नियम बदलने से डेट फंड का घट सकता है आकर्षण, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार इन पर रिटर्न एफडी से ज्यादा होगा
पिछले हफ्ते संसद में पारित संशोधित फाइनेंस बिल में डेट फंड पर इंडेक्सेशन बेनिफिट खत्म करते हुए इन्हें एफडी के समान कर दिया गया है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इस बदलाव के बाद डेट फंड और एफडी में क्या अंतर हैं
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। पिछले शुक्रवार, 24 मार्च को करीब पांच दर्जन संशोधनों के साथ फाइनेंस बिल 2023 लोकसभा में पास हुआ। एक संशोधन में डेट म्यूचुअल फंड पर लांग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) के तहत इंडेक्सेशन बेनिफिट खत्म कर दिया गया है। इससे टैक्स के मामले में ये फंड काफी हद तक बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के बराबर हो गए हैं। यह संशोधन नए वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल 2023 से लागू होगा। म्यूचुअल फंड्स की संस्था AMFI के अनुसार फरवरी 2023 तक डेट म्यूचुअल फंड का एसेट अंडर मैनेजमेंट 12.3 लाख करोड़ रुपये था।
ऐसे डेट म्यूचुअल फंड जिनके पोर्टफोलियो में इक्विटी 35% तक है, उन्हें LTCG का फायदा अब नहीं मिलेगा। इनके अलावा गोल्ड ईटीएफ, कुछ हाइब्रिड फंड और विदेशी शेयरों में निवेश करने वाले इंटरनेशनल फंड पर भी इसका फायदा नहीं मिलेगा। टैक्स के लिहाज से अभी तीन साल से अधिक निवेश को लांग टर्म माना जाता है। उस पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% टैक्स लगता है। तीन साल से कम अवधि के निवेश शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) के दायरे में आते हैं। इन पर निवेशक के इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगता है। सबसे अधिक स्लैब 30% का है जो सेस के साथ 33% हो जाता है। यहां इंडेक्सेशन बेनिफिट का मतलब महंगाई को एडजस्ट करने से है।
म्यूचुअल फंड में निवेश पर होने वाला लाभ कैपिटल गेन कहलाता है। शॉर्ट टर्म गेन पर तो निवेशक के स्लैब रेट के मुताबिक ही टैक्स लगता है, लेकिन लांग टर्म यानी तीन साल से अधिक के निवेश पर होने वाले लाभ की गणना अलग तरीके होती है। इस पर टैक्स उस साल देना पड़ता है जिस साल म्यूचुअल फंड यूनिट को निवेशक ने बेचा है। दूसरी तरफ, एफडी पर मिलने वाली ब्याज की रकम इनकम टैक्स कानून में ‘अन्य स्रोतों से आय’ (income from other sources) मानी जाती है। इसे हर साल निवेशक की आय में जोड़ा जाता है और उस पर टैक्स की गणना होती है।
पुराने निवेश पर लागू नहीं होंगे नए नियम
नए नियम 1 अप्रैल 2023 अथवा उसके बाद किए जाने वाले नए निवेश पर ही लागू होंगे। इसलिए देश की सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कंपनियों में से एक, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी हेड चिंतन हारिया जागरण प्राइम से कहते हैं, “मौजूदा निवेश पर इस नियम का कोई असर नहीं होगा। अगर कोई निवेशक फिक्स्ड इनकम फंड में पैसा लगाना चाहता है तो हमारी सलाह होगी कि वह 31 मार्च 2023 से पहले निवेश करे, ताकि उसे बेहतर टैक्स ट्रीटमेंट में फायदा मिल सके।”
नियमों में बदलाव का क्या होगा असर
अभी तक इंडेक्सेशन के बाद 20% लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता था। वित्त मंत्रालय के अनुसार, “इंडेक्सेशन बेनिफिट के कारण कई बार तो टैक्स 10% से भी कम हो जाता है…। इस आर्बिट्राज (अंतर) के कारण अनेक टैक्सपेयर कम टैक्स चुका रहे हैं।” विशेषज्ञों के अनुसार इस आर्बिट्राज के कारण बड़े निवेशकों को काफी बचत हो जाती थी। लेकिन नियमों में बदलाव के बाद डेट म्यूचुअल फंड का आकर्षण कम हो सकता है। निवेशक या तो इक्विटी अथवा हाइब्रिड फंडों की ओर जाएंगे या फिर जो निवेशक जोखिम नहीं लेना चाहते, वे बैंक एफडी की तरफ जाएंगे।
सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर (CFP) जितेंद्र सोलंकी के अनुसार, “अभी तक डेट फंड और एफडी के रिटर्न में 3 साल के निवेश पर (टैक्स के बाद) 1% से 1.5% तक का अंतर आ जाता था। सरकार ने इस तर्क के साथ टैक्स आर्बिट्रेज खत्म किया है कि एक जैसे प्रोडक्ट की लिए टैक्सेशन भी एक जैसा होना चाहिए। इससे डेट फंड का आकर्षण थोड़ा कम हो सकता है।”
“लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स के कारण निवेशक एफडी की तुलना में डेट फंड को तरजीह देते थे। टैक्स में इस एडवांटेज की वजह से निवेश सलाहकार भी एफडी के बजाय डेट फंड में पैसा लगाने की सलाह देते थे। अब एफडी पर भी रिटर्न अच्छा मिलने लगा है तो अंतर खत्म हो जाएगा।”
आर्क प्राइमरी एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर विकास अग्रवाल कहते हैं, “अभी तक निवेशकों को डेट म्यूचुअल फंड में सबसे बड़ा फायदा टैक्स आर्बिट्राज का था। अगर आपने 5 साल की एफडी कराई है और उस पर 7% की दर से ब्याज मिल रहा है, तो भले ही पैसा आप 5 साल बाद निकालें, उस पर आपको हर साल टीडीएस देना पड़ता है। अगर आप 30% इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं तो टैक्स की दर 33% हो जाएगी। लेकिन डेट म्यूचुअल फंड में अगर 5 साल बाद पैसे निकालेंगे तो इंडेक्सेशन बेनिफिट और लांग टर्म कैपिटल गेन की वजह से टैक्स बहुत कम लगेगा।” मान लीजिए एफडी और डेट म्यूचुअल फंड, दोनों पर 7% का रिटर्न है, तो 5 साल बाद टैक्स समायोजित करने पर डेट फंड का रिटर्न 6.80-6.85% होगा, जबकि एफडी में यह 5 से 5.5% बैठता है। इस लिहाज से देखें तो डेट म्यूचुअल फंड में निवेशकों को काफी फायदा मिलता था।
डेट फंड अब भी ज्यादा फायदेमंद
निवेश सलाहकार और गुडमनीइंग के संस्थापक मणिकरन सिंघल मानते हैं कि टैक्स ढांचे में बदलाव के बाद भी डेट म्यूचुअल फंड एफडी की तुलना में फायदेमंद हैं। वे कहते हैं, “टैक्सेशन के कारण 3 साल से कम अवधि के निवेश पर डेट म्यूचुअल फंड और एफडी, दोनों पर रिटर्न हमेशा एक जैसा रहा है। लेकिन किसी ने सेविंग्स अकाउंट में 4% ब्याज पर पैसे रखे हैं और जब ब्याज दर बढ़ रही है तब वह लिक्विड फंड या अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में पैसे लगाए तो उसे 6.5% से 7% तक रिटर्न मिल सकता है। इस लिहाज से देखें तो अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड की डिमांड रहेगी। कंपनियों को करंट अकाउंट में पैसे रखने पर ब्याज नहीं मिलता है, लेकिन अल्ट्रा शॉर्ट टर्म फंड में रखेंगी तो उन्हें कुछ न कुछ रिटर्न मिल जाएगा।”
विकास अग्रवाल कहते हैं, “सबसे बड़ा फायदा टैक्स डेफरमेंट (बाद में) का है। एफडी में तो हर साल आपको टैक्स देना है, लेकिन डेट म्यूचुअल फंड अगर आपने 10 साल के लिए लिया है तो 10 साल तक आपको कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा, जब आप पैसे निकालेंगे तो उस साल की कुल आय के हिसाब से आपको इनकम टैक्स देना पड़ेगा। यहां कंपाउंडिंग का फायदा अधिक मिलेगा। एफडी में टीडीएस कट जाता है, लेकिन डेट फंड में वह पैसा न कटने के कारण उस पर भी चक्रवृद्धि ब्याज मिलता रहेगा।”
सिंघल एक और अहम बात बताते हैं, “डेट फंड में जब तक आप पैसे नहीं निकालते तब तक टैक्स नहीं लगता। अगर एक साल में पूरा पैसा निकालने पर टैक्स की देनदारी ज्यादा होती है तो आप दो साल में पैसे निकाल सकते हैं। इस तरह आपको अपना पूरा पैसा तो मिल ही जाएगा, टैक्स भी कम चुकाना पड़ेगा।”
घाटा सेट ऑफ करने की सुविधा
विकास अग्रवाल के मुताबिक डेट फंड में एक और फायदा लिक्विडिटी का है। आपको जब भी पैसे चाहिए, एक सिंगल क्लिक पर अगले दिन आपके अकाउंट में पैसे आ जाते हैं। बैंक एफडी समय से पहले तोड़ने पर पेनल्टी लगती है, लेकिन डेट फंड में ऐसा नहीं है। हालांकि तीन साल से पहले पैसे निकालने पर STCG टैक्स का नियम जरूर लागू होगा। अलग-अलग अवधि की एफडी पर ब्याज की दर अलग होती है, लेकिन डेट म्यूचुअल फंड में ऐसा नहीं होता है। जितेंद्र सोलंकी उनकी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “डेट फंड में नुकसान होने पर घाटा सेट ऑफ करने का प्रावधान भी होता है।”
डेट फंड में जोखिम कितना
डेट फंड के जोखिम के बारे में पूछने पर सोलंकी कहते हैं, “लांग टर्म में वोलैटिलिटी (उतार-चढ़ाव) के कारण रिस्क होता है। इन दिनों कई तरह के डेट फंड बाजार में हैं। अगर कोई निवेशक टारगेट म्यूचुअल फंड में पैसा लगाकर मैच्योरिटी के बाद पैसे निकालता है तो उसके लिए जोखिम कम होगा, लेकिन एक्टिव फंड में लंबे समय में वोलैटिलिटी ज्यादा देखने को मिल सकती है।” वे कहते हैं, “सिर्फ इनकम जनरेट करने के लिहाज से देखा जाए तो शॉर्ट टर्म डेट फंड ज्यादा लाभदायक हो सकते हैं। जब निवेशक पैसे निकालना चाहता है तब वह यह भी चाहेगा कि उसमें वोलैटिलिटी कम से कम हो। उनके लिए शॉर्ट टर्म डेट फंड बेहतर हैं।”
मणिकरन सिंघल कहते हैं, “ब्याज दरें जब बढ़ने लगती हैं तब जिन लोगों की एफडी पुरानी है उन पर रिटर्न तो स्थिर बना रहता है, लेकिन डेट फंड पर रिटर्न निगेटिव हो जाता है। बीच-बीच में इस तरह के समय आते रहते हैं।”
विकास अग्रवाल के मुताबिक, “भारतीय एफडी के लिए जाने जाते हैं। यहां लोगों ने 1.7 लाख करोड़ रुपये की एफडी करा रखी है। अगर जोखिम की बात करें तो एफडी में भी 5 लाख रुपये तक की ही गारंटी है, भले ही बैंक में आपके एक करोड़ रुपये जमा हों। एफडी में कोई कभी मार्क टू मार्केट रिटर्न की बात नहीं सोचता है। अगर किसी ने 5 साल की एफडी कराई है तो वह 5 साल बाद ही बैंक में जाएगा, लेकिन म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वाला रोज उसकी एनएवी देखता है।”
कॉरपोरेट एफडी से तुलना
अग्रवाल के अनुसार, कॉरपोरेट एफडी और डेट म्यूचुअल फंड में एक बुनियादी फर्क यह होता है कि कॉरपोरेट एफडी का रिटर्न पूरी तरह से एक कंपनी की परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है। डेट फंड में वैरायटी होती है। हो सकता है डेट फंड ने उस कंपनी की एफडी में भी पैसा लगाया हो, लेकिन पूरे पोर्टफोलियो में उसका हिस्सा 5 या 10 प्रतिशत ही होगा। अगर उस कंपनी के प्रदर्शन में किसी तरह की समस्या आती है तो कुल निवेश का 10% ही प्रभावित होगा।
सोलंकी कहते हैं, कॉरपोरेट एफडी और डेट म्यूचुअल फंड में जोखिम की तुलना करनी पड़ेगी। अगर निवेशक जोखिम को समझता है तो कॉरपोरेट एफडी अच्छा विकल्प हो सकता है। अगर कोई ट्रिपल ए रेटिंग कंपनी की एफडी को छोड़कर सिर्फ ए या बी रेटिंग वाली कंपनियों की एफडी में पैसा लगाता है तो उसमें रिस्क ज्यादा होगा।
सिंघल कहते हैं, “हो सकता है कोई आपको लालच दे कि बैंक एफडी पर तो सिर्फ 7% ब्याज मिल रहा है, लेकिन हमारे बांड पर 9.5% या 10% ब्याज मिल रहा है। लेकिन ऐसे बांड में डिफॉल्ट का जोखिम भी अधिक रहता है।”
डेट फंड के समान फीचर वाले अन्य इंस्ट्रूमेंट के बारे में पूछने पर सिंघल कहते हैं, ऐसा कोई इंस्ट्रूमेंट तो नहीं है लेकिन डेट फंड में भी अनेक कई कैटेगरी हैं। जैसे, अगर कोई 6 महीने या 1 साल के लिए पैसा लगाना चाहता है तो वह आर्बिट्राज फंड में निवेश कर सकता है। लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं तो 40% इक्विटी और 60% डेट का फॉर्मूला अपना कर अब भी इंडेक्सेशन का फायदा उठा सकते हैं।
सोलंकी के अनुसार, हाल में एफडी पर रेट बढ़े हैं, इसके साथ कोई 80सी का भी लाभ लेता है तो उसके लिए नेट रिटर्न 0.5% से 1% तक ज्यादा हो सकता है। हालांकि अग्रवाल कहते हैं, 80सी के लिए अब अनेक विकल्प हैं। इसके लिए मैं लोगों को पीपीएफ में निवेश करने की सलाह दूंगा। यह भारत सरकार का प्रोडक्ट है जिस पर अभी 7.4% की दर से ब्याज मिल रहा है। इससे अधिक गारंटी और कुछ भी नहीं है। इसकी मैच्योरिटी पर मिलने वाला पैसा भी टैक्स फ्री है।