए 45 दिन में भुगतान का नियम है। पिछले साल के बजट में आयकर की धारा 43बी में एक प्रावधान जोड़ा गया था। इसके मुताबिक 45 दिनों में भुगतान नहीं करने वाली कंपनी उस खर्च को टैक्सेबल इनकम के डिडक्शन में नहीं दिखा सकती है। इससे उनकी टैक्स देनदारी बढ़ जाएगी। कुछ एमएसएमई को डर है कि इस प्रावधान के कारण बड़ी कंपनियां उनसे सामान खरीदने से बचेंगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मई में कहा था कि इस नियम में कोई भी संशोधन जुलाई में पेश होने वाले पूर्ण बजट में किया जाएगा।

एनपीए से संबंधित नियमों में ढील संभव

बजट में स्पेशल मेंशन एकाउंट (एसएमए) के नियमों में भी ढील दिए जाने की संभावना है। आरबीआई की एसएमए नीति के तहत पांच करोड़ रुपये से अधिक कर्ज वाले खाते में किस्त 30 दिन से अधिक बकाया नहीं है लेकिन कंपनी के बिजनेस में स्ट्रेस दिख रहा है तो बैंक को उस खाते को एसएमए-0 श्रेणी में रखना होगा। मूलधन/ब्याज 31-60 दिन बकाया है तो एसएमए-1 श्रेणी और बकाया 61-180 दिनों का हो तो एसएमए-2 श्रेणी में रखने का नियम है।

फिस्मे का कहना है कि जब कोई एकाउंट एसएमए में दिखने लगता है तो उसे कहीं से मदद नहीं मिल पाती है। यहां तक कि सामान्य बैंकिंग कामकाज भी बाधित होने लगता है और वह एनपीए बन जाता है। इस तरह एनपीए बनने और इकाइयां बंद होने के अनेक उदाहरण हैं। बजट में एसएमए वर्गीकरण की समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा एमएसएमई का कर्ज एनपीए बनने की समय सीमा 90 दिन से बढ़ा कर 180 दिन की जा सकती है।

निर्यात करने वाली इकाइयों को मदद

एमएसएमई देश के निर्यात में 45-50 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। कोविड-19 के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास युद्ध और फिर रेड सी संकट से विश्व स्तर पर सप्लाई चेन बाधित हुआ और लॉजिस्टिक्स की लागत भी बढ़ गई। कुछ इकाइयां बंद भी हुई हैं। इसलिए फिस्मे ने डिजास्टर सपोर्ट मेकैनिज्म बनाने का सुझाव दिया है जो इस तरह के संकट में इमरजेंसी ग्रांट, फास्ट ट्रैक मंजूरी, लॉजिस्टिक्स आदि में मदद करे।

फिस्मे ने ट्रेड प्रमोशन पॉलिसी में बदलाव का भी सुझाव दिया है। इसका कहना है कि वर्ष 2030 तक विश्व जीडीपी में एशिया का हिस्सा 60% पहुंच जाने का अनुमान है। लेकिन नीतिगत स्तर पर अब भी हमारा फोकस पश्चिम पर है। इसलिए ट्रेड प्रमोशन पॉलिसी में एशिया पर फोकस बढ़ाने की जरूरत है।

मार्केटिंग, रेटिंग और गारंटी

इंडिया एसएमई फोरम ने इस सेक्टर के विकास, प्रमोशन और ग्लोबल मार्केटिंग के लिए 5,000 करोड़ रुपये का फंड बनाने का सुझाव दिया है। इसने निर्यात बढ़ाने के लिए अलग बॉडी बनाने की भी बात कही है जो छोटी-मझोली इकाइयों को मार्केट इंटेलिजेंस और ट्रेड के मौकों की जानकारी देगी। इसने यूएस कॉमर्शियल सर्विस और जापान के जेट्रो (JETRO) की तर्ज पर भारतीय उत्पादों को दूसरे देशों में प्रमोट करने का भी सुझाव दिया है।

एमएसएमई के लिए रेटिंग की प्रक्रिया में भी संशोधन किया जा सकता है। ज्यादा कर्ज लेने वाले एमएसएमई पर बैंक आरबीआई/सेबी की मंजूरी-प्राप्त रेटिंग एजेंसियों से रेटिंग कराने के लिए दबाव डालते हैं। फिस्मे का कहना है कि ये एजेंसियां लिस्टेड कंपनियों के पैमाने पर ही एमएसएमई का आकलन करती हैं। इसलिए शायद ही किसी छोटी कंपनी को निवेश ग्रेड की रेटिंग मिल पाती है।

सरकारी खरीद में भागीदारी के लिए एमएसएमई को बैंक गारंटी देनी पड़ती है। इसके बदले बैंक भारी फीस लेते हैं। इससे इन उपक्रमों की वर्किंग कैपिटल फंस जाती है। फिस्मे ने बीमा कंपनियों के माध्यम से गारंटी का सुझाव दिया है जो मार्जिन मनी या सिक्युरिटी की मांग नहीं करती हैं। 2022 में इसकी घोषणा के बावजूद अभी तक अमल नहीं हुआ है।