हर वर्ग और क्षेत्र का विकास होने पर कम होंगी पर्यावरण और माइग्रेशन जैसी चुनौतियां
विशेषज्ञों के अनुसार समावेशी विकास का तरीका अपनाने से संसाधन और अवसर सबके लिए समान रूप से उपलब्ध होंगे वर्कफोर्स की स्किल और जॉब मार्केट की डिमांड के बीच अंतर कम होगा और क्षेत्रीय तथा सामाजिक असमानता भी कम होगी। समावेशी विकास में ग्रोथ की गति बढ़ाने की भी क्षमता है क्योंकि तब हर वर्ग की खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी।
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। हाल के वर्षों में भारत का विकास क्रम काफी उत्साहजनक और प्रभावशील रहा है। भारत न सिर्फ लगातार दुनिया की सबसे तेज गति वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है, बल्कि मौजूदा दशक में इसके अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी भी बन जाने की संभावना है। लेकिन इस विकास क्रम का लाभ सबको समान रूप से नहीं मिला। आईटी जैसे सेक्टर नई ऊंचाई छू रहे हैं तो कृषि और एमएसएमई जैसे अधिक रोजगार देने वाले सेक्टर का प्रदर्शन कमतर रहा है। इससे संपन्न और गरीब के बीच का अंतर भी बढ़ा है। जॉब मार्केट में स्किल्ड लेबर की कमी से व्यक्ति के साथ उद्योग की उत्पादकता भी प्रभावित हो रही है। क्षेत्रीय विषमता के कारण राज्य भी संपन्न और गरीब में बट गए हैं। सामाजिक असमानता भी है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाओं तक सबकी पहुंच एक समान नहीं है।